एक भूतीया ईलाका

पर यहा जँगलो मे एक ऐसा राज दफन है जीसकी कल्पना होते ही रोम रोम कांप उठती है । सेमाडोह पार होते ही लगता है एक भूतीया ईलाका । जीतना खुबसूरत यह ईलाका है ऊतना ही खौफनाक भी ।


एक भूतीया ईलाका
Photo by Kayla Maurais on Unsplash

एक भूतीया ईलाका




आज कल भारत सरकार "हिंदूस्थान का दिल " काफी वीज्ञापन दे रही है । जीतना खुबसूरत मध्य प्रदेश है ऊतना ही पूरातन और कई राज ईसके अंदर दफन है । हमारा अमरावती ईसी मध्यप्रदेश के सीमा से लग कर है । मेरा बचपन मध्यप्रदेश और भारत से जूडे मेलघाट जंगल मे ही गूजरा । यह आदिवासीयो का ईलाका है । यहा जीतने डकैत और खतरनाक जानवर है ऊतने ही शातीर तांत्रीक भी है । यह कालभैरव की भूमी मानी जाती है ।



पर यहा जँगलो मे एक ऐसा राज दफन है जीसकी कल्पना होते ही रोम रोम कांप उठती है । सेमाडोह पार होते ही लगता है एक भूतीया ईलाका । जीतना खुबसूरत यह ईलाका है ऊतना ही खौफनाक भी ।


तो जानते है आगे का वाक्या जतिन दिवेचा के साथ ।


ईस जंगल मे अगर हम गहराई से नीचे की ओर चलते है तो पहूंचते कसना गाव मे । यह गाव जंगल से घीरा है । घने जंगल की यात्रा करने पर ही यहा पहूँचा जा सकता है । ईस गाव मे एक जादूगरनी रहती थी । कीसी कारणवश ऊसकी अकाल मृत्यू हो गई और वो अब यक्षीणी बन गाव के सीमा के बाहर रहती है । यह हजारो सालो से यहा है । ऐसा वहा के नागरीक कहते है । वे खून चूसती है खास कर जवान व्यक्तीयो का । ईसने कई जानवर और गाववासीयो को मार डाला है ।


एक दिन मेरा दोस्त वीक्रम सिंह, उसके पीता राम प्रताप, उसका भाई ऊदय प्रताप शहर जा रहे थे । ऊनके किसी रिश्तेदार की अचानक सेहत बीगडी थी । गाव वालो ने कहा भी की राम बाबू रात मे यात्रा न करे । पर राम जी नीडर व्यक्ती थे । वे अपनी बैलगाडी लेकर चल पडे क्योंकी यात्रा हेतू आधूनीक वाहन भी गाव मे कार्य नही कते पाहडी ईलाका जो ठहरा।


करीब रात 8 बजे घना जंगल पार करते वक्त एक खुबसूरत सी गरीब स्त्री रोड के किनारे कपडे की पोटलीलीए नजर आई ।


वीक्रम ने कहा बाबूजी यह यक्षीणी हो सकती है।


पर राम जी न माने और बैल गाडी रोक दी ।


राम जी :- बहन (राजपूत और मराठाओ का पराई स्त्री के तरफ देखने का नजरीया) , ईतने रात गए यहा क्या कर रही हो ?


स्त्री - मै अपने पती के साथ थी । पर डायन ने हम पर हमला कर दिया । मेरे पती को मारकर वो ऊनका शव ले गई । मै कीसी तरह बच के आअई हूँ ।
राम जी ने ऊस पर वीश्वास दिखाया ।


राम जी ने उसे गाडी मे बैठने को कहा । और यात्रा चल पडी । अगले सूबह वे शहर पहूँचे । शहर मे । राम बाबू की बहन अपनी आखरी सांसे भर रही थी ।डॉक्टर हाथ टेक चूके थे । राम बाबू की बहन रानी ने ऊस स्त्री को देखा और घबराई हूई लगने लगी , अटक अटक कर बातीयाने लगी । सबको लगा शायद हालात के कारण ऐसा हो रहा हो। 


राम बाबू वहा दो दीन तक ठहरे और आखीर ऊनकी बहन ने अपने प्राण त्याग दिए । बहन के अंतीम संस्कार के बाद राम बाबू ने ऊस स्त्री से कहा आपको कहा छोडे अब ।


