नमस्कार दोस्तों, आप लोगों को इतना लम्बा विलम्ब करवाने के लिए मैं क्षमा चाहता हूँ और अपनी एक और स्मृति में आयी घटना प्रस्तुत करता हूँ। मैं आज एक पुरुष का जिक्र करने जा रहा हूँ जिन्होंने अपनी तंत्र विद्या की शक्ति से अंग्रेजो को भी प्रभावित किया था। मैं जिनता उनके बारे में जानता हूँ उसका विवरण इस प्रकार है। उन्होंने अपनी तंत्र शिक्षा मात्र दस साल की उम्र से ही शुरू की थी
Photo by Heorhii Heorhiichuk from Pexels रिष्ट बाबा |
नमस्कार दोस्तों, आप लोगों को इतना
लम्बा विलम्ब करवाने के लिए मैं क्षमा चाहता हूँ और अपनी एक
और स्मृति में आयी घटना प्रस्तुत करता हूँ। मैं आज एक पुरुष का
जिक्र करने जा रहा हूँ जिन्होंने अपनी तंत्र विद्या की शक्ति से
अंग्रेजो को भी प्रभावित किया था। मैं जिनता उनके बारे में जानता हूँ उसका विवरण इस
प्रकार है। उन्होंने अपनी तंत्र शिक्षा मात्र दस साल की उम्र से
ही शुरू की थी, तंत्र और मंत्र का उनका तरीका सबसे अनूठा था, जैसा की मैंने आज तक नहीं किसी
और को उस तरह नहीं देखा। उन्होंने कभी किसी को अपना शिष्य नहीं चुना और न ही
कभी किसी का भला करने के बदले एक रूपए तक नहीं लिए। रिक्शा चलाके वो अपनी जरूरतों को
पूरा करते थे और उनकी पत्नी और बच्चे गाँव में रहते थे।
जिनसे
मिलने वो खुद जाया करते थे उन्हें कभी कानपुर नहीं बुलाया था उन्होंने। उसकी वजह थी उनका
घर। दोस्तों कानपुर से बाहर जाजमऊ की तरफ जाते वक़्त एक जगह
पड़ती है जो की पेड पौधों से भरी हुयी है और वहां एक सूखा सा नाला पड़ता है जिसे
लोग गंगू बाबा का नाला कहते हैं। उसे कानपुर की सबसे खतरनाक
जगह माना जाता है। उसकी वजह यह है की जमाने से वहां अक्सर लाशें पायी जाती रही हैं।
अब ये सिलसिला थोडा कम हुआ है मगर फिर भी वहां अक्सर लाशें मिलती हैं। कुछ आत्माओ का शिकार
होते हैं तो कुछ गुंडे बदमाशों का और उनकी लाशो को अक्सर वही
पर ठिकाने लगा दिया जाता था। दिन के वक़्त भी वहां कोई भी भटकना पसंद नहीं
करता और रात का सन्नाटा तो सीधा सीधा मौत की निमंत्रण है। वही नाले से कुछ
दूर करीब दो सौ मीटर की दुरी पर ही उन्होंने अपनी एक छोटी सी
झोपडी बना रखी थी। वहां शायद उनके जैसा ही व्यक्ति
रह सकता था क्योकि उनकी मृत्यु के बाद वहां कोई भी रहने वाला नहीं बचा और न ही
कोई आजतक वहां रहता है।
अब मैं आप लोगों को उनके नाम से अवगत करवाता हूँ। उन्हें लोग रिष्ट
बाबा के नाम से जानते थे। ये उनका असली नाम नहीं था दरअसल जब वह
करीब उन्नीस साल के थे तब एक अंग्रेज हिन्दुस्तान आया। उस वक़्त हिन्दुस्तान आज़ाद
हुए कई साल बीत चुके थे मगर वो अंग्रेज़ ब्रिटेन से अपनी किसी
परेशानी को लेकर हिन्दुस्तान बाबा के गुरु से मिलने आया था। क्योकि उनके गुरु आज़ादी से
