नरयनी part 1

जब मेरे नाना जी ड्यूटी पर हुआ करते थे कंबाइंड हॉस्पिटल में तब वहां एक नरयनी नाम की जमादारिन हुआ करती थी। उनकी बोली और व्यव्हार अत्यधिक सोम्य था। सबसे प्रेमपूर्वक व्यव्हार करना क्या छोटा क्या बड़ा। सब उनके लिए एक जेसे थे। 


नरयनी part 1
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             नरयनी part 1



       नाम - नरयनी पोस्ट - स्वीपर और वार्ड क्लीनर स्थान - कंबाइंड हॉस्पिटल, कानपुर कैंट। 


जब मेरे नाना जी ड्यूटी पर हुआ करते थे कंबाइंड हॉस्पिटल में तब वहां एक नरयनी नाम की जमादारिन हुआ करती थी। उनकी बोली और व्यव्हार अत्यधिक सोम्य था। सबसे प्रेमपूर्वक व्यव्हार करना क्या छोटा क्या बड़ा। सब उनके लिए एक जेसे थे। वो एक स्वीपर थीं फिर भी लोग उनकी बहुत इज्ज़त करते थे। वो वक्त एक तरह से कंबाइनड हॉस्पिटल का सुनेहरा समय था जहाँ सारे कर्मचारी आपस न सिर्फ परिवार की तरह काम करते थे बल्कि घर के लिहाज़ से एक दुसरे के पडोसी भी थे। नरयनी हमारे घर एक सामने वाले एक घर में रहती थीं। अक्सर घर भी आया जाया करती थीं। 


पडोसी होने के नाते भी उनका व्यव्हार बहुत अच्छा था। उनके पति कहीं बाहर काम करते थे, उनके घर में उनके सास ससुर और एक ननद थीं और उनका एक बेटा था। पूरा आस पड़ोस और हॉस्पिटल सब समय एक दम सही चल रहा था जब तक के उस साल की उस होली ने दस्तक नहीं दी थी, जो बाद में वहां दहशत की वजह बनी। होली के दिन की बात है उस दिन हॉस्पिटल की तरफ से वरिष्ठ पदाधिकारियों को रम की बोतलें भेंट की गयी थी। जो सेना के अफसरों को विशेष तौर पर दी जाती है XXX रम। लेकिन उस वक़्त के एक अधिकारी को उसका शौक नहीं था तो उसने वो बोतल नरयनी को दे दी। नरयनी को पीने का शौक था लेकिन सिर्फ खास मौकों पर हमेशा नहीं। इसलिए वो यह बोतल पाकर अत्यधिक खुश हुयीं। नरयनी उस बोतल को लेकर अपने घर आयीं और फिर पीने की तैयारी करने लगीं। 



उन्होंने सारा अपना कार्यक्रम जमा लिया था होली के पापड़ और कुछ व्यंजनों के साथ वो रम पीना चाहती थीं। उन्होंने अपने पीतल के गिलास में रम डाली और पानी वगेरह कुछ नहीं मिलाया था के तभी किसी ने उनको बाहर से आवाज़ दी और वो वेसे ही अपना गिलास रसोई में खास जगह पर छुपा कर चली गयीं। बाहर से जिसने बुलाया था वो उनके रिश्तेदार थे, जो की होली के उपलक्ष पर उनसे मिलने आये थे। रिश्तेदारों की जिम्मेदारी आते ही उन्हें काम काज में लगना पड़ा। उनके लिए खाना बनाना, सारे सेवा सत्कार करना। इनसब कार्यो को निबटाने और रिश्तेदारों से बातचीत करने में उन्हें शाम हो गयी। शाम को रिश्तेदार जब रुख्सत हुए तब जाकर उन्हें थोडा आराम करने का वक़्त मिला। थोड़े आराम के बाद वह रात के खाने की तैयारी करने लगीं। खाना बनाते वक़्त उनका ध्यान उस रम पर गया वो उन्होंने गिलास उठाया उसमे वो आधा गिलास रम अभी भी वेसे ही रखी थी। 



उन्होंने सोचा, अब क्या इस रम को फेंका जाये, न अलग से पानी मिलाया न कुछ वो उसे वो पी गयीं। उनकी ननद ने जिज्ञासावश उनसे पूछा की उसमे क्या था। उन्होंने यथावत सब बता दिया। वो बात को इसे ही नार्मल समझ कर टाल दिया गया। खाना तैयार हो चुका था। सबने खाना खाया और फिर उसके बाद सब सोने चले गए। सुबह उठ कर जब उनकी ननद नरयनी को उठाने गयी तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया और फिर जब उन्हें हिलाया गया तो पता चला के वो मर चुकी हैं। ये कब हुआ कैसे हुआ किसी को कुछ पता ही नहीं चला था। बदन नीला पड़ चुका था। सबने सोचा शायद सांप ने काटा है। उन्हें जल्दी जल्दी उठा कर हॉस्पिटल लाया गया, वहां उन्हें डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। और ये भी स्पष्ट कर दिया की ये सांप के काटने के लक्षण नहीं बल्कि इन्होने कोई ज़हर खाया है। 