स्त्री - बाबूजी अब मेरा कोई नही ईस दूनीया मे । कही भी जिंदगी काट लूंगी ।


राम बाबू को दया आ गई और अपने बडे बेटे उदय के विवाह हेतू ऊसके सामने प्रस्ताव रखा । वो भी मान गई । अब वे सभी गाव को लौट पडे । उदय जी की माता भी वीवाह हेतू राजी हो गई । सब सकुशल चल रहा था । पर गाव के पशू जंगल की ओर खुटा तोड भागते या मर रहे थे । राम जी को लगा शायद कोई जानवरो का रोग आया हो । राम जी वैज्ञानिक सोच के व्यक्ती थे ।


अचानक एक रात कूत्तो की भौंकने की आवाज कूछ ज्यादा ही बढ गई । जिससे वीक्रम की निंद खूल गई। पानी पीकर वीक्रम बरामदे मे गया ।


सामने का दृश्य देख वो हक्का बक्का रह गया ।


एक स्त्री वृक्ष की टहनी पर बैठी थी । चाँद की रोशनी थी । वो वीक्रम ही देख रही थी और ऊसके आँख के बबूले जोरो से घूम रहे थे । चहरा पूरी तरह बीगडा हूआ था । शरीर पर सूखे खून के रंग का चोला था । बाल मोटी जटाओ जैसे थे । चहरे की चमडी काली पर तेजाब से जली हूई लग रही थी । तभी वे उस खुबसूरत स्त्री के रूप मे आ गई । अब विक्रम डर से बेहाल हो गया था की हम ईतने दिन एक यक्षीणी के साथ रहे । अब वीक्रम घर मे दौडा , अपने कमरे मे गया । वहा वीक्रम के पलंग पर वो यक्षीणी थी । वीक्रम को पास बूलाकर कहा अच्छे बच्चे की तरह चूपचाप सो जाओ यहा वर्ना ईसी वक्त तेरा खेल खत्म कर दूंगी । वीक्रम डर से रात भर ऊसके पास ही सोया रहा ऊसकी हिम्मत तक नही हूई ऊसके चेहरे पर नजर डालने की ।


दूसरे दिन वीक्रम ने सारा वाक्या उदय को बताया । उदय ने वीक्रम पर भरोसा नही कीया । ऊदय अपने शादी के सपनो मे खोया था। पर राम जी ने ईस पर सहमती जताई और राम जी वीक्रम पर वीश्वास कर तूरंत पुजारी चाचा से बात की । पुजारी तांत्रीक दारीकानाथ ने कहा "अगर वे ही यक्षिणी है तो ऊसपे गंगा जल छीडको वो तूरंत अपने असली रूप मे आ जाएंगी और मै आपके साथ चलता हूँ ।"


फिर पुजारी ने कहा ऐसा करना सही नही होंगा । अगर वो असली रूप मे आ गई तो हमारी शक्ती कम गीरेंगी । उसे कीसी तरह मंदीर मे लाया जाए ।


22 december 1969 की वो दोपहर थी । राम बाबू और वीक्रम ने ऊस सोती हूई यक्षीणी पर ॐ की चादर डाल ऊसे बांध दिया । वो चीखने लगी । ऊसकि शरीर तपने लगा था । तभी ऊदय ने विक्रम को जोरदार रपटा जड दिया । फिर राम बाबू आगे आए अगर यह यक्षीणी नही है तो मंदीर मे साबीत हो ही जाएंगा । पिता की बात सून कर उदय शांत हूआ और स्त्री को मंदीर ले जाया गया । जहा सभी गाव वाले जम गए थे । ॐ की चादर हटाई गई । और पूजारी ने गंगाजल स्त्री पर डाला । वो चिख पडी और अपने असली रूप मे आ गई । पहले से भी ज्यादा खतरनाक और बदसूरत । सफेद लंबे बाल और खूनी लाल होठ , ऊम्र से बूढीया करीब 1000 साल की लग रही थी । काफी चीख रही थी । ईसके बाद ऊस यक्षीणी को भभूत गंगाजल से नहलाया गया और वे धूआ बन ऊड गई ।


आज वीक्रम बाबू 65+ साल के है । वे अपना नीवास स्थान शहर मे ले चूके है । उदय बाबू भी शहर मे रहते है और ऊनकी नातीन की अभी अभी शादी हूई है । वे यह वाक्या कभी नही भूल सकते ।


अगर आपके पास भी है डर की सच्ची या काल्पनीक तस्वीरे तो हमे जरूर भेजे । हम आपके नाम के साथ पोस्ट करेंगे ।

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