पहले कई अंग्रेजो के संपर्क में रहा करते थे और उन्होंने भी रिष्ट
बाबा को ही अपना शिष्य चुना था और किसी को नहीं। उस अंग्रेज़ को बाबा के गुरु तो
नहीं मिले लेकिन बाबा ने उसकी समस्या का समाधान किया। उसे
अपने निवास स्थान को लेकर कोई समस्या थी ब्रिटेन में लेकिन जब बाबा ने उसकी
समस्या का समाधान यही से कर दिया तो उसने खुश होकर बाबा को
एक सोने की हाथ घड़ी उपहार दी, जिसे वो बिलकुल भी स्वीकार नहीं कर
रहे थे मगर उसने उनके गुरु और अपने आज़ादी से पहले वहां रहने वाले
पुरखो की निशानी के रूप में उन्हें वो घडी दी जिसे उन्हें स्वीकार करना पड़ा।
ये बात बहुत
प्रचलित हुई एक बाबा को सोने की रिष्ट वाच दी गयी थी। ये वाच अब उनकी
पहचान बन गयी पहले रिष्ट वाच वाले बाबा तो बाद में घडी वाले
और उसके बाद रिष्ट बाबा नाम से उनका लोगो ने नाम प्रचलित कर दिया था जो की मरते
दम तक इसी नाम से पहचाने जाते रहे। ये घटना करीब इक्कीस साल पहले
की है। मेरे मामा जी बहुत ही सोम्य स्वाभाव के व्यक्ति के जिसके कारण रिष्ट बाबा और
मामा जी के अच्छी खासी दोस्ती थी। उसके बावजूद मामा जी ने कभी उनसे कोई मदद नहीं मांगी
थी बस अच्छा व्यवहार था दोनों के बीच। जिसकी वजह से रिष्ट बाबा अक्सर अपने अनुभव उनसे
बांटा करते थे। और मामा जी को भी उनके अनुभव सुनने के सदैव
उत्सुक रहते थे। अब मामा जी हमे उनके अनुभव अक्सर सुनाते रहते हैं। जब मैं छोटा था तो
मुझे सर्दी बहुत लग जाया करती थी और में खाना पीना भी छोड़
दिया करता था। उस वक़्त मेरी उम्र करीब डेढ़ साल थी।
मेरी सेहत में जैसे ही सुधार होने लगता
था वैसे ही दुबारा मुझे सर्दी और निमोनिया हो जाता और मेरी
सेहत फिर से गिर जाती थी। दिल्ली में कई डॉक्टरों को दिखाने के बाद भी मुझमे ये
परेशानी बरक़रार रही। जिसकी वजह से मम्मी अक्सर परेशान रहा करती
थीं। जब मम्मी मुझे लेकर एक बार कानपुर आयीं तो उस वक़्त भी मुझे सर्दी की परेशानी थी।
मामा जी ने वहां के मिलिट्री हॉस्पिटल के डॉक्टरों को दिखाया
मगर वही सिलसिला शुरू रहा। दवा लेकर मैं ठीक हो जाता मगर फिर वही परेशानी
शुरू हो जाती। एक महीने में जब मुझे दो बार निमोनिया हो गया तो
फिर ये मामा जी के लिए भी चिंता का सबब बन गया। डॉक्टर पर डॉक्टर बदलते रहे
मगर जेसा हाल दिल्ली में था वैसा ही यहाँ भी बना रहा। एक दिन जब
रिष्ट बाबा मामा जी से मिलने घर आये तब उन्होंने मुझे देखा और मामा जी ने उन्हें
मेरी कोई परेशानी नहीं बतायी। मगर उन्होंने शायद मेरी परेशानी
को भांप लिया था।
उन्होंने मामा जी से शाम के वक़्त मुझे लेके उनकी झोपडी पर आने को
कहा। शाम होते ही मामा जी और मेरी मम्मी मुझे लेकर उनकी झोपडी पर गए।
वहां पहले से ही एक आदमी और एक औरत अपनी बेटी को लेकर आये
हुए थे। उनकी बेटी उम्र यही कोई उन्नीस बीस के आस पास थी। रिष्ट बाबा अपनी झोपडी के