मगर ये असंभव था क्योंकि नरयनी जेसी जिंदादिल स्त्री ऐसा नहीं कर सकती थी। ये बात न सिर्फ पूरा स्टाफ बल्कि स्वयं डॉक्टर भी जानते थे। इसलिए उन्होंने घर वालों से पूछा की कल उन्होंने क्या खाया और कोई इसी बात तो नहीं हुयी जिसने उन्हे ऐसा कदम उठाने पर मजबूर किया हो? जवाब सबका स्पष्ट था उन्होंने अपनी अनभिज्ञता जताई और फिर उनकी ननद ने वो रम वाली बात भी डॉक्टर को बता दी। डॉक्टर ने इस बात को फिर सबके सामने स्पष्ट कर दिया की उनकी मौत वो रम पीने से हुयी है। सब इस बात से हैरान थे के ऐसा कैसे हो सकता है वो रम तो स्वयं डॉक्टर ने उन्हें भेंट की थी और वो भी सेना के अफसरों को भेंट दी जाने वाली ट्रिपल एक्स रम ज़हरीली कैसे हो सकती है। इस पर डॉक्टर ने उन सब को समझाया की अगर किसी भी अल्कोहल को चार से आठ घंटे तक अगर किसी पीतल के बर्तन में रखा जाये तो वो ज़हरीला हो ही जाता है। वो भी इतना ज़हरीला के किसी की जान भी ले ले। खैर मौत की वजह पता चल चुकी थी इसलिए थाना पुलिस करने का कोई फ़ायदा नहीं था। इसलिए उसी दिन शाम के करीब ४ बजे तक उनका अंतिम संस्कार का कार्यक्रम निश्चित कर दिया गया। 




सारे रिश्तेदार आते रहे और पूरा इलाका शोकाकुल था। अस्पताल के स्टाफ के बीच भी रोज़ की तरह कोई रौनक नहीं थी। उस स्टाफ की ड्यूटी भी ३ बजे ख़त्म हो गयी उसके बाद पूरा स्टाफ नरयनी की अंतिम यात्रा में थोड़े कदम मिलाने के लिए वहां एकत्र हो गया। डॉक्टर, कम्पाउण्डर, वार्ड बॉय, क्लीनर, और साथी स्वीपर सभी नरयनी की अंतिम यात्रा में शामिल होने आये थे। एक तरह से उस दिन पूरा अस्पताल ही वहां मौजूद था, क्या आसपास वाले क्या दूर रहने वाले सब वहीँ मौजूद थे। नरयनी की एक मित्र व सहकर्मचारी वहीँ पर मौजूद थीं स्वीटी आंटी। जो अक्सर अत्यधिक खुशबू वाले इत्र लगाया करती थीं। लोग अस्पताल में भी अक्सर उन्हें उनकी इत्र की महक से जान जाते थे। उस दिन भी वो इसी तरह ड्यूटी पर आयीं थी। और उसके बाद फिर वहां से नरयनी की शव यात्रा में शामिल होने आ गयीं थी। नरयनी के घर के अन्दर सभी बहुत रो रहे थे और बाहर भी कई लोग अपने आंसू नहीं रोक पा रहे थे। 



अचानक तभी स्वीटी आंटी बेहोश होकर गिर पड़ीं। स्टाफ वालों का ध्यान नरयनी से हटकर आंटी पर गया और फिर सबने उन्हें उठाया और एक जगह पर ले जाकर लेटा दिया और होश में लाने के लिए उनके चेहरे पर पानी की छींटे मारी। मगर उन्हें कोई होश नहीं आया। वहां मौजूद हॉस्पिटल स्टाफ में से कई लोगो ने जांच की सब नार्मल लगा मगर उन्हें होश नहीं आ रहा था। आनन् फानन में सब उन्हें उठाकर हॉस्पिटल ले गए वो बेहोश ही रहीं। उस वक़्त मेरे नाना जी हॉस्पिटल में ही थे उनकी ड्यूटी का समय था उस वक़्त, जैसे ही आंटी को वहां के मरीज़ वाली पलंग पर लेटाया गया उन्हें होश आ गया। लेकिन उन्होंने तुरंत मेरे नाना जी देख कर चिल्लाना शुरू कर दिया। "दुलारे भईया, हम हैं। हमको न लेटाओ यहाँ, हमको सुई लगवाने से बहुत डर लगता है।" वो चिल्लाते चिल्लाते बोली। मेरे नाना जी का नाम लेते हुए जब वो ये शब्द बोलीं तो उनके बोलने के अंदाज़ से नाना जी और बाकि स्टाफ तुरंत समझ गए की ये तो नरयनी है। मगर सब बहुत हैरान थे इस बात से। क्योकि वहां मौजूद सबका मानना था की किसी की भी जब मृत्यु होती है तो उसकी रूह तेरह दिन बाद भटकती है। लेकिन आज ये बात गलत साबित हो गयी थी। 



