वो कौन थी

आज जो मैं आपको बताने जा रहा हूँ वो मेरे जिंदगी की गहराई में डुबी एक दास्ता है। कहते है ईश्वर हर किसी के दर्द को समझ कर उसके दर्द की दवा जरुर बनाता है. ये बात है २००८ की मैं अपनी जिंदगी के १५ वे साल मे आ चूका था । 



वो कौन थी
Photo by Sam Pineda from Pexels

वो कौन थी



आज जो मैं आपको बताने जा रहा हूँ वो मेरे जिंदगी की गहराई में डुबी एक दास्ता है। कहते है ईश्वर हर किसी के दर्द को समझ कर उसके दर्द की दवा जरुर बनाता है. ये बात है २००८ की मैं अपनी जिंदगी के १५ वे साल मे आ चूका था । 


बचपन में ही माँ को खोकर किस्मत के चक्रव्युह कको अजमा रहा था। मेरा अधिकतर वक्त ऊस जंगल में बसे हनुमान मंदिर में बित जाता । कभी चरवाहे मेरे साथ होते तो कभी नही । अपने जिंदगी गम भुलाने उस तन्हाई में एक हि मेरा दोस्त था वो हनूमान । अजीब शांती और ठंडक थी वहा ।



ऊस दिन भी मै वहा गया । दोपहर के 12 बजे होंगे । पंछियो की चहचहाहट, हवा की ठंडक और मधूर शांती मे कब आंख लग गई पता भी नही चला । थोडी देर बाद कीसी की रोने की आवाज से मै जाग गया । सामने बबूल के पेड के निचे वो बैठी मुँह छीपाए, खूली जुल्फे कर रोए जा रही थी । 


मै उसके पास गया और चूप कराते हूए ऊसका नाम पुछा । उसने मेरी तरफ नजर ऊठाकर देखा । क्या नशा था ऊसकी आँखो में मेरी ही हम उम्र उसने एकदम मिठे शब्दो में कहा " जी मैं सुजाता पाटिल" । फीर मैंने भी अपना नाम बताया "मैं जतिन दिवेचा" । 


मैने ऊससे पुछा " पहले कभी यहा दिखाई नही दी" । उसने कहा "आज पिताजी ने रोज की तरह शराब पिकर माँ को बहूत मारा, मुझ पर भी हाथ उठाया तो मै यहाँ आकर छूप गई" । फीर मैने भी उसे अपनी जिंदगी की उदासी सुनाया और वही कम करने मैं रोज यहा आता हूँ यह बताया । 


उसने कहा कल से मैं भी यहा रोज आया करुंगी । मैने कहा "अच्छा ठिक है चलो शाम होने वाली है घर चलते है ।" उसके सफेद परियो जैसे ड्रेस मे वो परी से कम नही लग रही थी । आखिर उसके घर का चौक आ गया वही से उसने मुझे अलविदा कहा। हम रोज मिलते रोज वो वही ड्रेस मे आती शायद वो गरिब हो । 


एक दिन मैने उससे अपने प्यार का ईजहार कर दिया और वो मान गई। मैं उसके गोद में सर रख वो सारा दिन सोया । मेरा प्यार पवित्र था । बहूत दिन से गर्लफ्रेंड की चक्कर में मंदिर नही गया यह सोच उस दिन मैं सुजाता के आने के पहले मंदिर गया और तिलक धरा और रोज मंदीर आउंगा कह कर हसते हूए हनूमान से वीदा ले सुजाता का ईंतजार करने लगा पर वो उस दिन नही आई । 


ऐसे ३ ४ दिन बित गए । फिर एक दिन मैं उसके कॉलनी में गया । एक आँटी से पुछा "यहा कोई सुजाता पाटिल रहती है क्या ?" आँटी ने कहा "हा वो सफेद घर उसी का है पर बेटा तूम क्यो आए हो?" मैने कहा"आँटी वो मेरी दोस्त है मिलने आया हू"। आँटि ने कहा " are you mad ऊसे मरे हूए तो लगभग साल होते आ रहा है , ईसी घर में उसके बापने उसकी माँ की जला कर हत्या कर दि थी और ये देख सुजाता ने जंगल में बबूल के झाड पर फाँसी ली थी बाद मे पोलिस उसके बाप कौ गीरफतार कर ले गई, दुसरे दिन जंगल से ऊसकी लाश लाई गई थी, यह देखो अखबार ऊस वक्त का ।"



यह सून मैं घर भागा और बीमार पड गया । दो महिने घर से बाहर नहि निकला। अपने पापा को सब बताया। पापा ने श्रद्धा से मेरे गले मे ॐ पहनाया । 

जब से आजतक मैं उस जंगल में नही गया। 

पर आज भी सोचता हूँ क्या वो वहा होंगी ? 

मेरा ईंतजार कर रही होंगी ? 

उसने मुझे ईतने करिब होते हूए भी नूकसान क्यो नही पहूचाई ?



बहूत से सवालो के जवाब उस जंगल में दफन है, पर जिंदगी में हर सवाल का जवाब जानना जरुरी
नही होता और कुदरत के नियम तोड किसी को हासील करना नामुमकीन है।

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