बहार एक चारपाई पर बैठे हुए थे। पास में उनके एक छोटी सी
बाँस से बुनी हुयी टोकरी रखी थी और एक छोटा सा स्टूल रखा था। मामा जी बताते हैं
के वो अपनी लगभग आधे से ज्यादा शक्तियों को इसी स्टूल पर ही भोग देते थे। रिष्ट बाबा ने
चारपाई के पास एक तरफ दो चारपाई और बिछा रखी थी। जिसपर एक पर वो
व्यक्ति और उनकी पत्नी बैठी थी और दुसरे पर बाबा ने मामा जी और मम्मी को मुझे
लेकर बैठने को कह दिया। और फिर बाबा ने अपनी चारपाई के आगे एक
चटाई बिछायी। फिर वो अपनी चारपाई पर बैठ गए। फिर उन्होंने उन दंपति के साथ आई उस
लड़की को अपने आगे पड़ी चटाई पर आकर बैठने को कहा। लेकिन वो अपनी जगह से नहीं उठी और
अपने पिता को जोर से पकड़ कर बैठ गयी।
उसके माता पिता ने कई बार
उसे वहां बैठने को कहा और जोर दिया मगर वो उठने को राज़ी ही न हुयी। फिर बाबा ने
उसके पिता को जोर जबरदस्ती करने को मना कर दिया। फिर बाबा ने उस
लड़की की तरफ ध्यान से देखा। वो लड़की भी एकटक बाबा को घूरे जा
रही थी जैसे मौका मिलते ही हमला कर देगी। थोड़ी देर देखने बाद
बाबा ने उस लड़की से कहा "क्यों भाई, हमारे पास नहीं
आओगे? सामने आओ तो जरा हम भी देखें
कौन सी चीज़ हो तुम।" फिर बाबा ने दूसरी और जिस तरफ
गंगू बाबा का नाला और झाड़ियाँ थी उस तरफ देखा और एस लगा जैसे उन्होंने किसी
को इशारे कुछ कहा हो। फिर वो दुबारा उस लड़की की तरफ देखने
लगे, अचानक लड़की गिरती लड़खड़ाती सीधा
आकार बाबा के सामने जमीं पर बिछी चटाई पर बैठ गयी। और गुस्से में सर झटकने लगी। बाबा बोले
"बोल कौन है तू?" लड़की की आवाज़ में थोडा भारीपन आ चुका था और वो बोली "बहुत
बड़े बाबा हो तो खुद ही जान लो।" बाबा- "क्या गलती हुयी
बच्ची से? क्यों परेशान कर रखा है इसे?" लड़की पूरी तरह
खामोश हो गयी गयी।
बाबा ने कई बार पूछा मगर कुछ नहीं बोली और
आखें बंद करके बैठ गयी। बाबा ने थोड़ी देर तो पूछा और फिर वो शांत होकर कुछ मंत्र
पढने लगे और अपनी बाँस की टोकरी से एक लकड़ी का टुकड़ा निकाला। देखने
में वो टुकड़ा चन्दन की पालिश की हुयी लकड़ी का लग रहा था। उन्होंने उस टुकड़े
पर कुछ ऊँगली से बनाया और फिर उसे अपने कान के पास लगा कर बैठ गए
जैसे के हम आजकल मोबाइल का इस्तेमाल सुनने के लिए करते हैं। थोड़ी देर उन्होंने उसे अपने
कान के पास लगाये रखा और फिर उसके बाद वापस अपनी टोकरी में
रख दिया। अब बाबा ने लड़की के पिता को आगे बुलाया और कहा की इसके बाल
खोल दो। जैसा बाबा ने बोल उन्होंने वैसा ही किया। बाबा ने अब फिर से
पूछना शुरू किया "कौन हो तुम?" अभी भी कोई जवाब नहीं। बाबा ने अब थोडा
कड़क आवाज़ में पूछा "खुद बोलता है या बुलवाऊ?" लड़की बोली लेकिन
थोडा मरदाना आवाज़ की गूंज थी उसके गले में "बरम हूँ
मैं।" "क्यों परेशान कर