उनके आस पास से सब हट गए सिर्फ मेरे नाना जी और एक व्यक्ति उस वक़्त वहां डटे रहे। वो थोडा बहुत चिल्लायीं मगर उनका स्वाभाव वो नहीं था जेसा की हुआ करता था। अब नरयनी बहुत उखड़ी और गुस्सेल स्वाभाव से बात कर रही थी। एक पल को रोतीं और दुसरे ही पल हंसती वहां मौजूद लोगो को देख कर फिर अचानक भागने की कोशिश करतीं। स्वीटी आंटी को वहां के लोगो ने पलंग से बाँध दिया और फिर उनके घर वालो को खबर कर दी। डॉक्टर ने उन्हें जबरदस्ती एक नींद का इंजेक्शन दिया जिससे वो थोड़ी देर के लिए शांत हो गयीं। वहां मौजूद कम उम्र के कर्मचारियों की हालत ख़राब हो गयी थी। जो उन्होंने देखा वो अविश्वस्निए था। जिसकी लाश सामने पड़ी हो वो वहीँ पर मौजूद किसी पर भी कैसे सवार हो सकता है? ये सवाल सबके दिमाग में हथोड़े बजा रहा था और दहशत के बादल वो वेसे ही बरसे जा रहे थे उनपर। डॉक्टर ने ये सोच कर उन्हें नींद का इंजेक्शन दिया था की शायद उन्हें नरयनी की मौत का सदमा पहुंचा होगा, थोड़ा सो लेंगी तो ठीक हो जाएँगी। 



लेकिन उस इंजेक्शन का असर दस मिनट से ज्यादा नहीं रहा और वो दुबारा होश में आ कर वापस उलटी सीधी बातें करने लगी। डॉक्टर भी इस बात से हैरान हो गए की जो इंजेक्शन किसी भी इंसान को आठ घंटे के लिए सुला सकता है उसका असर दस मिनट में कैसे ख़त्म हो गया? सारा तमाशा सा चल रहा था और स्टाफ तमाशाबीन बनकर सब देख रहा था। डर की वजह से कुछ लोग तो तुरंत हॉस्पिटल छोड़ कर भाग गए थे। कुछ देर बाद स्वीटी आंटी के घर वाले आ गए, और वो लोग उन्हें वेसी ही हालत में घर ले गए। उधर दूसरी तरफ नरयनी की लाश का निश्चित समय पर अंतिम संस्कार कर दिया गया। घटना पड़ोस की ही थी इसलिए नाना जी ने घर आ कर हॉस्पिटल में क्या क्या हुआ किसी को कुछ नहीं बताया। डर ने नाना जी के मन में भी कहीं न कहीं घर बना लिया था, सिर्फ इसलिए कहीं नरयनी की रूचि उनके परिवार की तरफ न जाग जाए। खैर वो रात में खाना खाने के बाद सो गए दिन भर की घटना को याद करते करते। उस भ्रम के बारे में सोचते हुए के तेरह दिन से पहले ऐसा कैसे हो गया? अगले दिन स्वीटी आंटी हॉस्पिटल नहीं आयीं। 



सब वजह जानते थे इसलिए किसी ने दुबारा मालूम करने की कोशिश नहीं की। तीसरे दिन जब आंटी हॉस्पिटल आयीं तो सबने उन्हें इसे घेर लिया जैसे के किसी बड़ी हस्ती को भीड़ घेर लेती है। सब यहीं जानना चाहते थे की उनके साथ ऐसा क्यों हुआ और वो ठीक कैसे हुयीं मगर सबके प्रश्नों की शुरुआत हलचल पूछने से ही शुरू हुयी। धीरे धीरे सब मुख्य विषय पर आ गए वो सारे सवाल बरसा दिए गए उनपर। उन्होंने बताया की जब वो नरयनी के घर पर सब कुछ होते हुए देख रहीं थी तो उन्हें सड़क की तरफ जो की नरयनी के घर से करीब पंद्रह कदम की दूरी पर है, वहां एक औरत को देखा बिलकुल नरयनी जैसी ही थी मगर उनके साथ एक आदमी और था। उन्होंने इसे सिर्फ चेहरे के मेल का एक संयोग समझा और उस तरफ से ध्यान हटा लिया जब दुबारा उस तरफ देखा तो वहां कोई आदमी नहीं था सिर्फ वो औरत खड़ी वहां पर रो रही थी। 



