ऊपर कोई रहता है

नमस्कार – मेरा नाम चन्दर है। मै गाजियाबाद जिले के एक गाँव का वासी हूँ, और पिछले कुछ सालों से नौकरी की वजह से नॉएडामें रह रहा हूँ। यह कहानी उस वक़्त की है जब मैं करीबन सात साल का था। मेरे पिताजी सरकारी नौकर थे और उन्हें रहने के लिए एकसरकारी घर मिला था, जिसमे हम सब (मैं, माँ, पापा और मेरी छोटी बहन) रहते थे। 


 ऊपर कोई रहता है
Photo by Patrick Tomasso on Unsplash




 ऊपर कोई रहता है


नमस्कार – मेरा नाम चन्दर है। मै गाजियाबाद जिले के एक गाँव का वासी हूँ, और पिछले कुछ सालों से नौकरी की वजह से नॉएडामें रह रहा हूँ। यह कहानी उस वक़्त की है जब मैं करीबन सात साल का था। मेरे पिताजी सरकारी नौकर थे और उन्हें रहने के लिए एकसरकारी घर मिला था, जिसमे हम सब (मैं, माँ, पापा और मेरी छोटी बहन) रहते थे। 


कुछ ही महीनों के बाद पापा एकलम्बी बिमारी के कारण हमें छोड़ गए। अब घर की सारी जिम्मेदारी माँ पेथी।कुछ ही दिनों में हम वह सरकारी घर छोड़ एक छोटे घर में रहने गए, जो की माँ ने किराए पे लिया था। यह घर गाँव से थोड़ा दूर था और मुख्य सड़क से थोड़ा अंदर था। यह घर असल में एक पुरानी हवेली का हिस्सा था, जो अब काफी टूट फुट गयी थी और रहने लायक सिर्फ चार कमरे बाकी थे – उसमे से दो कमरे निचली मंजिल पर थे (जिनमे से एक माँ ने किराए पे लिया था) और बाकी दो पहले मंजिल पे थे। 


हमारे कमरे के दो हिस्से किये गए थे – एक रसोई और दूसरे हिस्से में बिस्तर लगाए थे। हमारे बाजू वाले कमरे में मकान मालिक की बूढी माँ रहती थी। वह काफी दयालु औरत थी – माँ जब काम पे चली जाती थी तब मेरा और मेरी बहन का वह खूब ख़याल रखती थी।ऊपर के दोनों कमरे बंदरखे गए थे – जब माँ ने पूछताछ की तब मकान मालिक ने झूठमूठ ही बता दिया की दोनों कमरो की काफी मरम्मत बाकी है, छत ठीक नहीं, वगैरा। 


माँ ने भी बात को ज्यादा छेड़ा नहीं।लेकिन इस घर में पहले दिन से ही मेरे साथ अजीबोगरीब घटनाएँ होने लगी। मेरी बहन छोटी थी इसलिए माँ काफी बार उसे अपने साथदफ्तर ले जाती थी, या फिर मेरी मौसी के घर छोड़ आती थी। इस वजह से स्कूल के बाद मैं घर पे अकेला ही रहता था। ऐसेही एक दोपहर मैं स्कूल से घर लौटा। माँने मेरी बहन (मीना) को मासी के घर पे छोड़ा था। मैंने खाना खाया और बिस्तर पर लेट पड़ा।मुझे नींद आ ही रही थी,जब मैंने कुछ अजीब आवाज सुनी। 


आवाज ऊपर के मकान से आ रही थी – मानो कोई पैर घसीटते हुए जमीन पर चल रहा हो। मैं चौकन्ना हो गया और ध्यान से सुनाने लगा। कुछ मिनिटों बाद आवाज बंद हो गयी।मुझे लगा के यह मेरा वहम होगा, और यह सोचकर मैं वापस सोने की कोशिश करने लगा। लेकिन थोड़े ही समय मेंआवाज़ वापस शुरू हो गयी– और घसीटने के साथ साथ मुझे ऐसे लगा के कोई गहरी सास लेते लेते हाफ रहा है। मेरीनींद उड़ गयी और मैं झट से घर के बाहर दौड़ा – ऊपर के मकान को देखा तो हमेशा की तरह सब खिड़कियाँ बंद थी। अब मुझे डर लगने लगा और मैं बाजूवाले मकान का दरवाजा खटखटाने लगा। 


मकान मालिक की बूढी माँ ने दरवाजा खोला औरबड़े प्यार से मुझे पूछा के मैं इतना डरा हुआ क्यों हूँ। मैंने हाफ्तेहाफ्ते उन्हें पूरी कहानी बता दी। मेरी कहानी सुनकर उनके चेहरे पर एक अजीबसा डर दिखाई दिया,लेकिन फिर उन्होंने हसकर मुझे बोला के मैंने कोई सपना देखा होगा।उसके बाद कुछ दिन मुझेऐसेही आवाजे सुनाई देती। मैंने कई बार माँ को बताने की कोशिशकी, लेकिन वह काम से लौटकर इतना थकती थी केकुछ सुनाने की हालत में नहीं होती।फिर एक रात की बात है। माँ और मीना गहरी नींदमें थे, लेकिन मैं बिस्तर पर लेटा अभीभी बीते दिनों की घटनाओं के बारे में सोच रहा था। 


तभी मुझे और एक आवाज़ सुनाई दी – ऐसा लग रहा था की ऊपर के मकान में कोई दीवार पेखरोच रहा है। धीरे धीरे वह आवाज़ मेरे सामने वाली खिड़की के पास से आने लगी। मैं उठकर बैठा और मैंने सामने जो दृश्य देखा उससे मेरी सासें थम गयी।हमारी खिड़की की सलाखों को पकड़के के उलटी टंगी आकृति मुझे घूर रही थी। उसके लम्बे बाल नीचे झूल रहे थे और उसकी सासे बहुत तेज थी। यह देखकरमेरे होश गुल हुए, और बेहोश गिरने से पहले मैं जोर से चीखा।जब मुझे होश आया तो माँ मुझे अपने गोअद मेंलिए सहला रही थी। मकानमालिक की माँ बाजू में बैठी थी। 


इस हकीगत के बाद दो दिन तक मुझे तेज बुखार चढ़ाथा और इस बुखार में (माँ बताती है) मैं बारबार सिर्फ एक ही बात बड़बड़ा रहा था – “ऊपर कोई रहता है”! थोड़ी ही दिनों में माँ को दूसरी नौकरी मिल गयी और हम एक दुसरे घर में रहने गए।

– “ऊपर कोई रहता है”! थोड़ी ही दिनों में माँ को दूसरी नौकरी मिल गयी और हम एक दुसरे घर में रहने गए।

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