रखा है इस बच्ची को?" बाबा ने पूछा। "मैंने इसे कोई परेशानी नहीं दी है। ये मुझको अच्छी लगी बस इसलिए मैं
इसके साथ हूँ।" उसने जवाब दिया।
"ह्म्म. अब जरा इसके
माता पिता को तो बता की तूने इसे कहाँ देखा जो इसके पीछे लग गया?" बाबा ने लड़की के माता पिता
की तरफ इशारा करते हुए कहा। लड़की ने माँ बाप की तरफ देखा और
कहने लगी की "ये मेरे पास खुद आई
थी सुबह के वक़्त, नहाई हुयी सी थी, बाल खुले थे और
बहुत अच्छी खुशबु आ रही थी इससे। बस तभी से मैं इसपर मोहित
हो गया और इसके साथ हूँ।" ये बात सुनकर उसके माता पिता
दोनों ही दंग रह गए। बाबा ने विनम्रता से कहा "ये मनुष्य कन्या है, इस तरह का बर्ताव तुम्हारे
लिए ठीक नहीं है। जो कुछ चढ़ावा चाहिए ले लो और इस कन्या के ऊपर
से अपना साया हटा लो।" "ऐसा बिलकुल नहीं हो
सकता, मुझे ये कन्या
चाहिए। ये जबसे मेरे पास आना शुरू हुयी है तब से मैं इसके पीछे लगा हूँ और तुम
कहते हो इसी सुन्दर कन्या को मैं चढ़ावे के लिए छोड़ दूँ।" लड़की ने
अपनी जांघो पर ताल ठोकते हुए कहा जैसे के कोई पहलवान द्वन्द की चुनौती दे रहा हो। "प्यार से कह रहे हैं, मान जाओ। तुम्हारी भी इज्ज़त रह जाए और हमारी
भी।" बाबा ने फिर से आग्रह किया। "नहीं। हम बरम हैं।
हम यूँ ही अपनी बात से नहीं पलट जाते।" लड़की ने फिर से
बाबा को चुनौती पूर्ण रूप में जवाब दिया। "नहीं मानोगे?" बाबा ने आखिरी बार जेसे पूछा
हो। और उसने भी सर हिल कर ना में जवाब दिया। फिर बाबा ने उधर
दूसरी झाड़ियों की तरफ देख कर कहा "जमादार, देख बरम बाबा आये
हैं। ज़रा खातिरदारी कर तो। फालतू में बच्ची को परेशान कर रखा है।" अचनाक लड़की उछल सी
पड़ी मगर चटाई से बहार नहीं जा पाई और बडबडाने लगी "हम
बरम हैं इससे कहो अपनी झाड़ू पीछे रखे। मना करो इसे मना करो। आः आअह.... "
उसकी आवाज़ से एस लगने लगा की जेसे उसे मार रहा हो। वो लगातार ये रटे
जा रहा था की हम बरम हैं इस गंदे को मुझसे दूर करो। मगर बाबा ने
कोई नरमी नहीं दिखाई। करीब पांच मिनट उसके चिल्लाने के बाद बाबा ने फिर से कहा
"जमादार ठीक से, अच्छे से सेवा कर एक सिगरेट पिलायेंगे हम
तुझे।" करीब पंद्रह मिनट के बाद बाबा ने रुकने को कहा उसका चिल्लाना कम
हो गया मगर कराह अभी भी बाकि थी। फिर बाबा ने कहा "अब जान गए मैं कौन हूँ?" उसने अब हाथ जोड़े
और कहा "बाबा मुझे बस भोग देदो मैं चला जाऊंगा।" "नहीं, अब तो तुम्हे एक शक्कर का दाना भी नहीं मिलेगा।
पहले जब
आराम से तुमसे पूछा था तो हमको बता रहे थे की हम बरम हैं। अभी
तो तुम्हारी और सेवा होगी तभी तुम जाओगे।" बाबा ने आराम से उसे उसकी गलती याद दिलाई और
आगे जमादार से अपना काम फिर करने को कह दिया। उसका फिर चिल्लाना
और खुद बचाना शुरू हो गया मगर सब कुछ उस चटाई की ऊपर ही
