रूह

उस गाव की आबादी बहुत कम थी तकरीबन ५०० होगी. वो गाव सिटी से बहुत दूर था, गाव मे सरकारी सुविधाए सिर्फ नाम के लिए थी. स्कुल है तो टीचर नहीं. अस्पताल है तो डाक्टर नहीं एषा था वो गाव मगर लाईट आ गई थी उस गाव मे 

रूह
Photo by Nathan Wright on Unsplash






नमस्कार दोस्तो 

मै आतिश आज आपको महाराष्ट्र मे घडी एक सच्ची कहानी बताता हु..........

मगर यहाँ पे उस गाव का नाम नहीं बताऊंगा .............

अब मे अपनी कहानी पे आता हु .............. 


उस गाव की आबादी बहुत कम थी तकरीबन ५०० होगी. वो गाव सिटी से बहुत दूर था, गाव मे सरकारी सुविधाए सिर्फ नाम के लिए थी. स्कुल है तो टीचर नहीं. अस्पताल है तो डाक्टर नहीं एषा था वो गाव मगर लाईट आ गई थी उस गाव मे उस गाव मे सरपंचजी के नाम पर एक हवेली थी वो २ यूपी वाले भाइयो ने खरीद ली थी और वो दोनों भय्ये सगे भाई थे. कुछ दिन बाद वो भाई उनके परिवार के साथ वहा पे रहने के लिए आ गये. बड़े भाई को ८ और १० साल की दो लड़किया थी और छोटे भाई को छोटासा लड़का था. इसीलिये वो सभी का लाडला था. सभी उससे बहुत प्यार करते थे. उस गाव के लोग भी उस बच्चे को प्यार करते थे गाव के लोग उसे उठाकर घुमाने के लिए ले जाते थे. उस बच्चे की वजह से उस परिवार ने मराठी भाषा सिखा ली और वो अच्छी तरह से मराठी बोल लेते थे. उस बच्चे का नामकरण भी उन लोगो ने महाराष्ट्रियन तरीके से किया. उसका नाम “राजू” रखा. राजू की वजह से ये परिवार गाववालो मे घुल मिलकर रहने लगा. 


मगर एक दिन उस बच्चे के पेट मे अचनाकसे ही दर्द शुरू हुआ और उसे बुखार भी चढ़ गया उसे अस्पताल मे दाखिल किया गया और उसपे इलाज भी चला मगर अस्पताल मे दवाई न होने की वजह से उस बच्चे ने दम तोड़ दिया. गाव वालो ने बच्चे के परिवार के साथ मिलकर उस बच्चे को दफ़न कर दिया. बच्चे के जाने से सभी गाव वाले और उस बच्चे का परिवार बहुत ही दुखी था. थोड़े दिनों बाद सभी गाव वालो ने उस परिवार को समजाया की बस करो मातम मगर उस सदमे से कोई भी बहार निकालने को तयार ही नहीं था. बहुत दिन हो गए वो परिवार वैसे का वैसा हि था. अचानक एक दिन उस हवेली मे से हँसाने की और खेलने की आवाजे आने लगी तभी गाववालो ने जाकर देखा तो सभी ने हाथ मे कुछ लिया था और “राजू, राजू“ करके पुकार रहे थे .


मगर वहा कोई नहीं था ऐसा तकरीबन २-४ दिन तक चलता रहा. ये बात उस गाव के सरपंच ने मोरेश्वर बाबा को बताई बाबा ने कहा की सरपंच जी मुझे और २-३ दिन बताते जाओ क्या होता है और क्या नहीं. तो सरपंच जी भी बाबा को हररोज होने वाली बाते बताते थे. बाबाजी को सभी मंजरा समझ मे आया और बाबाजी ने कहा की आने वाली अमावसी की रात को इस का अच्छी तरह से प्रबंध कर दूंगा मै. जिस दिन तय हुआ की उस बच्चे का कुछ न कुछ प्रबंध किया जायेगा उसी दिन सरपंच जी की मौत हो गई. उसी रात से मौत का तांडव शुरू हुआ और अमावसी की रत तक तकरीबन ५० लोग मरे गए इस बात का गाव के लोगो मी खौफ पैदा हो गया. अमावसी की रत ओ बाबाजी ने सभी गाव वालो को और उस बच्चे के परिवार वालो को गाव के नजदीक वाली इमली के पेड़ के निचे इकट्टा किया और वहा ४-५ फुल पॉवर वाली बत्तिय लगाई गाव वालो ने उस बच्चे की हर एक चीज वहा पे जमा कर दी. बाबाजी के कुछ मंत्रो के उच्चारण से वही के पास वाली स्कुल के दिवार पर एक बच्चे की रह दिखाई देले लगी और सभी गाव वालो के टो पसीने ही छुटने लगे. उसी वक्त बाबाजी उस रूह हो उसी दिवार पर कैद कर लिया. 


वो रूह बोलने लगी, “मुझे मेरे माँ के पास रहने दो” ,“मुझे मेरे माँ के पास रहने दो” ये सब होते होते उस परिवार ने भी रो रो के अपना बुरा हाल किया था. बाबाजी ने वहा पे जो आग जलाई थी उसमे ही उस बच्चे की साडी चीजे जला डाली. और चीजे जैसे ही जलकर रख हो गई वैसे ही उस बच्चे की रूह चली गई. सभी गाव वालो ने उस परिवार को पूरी तरह से समझाने का प्रयास किया की आदमी और रूह का कभी मेल नहीं हो सकता. यही बात समझते समझते गाव वालो ने रात वही काट दी .

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