उसका चेहरा अब साफ़ दिख रहा था, वो नरयनी जैसी नहीं नरयनी ही थी। जब स्वीटी आंटी गौर से नरयनी को देखती रही तो नरयनी ने रोना बंद कर दिया और बिना कदम हिलाए बढती हुयी सीधा उनके सामने २ कदम दूर खड़ी हो गयी। ये देख कर वो बहुत ही ज्यादा बुरी तरह डर गयीं और उसके बाद उन्हें कुछ नहीं याद के क्या हुआ और उनकी आँख अगले दिन सुबह खुली। उनके शरीर में बहुत कमजोरी लग रही थी इसलिए वो हॉस्पिटल न आ सकीं। आगे स्टाफ ने उन्हें बताया के उनके बेहोश होने के बाद वहां हॉस्पिटल में क्या क्या हुआ और उन्हें कैसे उनके घर वाले आकर घर ले गए थे। सब आगे की घटना जानने के लिए उत्सुक थे इसलिए उन्होंने आखिरकार पूछ ही लिया के वो कैसे हुयीं? उन्होंने इस बात से अनभिज्ञता ज़ाहिर की मगर वो बताया जितना के उनके पति ने उन्हें बताया था। वो ये था के जब उन्हें हॉस्पिटल से घर ले जाया जा रहा था तो बिलकुल होश हवास में नहीं थी आंखें बंद थी और न जाने क्या क्या बोले जा रहीं थी। उनके पति उन्हें घर ले जाने के बजाये सीधा चर्च(गिरजाघर) लेकर गए। 



वहां पर उस चर्च के महंत(father) और ३ नन ने मिलकर कोई क्रिया की थी। जिसमे उन्होंने एक घेर सा बना कर उसके अन्दर उन्हें बैठा दिया था और ३ तरफ से नन और एक तरफ से फादर ने उन्हें घेर रखा था। उसके बाद नरयनी की आत्मा से सवाल जवाब भी किये, जिसमे नरयनी ने बताया की वो स्वीटी के इत्र की खुशबू की तरफ आकर्षित हुयी, इसलिए वो आंटी पर सवार हो गयी थी। उसके बाद नरयनी की रूह को आंटी के शरीर से हटा दिया गया। नरयनी की रूह का क्या हुआ क्या नहीं उन्हें नहीं पता था। जब स्टाफ वालो ने पूछा के नरयनी के साथ जो आदमी था उसके बारे में फादर ने कुछ बताया तो उन्होंने बताया की अगर वो होश में होती तो फादर से जरुर पूछती मगर नरयनी के साथ कोई आदमी था ये बात सिर्फ उन्हें ही पता थी और उसके बाद उन्हें होश सीधा अगले दिन सुबह आया था। 



इसका मतलब साफ़ था की स्वीटी आंटी के ऊपर जो सवार थीं वो नरयनी ही थी मगर उनके साथ जो आदमी दिखा था उसकी कोई छाया तक स्वीटी आंटी पर नहीं पड़ी थी। वरना उसके बारे में भी चर्च के फादर कुछ न कुछ जरुर बताते। स्वीटी आंटी के साथ घटी ये घटना बहुत तेज़ी से पूरी कॉलोनी में फ़ैल गयी। जो समझदार थे वो समझ सकते थे मगर कुछ लोग अत्यधिक इस घटना से डर चुके थे और डर अक्सर वहम का कारण होता है। इसलिए वहम की वजह से अक्सर लोग ये कहते के उन्होंने नरयनी को देखा है, जो बात सरासर गलत होती थी। वो सिर्फ वहम से डरते थे। 


क्योंकि पूछे जाने पर की "नरयनी ने कौन से कपडे पहने थे?" लोग अक्सर अपने वहम के जोगे में नरयनी की तस्वीर बयां करते थे। नरयनी को जब स्वीटी आंटी ने देखा था तब वो उस कपडे में नहीं दिखी थी जिसमे वो मरी थी। बल्कि उस कपडे में दिखती थी जो हॉस्पिटल स्टाफ की ड्रेस थी। जिसकी वजह सिर्फ एक अद्भुत सच्चाई थी जिसे मैंने बाद में जाना। और कुछ लोग अक्सर अपने वहम में उसे उसी कपड़ो में देखते जिसमे उसकी मृत्यु हुयी थी, और कुछ लोग अपने वहम की चादर में। to be continued...  बची हुई घटना  2nd पार्ट में  बहुत बढ़ी कहानी है  

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