उससे बहार उसका कोई अंग नहीं गया था। बाबा ने फिर उसकी
सेवा रुकवाई और पूछा "बताओ अब क्या इरादा है? छोड़ोगे इस बच्ची को
या नहीं?" "बाबा जो कहोगे वही करूँगा मगर मेरी जगह मुझसे मत छिनना।" उसने
हाथ जोड़कर बाबा से कहा। बाबा - "दुबारा इस बच्ची को परेशान करोगे?" वो - नहीं। बाबा - " ये
तुम्हारी जगह पर बार बार आयेगी तब भी?" वो - "तब भी
कभी परेशान नहीं करूँगा।" बाबा - "ये वहां बैठे खेले
कुछ भी करे इसकी तरफ देखने की हिम्मत करोगे?" वो - "कभी
नहीं।" बाबा - "चाहे ये वहां पर किसी भी वक़्त आये जाए और चाहे उस जगह पर
पेशाब भी करे। कभी छुओगे इसे?" वो - "कभी नहीं बाबा कभी नहीं।
अब हमे जाने दो।" अब बाबा थोड़ी देर
शांत रहे और वो लड़की तब तक हाथ जोड़कर बैठी रही। उसके बाद
वो अचानक गिर गयी। बाबा ने उसके माता पिता को उसे उठाने को कहा। उन्होंने उसे
उठा कर चारपाई पर लिटा दिया। अब बाबा ने उसके माता पिता से
पूछा की "इसे क्यों इसे पीपल पर जल चढाने ले गए थे जिसकी कभी कोई पूजा नहीं हुयी थी?" परेशान सी उसकी माँ
ने जवाब दिया "बाबा जी, हमे पंडित ने बताया था की हमारी बेटी मंगली है जिससे अगर हम इसकी
शादी करेंगे तो इसके विधवा होने का खतरा है। और इस निवारण
का उपाय था की मेरी बेटी किसी पीपल के पेड पर हर सोमवार और शनिवार को जल चढ़ा
कर उसकी परिक्रमा करे। इसी वजह से हम उसे सुबह नेहेलवा कर
पीपल पर जल चढ़वाने ले जाते थे। हमने अगल सुनसान जगह का पेड इसलिए चुना था क्योकि अगर
हम वहीँ अपने घर के पास वाले पेड पर जहाँ सब पूजा करते हैं, वहां ले जाते तो
सबको मालूम पड़ जाता की मेरी बेटी मंगली है और फिर उसके रिश्ते में
अडचने आने लगती।" बाबा ने सब ध्यान से सुना और फिर कहा की "इस बच्ची को एक बार
गंगा स्नान करवा देना और आगे से इस तरह की गलती करने से
बचना।"
अब उस लड़की को होश आ चुका था। बाबा ने उससे उसकी हालचाल पूछी।
फिर उसके घरवालो के बारे में। इससे उन्होंने ये सुनिश्चित कर
लिया की अब वो पूरी तरह ठीक है और उस बरम की छाया का उसके दिमाग पर कोई प्रभाव नहीं
पड़ा है। ये सारी बात गुज़र जाने के बाद बाबा जी ने मेरी ओर देखा। फिर मेरी
मम्मी को मुझे गोद में लेकर सामने उस चटाई पर बैठने को कहा। मम्मी मुझे लेकर उस
चटाई पर बैठ गयीं। मैं उस वक़्त सोया हुआ था, बाबा ने मुझे देखा
और कहा "बड़ा छलावा खेलते हो। जरा इधर तो देखो।" मामा जी बताते हैं
की बाबा के इतना कहने पर ही मैं नींद से जाग गया और बाबा की तरफ
देखने लगा। मम्मी इस बात से हैरान हो गयीं की इतना छोटा बच्चा कैसे इतनी
आसानी से बाबा की बात समझ रहा है। बाबा ने अब मेरी तरफ
कुछ देर तक बड़े ही ध्यान से देखा। फिर अपनी वही चन्दन जेसी लकड़ी को उठाया और उस पर
न जाने क्या ऊँगली से बनाने लगे और फिर उसे कान के पास
लगाया। थोड़ी देर इसे ही रहने के बाद उन्होंने मम्मी से पूछा "छः महीने हो गए इसे ये परेशानी होते होते। जेसे ही थोड़ी सेहत ठीक होती
है फिर से बीमार पड़ जाता है।" मम्मी ने बाबा की बात का उत्तर
हाँ में दिया।
बाबा फिर बोले "बेटी, ससुराल में तुम्हारे घर के
सामने कोई नीम का पेड है?" मम्मी "नहीं बाबा, नीम का तो नहीं है शहतूत का है।" बाबा ने फिर थोड़ी
देर सोचा और फिर से उस लकड़ी को कान में लगाया। फिर से बोले
"नहीं बिटिया, नीम का पेड है ध्यान से याद करके बताओ।" मम्मी ने थोडा सोचा
और फिर से बताया की नहीं बाबा वहां घर के सामने सिर्फ शेहतूत का ही पेड है। बाबा ने इस बार वो
लकड़ी का टुकड़ा कान में लगाया और बोले "सही सही पता करके बता वरना कुछ नहीं
मिलेगा।" फिर बाबा थोड़ी देर मौन रहे आँखें बंद करके। उसके बाद जब आखें खोली
तो कहने लगे "बिटिया, तुम्हारे घर के आगे सड़क है उसके बाद एक
पार्क बना हुआ है?" मम्मी "हाँ बाबा।" बाबा "उस
पार्क में शेहतूत का जो पेड है वो तुम्हारे घर के बिलकुल सामने पड़ता है न ?" मम्मी "हाँ
बाबा। एक दम सामने ही है।" बाबा "बिटिया उसी पार्क
में तुम्हारे घर की सिधान पर पार्क के दूसरी तरफ एक नीम का पेड़ है। बोलो सही है?" मम्मी "हाँ
बाबा बिलकुल सही है।"
बाबा "वो पेड जिसके घर के
सामने है वो औरत किसी को भी उस पेड की पूजा नहीं करने देती। इसलिए उस पर शैतान का वास हो
गया है। पिछली बार जब तुम इस बच्चे को लेकर यहाँ से अपनी
ससुराल गयी थी तो उस रस्ते से गुजरी थी न?" मम्मी "हाँ बाबा गुज़रे थे
हम, क्योकि दुसरी तरफ सड़क पर खुदाई हुयी
थी।" बाबा "बिटिया वो शैतान तभी से इसे चपेट करता है। जिससे ये बार बार
बीमार पड़ता है और खुद ठीक होकर फिर बीमार पड़ जाता
है।" मम्मी "तो फिर बाबा इसका कोई उपाए बताईये। ये कैसे ठीक
होगा।" बाबा "बिटिया अब ये ठीक रहेगा। इसके ऊपर जो था वो किनारे बैठा
है।" बाबा ने झाड़ियों की तरफ इशारा करके बताया। बाबा
"समधियाने से मेहमान आयें हैं इनकी तो खातिरदारी अच्छे से
करेंगे।" हमारी भाषा में बेटी या बेटे की ससुराल को समधियाना कहा जाता
है। इसके बाद बाबा ने मम्मी वापस चारपाई पर बैठने को कहा और एक सिगरेट
सुलगा कर पास के स्टूल पर रख दी। देखते ही देखते वो सिगरेट
मात्र १ मिनट में पूरी की पूरी ख़त्म हो गयी। जब मामा जी ने इसके बारे में पूछा तो बाबा ने
बताया की जमादार से काम करवाया था तो ये उसकी का भोग था जो उसने ले लिया।
उसके बाद मामा जी
ने पूछा "बाबा आज ये जो देखा हमने, पीपल और नीम दोनों
पर प्रेत आत्माएं थी। मगर इन पेड़ो की तो पूजा भी होती है।
तो ये कैसे पता चलेगा की कौन सा पेड पूजने लायक है और कौन सा नहीं?" बाबा ने जो बताया
"बेटा, नीम पीपल और बरगद ऐसे पेड होते हैं जिनपर आसानी से
शक्तियां वास करने लगती हैं। जब ये पेड छोटे होते हैं तो इनपर किसी का वास नहीं होता। तब
अगर इन पेड़ो की पूजा की जाए तो ये पूजने लायक पेड हो जाते हैं और इनपर कोई बुरी शक्ति वास
नहीं कर पाती। लेकिन अगर इन पेड़ो को हज़ार पत्तियाँ आने तक पूजा न
जाये तो फिर इनपर बुरी शक्तियां वास करने लगती हैं और फिर ये पेड कभी पूजने लायक
नहीं हो पाते। इसलिए जो पेड छोटेपन से न पूजे गए हों उनकी
पूजा कभी मत करना। और बेटा अगर इसे पेड़ो को कभी हटाना हो तो हज़ार पत्तियां आने
से पहले ही हटा देना चाहिए वरना इस पर अगर किसी का वास हो
गया तो हटाने पर वो तुम्हारे पीछे लग जायेगा।
" बाबा की बताई बातों
को आज भी मामा जी हमे बताते हैं। और उनकी सिखाई बातों का पालन भी करते हैं। रिष्ट बाबा एक
सच्चे साधक महा पुरुष थे। वो अपनी चन्दन की लकड़ी के जरिये अपनी
शक्तियों से बात करा करते थे जेसा मैंने आज तक किसी और साधक को करते नहीं देखा। और
पूछने पर व्यंगात्मक तरीके से कहा करते थे "ये तो हमारा
टेलीफोन है बिना तार का।" सच कहूँ तो आज जब में मोबाइल
चलता हूँ तो अक्सर उनकी याद आ जाती है। उन्हें मैंने काफी वृद्ध अवस्था में देखा था लेकिन
वो मरते दम तक कभी भी किसी के मोहताज नहीं हुए। आत्म निर्भर
रहे और वेसे ही शरीर का भी त्याग किया। अठत्तर वर्ष की उम्र में भी वो
रिक्शा चलाते थे और नवरात्रों में नौ दिन का व्रत भी रखते थे। एक बार मामा जी ने उनसे ये
बात पूछी थी की नौ दिन का व्रत होते हुए भी वो रिक्शा
कैसे चला लेते है? बाबा ने बताया था की रिक्शा वो नहीं चलते वो तो उनका सेवक 'जमादार' चलाता है। वो तो बस
उस पर नियत्रण रखते हैं।
मामा जी ये भी बताते हैं की बाबा को अक्सर गंगू
बाबा के नाले के मरे हुए लोग आकर मिलते थे। जिनमे से कई को
वो अपनी सेना में शामिल करते थे तो कई को वापस भगा देते थे। उनकी इस शक्ति सेना में
कानपुर के इतिहास में शामिल अग्रेज भी थे जिन्हें भोग में
सिर्फ इंग्लिश शराब ही बाबा दिया करते थे। उनकी ये सेना किसी भी शक्ति से टक्कर
लेने में और हराने सक्षम थी। उन्होंने इन सब की वजह से जिंदगी में बहुत
से कष्ट भी झेले थे जो शायद किसी आम इन्सान के बस के बाहर है। इसलिए उन्होंने कभी किसी
को अपना शिष्य नहीं बनाया। आत्मनिर्भरता की सच्ची तस्वीर
मैंने उन्ही में देखि थी।
सच बताऊ तो मैंने उनसे ज्यादा और उनके जैसा दूसरा आजतक नहीं
देखा। उनकी मृत्यु के बाद उनके परिवार वालों ने गाँव से आकर
उनका अंतिम संस्कार किया और उनका सारा सामान यहीं रख कर जो बाँट सकते थे बाँट
दिया और बाकि वहीँ छोड़ कर चले गए। उनके गाँव के घर में आज भी
उनकी तस्वीर लगी है जिसके नीछे उनकी वही सोने की घड़ी रखी है जिसने उन्हें नया नाम
दिया था। धन्यवाद।
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