Photo by Vishnu Prasad on Unsplash
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एक बार अजय रेल से यात्रा कर रहा था । उसे बनारस उतारना था । रात 11 बजे बनारस स्टेशन आने वाला था । रात हो चुकी थी । बनारस की गाड़ी में अजय एक खिड़की से अँधेरे में गुजरते हुए पेड़ो को देख रहा था । अचानक कब उसकी आँख लग गई ये उसे पता ही नहीं चला । जब अजय की आँख खुली तो ट्रेन थम्ब चुकी थी । और प्लेटफार्म पर अँधेरा पूरी तरह फैला हुआ था । ऊपर से ठण्ड का मौसम था । अजय ने घडी को है में सीधा कर देखा तो रात के 12:40 हो रहे थे । अजय समझ चूका था की उसका बनारस पीछे रह गया है ।
अजय ने तुरंत अपना बैग उठाया और रेल से उतरा । उसके उतारते ही रेल का इंजन झट से शह्ह्ह्ह् आवाज किया और poooooo की आवाज सुनाई दी । रेल चल पड़ी और धीरे धीरे सामने कोहरे में कही गायब हो गई ।
अजय ने प्लेटफार्म पे टहलना चालू किया । प्लेटफार्म पर एक बोर्ड लगा था जिसपे स्टेशन का नाम लिखा था । पर उस बोर्ड से पेंट झड़ जाने के कारन नाम पढ़ना असंभव लग रहा था । प्लेटफार्म पर न कोई कुत्ता था न कोई इंसान । सुनसान लग रहा था पूरा प्लेटफार्म ।
अचानक ठण्ड ने जोर पकड़ा । अजय ने सोचा रात किसी तरह यही काट ली जाये । अजय ने अपनी बैग से चादर निकाली और जमीं पे बिछाई । साथ ही ऊपर से अपना कम्बल ले लिया । ठण्ड बढ़ते जा रही थी कोहरा भी बढ़ रहा था । अजय ठिठुर रहा था । तभी उसे एक आवाज़ सुनाई दी चर्रर्र चर्रर्र चर्रर । अजय ने कम्बल हटा कर देखा तो कोई नहीं दिखा और अजय लेट गया ।
फिर करीब 1 बजे आवाज आई चर्र चर्रर्र चर्रर्र । तभी अजय को कोहरे में एक इंसान दिखा । कोई 50 साल का बुढा होगा । सफ़ेद सा गोरा चेहरा । स्वेटर आंग पे लपेटा हुआ । गले में केजरीवाल की तरह मफ़्लर लपेटा हुआ । तभी अजय ने उससे पूछा 'अरे काका जरा बताओगे बनारस ट्रेन कब है ।'
अचानक ठण्ड ने जोर पकड़ा । अजय ने सोचा रात किसी तरह यही काट ली जाये । अजय ने अपनी बैग से चादर निकाली और जमीं पे बिछाई । साथ ही ऊपर से अपना कम्बल ले लिया । ठण्ड बढ़ते जा रही थी कोहरा भी बढ़ रहा था । अजय ठिठुर रहा था । तभी उसे एक आवाज़ सुनाई दी चर्रर्र चर्रर्र चर्रर । अजय ने कम्बल हटा कर देखा तो कोई नहीं दिखा और अजय लेट गया ।
फिर करीब 1 बजे आवाज आई चर्र चर्रर्र चर्रर्र । तभी अजय को कोहरे में एक इंसान दिखा । कोई 50 साल का बुढा होगा । सफ़ेद सा गोरा चेहरा । स्वेटर आंग पे लपेटा हुआ । गले में केजरीवाल की तरह मफ़्लर लपेटा हुआ । तभी अजय ने उससे पूछा 'अरे काका जरा बताओगे बनारस ट्रेन कब है ।'
काका:- साहब जी अभी कहा ट्रेन तो सुबह 11 बजे ही होगी ।
अजय :- काका यहाँ कोई होटल सराय मिलेगा ?
काका:- साहबजी ये तेरा गांव यहाँ इंसान ही नहीं मिलते और आप सराय को तलाशते हो । फिर भी यहाँ एक सरकारी गेस्ट हाउस मिल जायेगा आपको ।
अजय :- काका कितने दूर है गेस्ट हाउस यहाँ से ?
काका:- चलिए साहब जी मई आपको ले चलता हु पास ही है ।
अजय काका के साथ चल पड़ा । काका की कयवले चलने लगी अजय पीछे बैठा था । फि भी अजय को हवा का झोका महसूस हो रहा था मनो कोई बिच में हो ही ना । साइकिल चलते जा रही थी अचानक सामने एक घर आया । जिसपे लिखा था ... house । आगे का पढ़ना मुश्किल था क्योंकि बहुत दिनों से पेंट नहीं हुआ था । तभी काका ने जेब से गेस्ट हाउस की चाबी निकाली और दरवाजा खोला । अजय चौक पड़ा ।
अजय:- काका आपके पास यहाँ की चाबी कैसे ?
काका:- साहब जी ये ठहरा गांव या सर्कार को मुलाजिम मिलते ही कहा है ? एक साथ दो दो जिमेदारी मिली है हमें । गेस्ट हाउस भी और रेलवे प्लेटफार्म की सफाई भी ।
अजय के जान में जान आई और काका ने दरवाजा खोला कीईईईईईई की जोर से आवाज आई । अंदर एक 60 का बल्ब जल रहा था । पर उसका प्रकाश एक सिमित क्षेत्र तक पड रहा था । बाकि चारो और अँधेरा था । एक बड़ा सा गलियारा जैसे था जिसके दोनों तरफ कई दरवाजे थे । एक दरवाजा खोल काका ने अजय को बिठाया । वहा एक पलंग था अजय ने अपना बैग रख पलग पे लेट गया और काका वह से चलते बने । थोड़ी देर बाद अजय को काका की आवाज़ आई ' साहब जी भूक लगी हो तो मटन बना दू ?'
अजय:- जी काका बना दो ।
तभी अजय को एक आवाज सुनाई दी । बकरे की आवाज़ आई । और खच से आवाज़ आई और काका ने पूछा ' हाहाहाहाहा साहबजी चाप खायेगे या कलेजी ' । ये सुन कर अजय की भूक मर चुकी थी ।
तभी एक बड़ा सा बर्तन लेकर काका आये जिसमे पका हुआ मटन था । मटन की महक पुरे घर में घूम रही थी । तभी गालियर के सभी दरवाजे जोरजोर से ठक ठक खड खड़ करने लगे और काका एक एक कर प्लेट में 4 4 बोटियाँ रख कर एक एक प्लेट रूम में दरवाजे के निचे से देते जा रहे थे । हर रूम से एक ही आवाज आ रही थी जैसे कोई बहोत दिनों का भूका खा रहा हो और धीरे धीरे एक एक रम से प्लेट रूम के दरवाजे के निचे से फेक कर बाहर आ जाती ।
अजय:- काका ये आब क्या है ?
काका:-कुछ नहीं साहबजी यहाँ भुत प्रीतो का वास है । ये तो आम बात है ।
इतना सुनते ही अजय अपना बैग उठा कर भागने लगा और काका की साइकिल उठा कर चल दिया । धीरे धीरे साइकिल का वजन बढ़ रहा था । थोड़ी दूर जाने के बाद अजय ने पीछे देखा तो काका साइकिल पे पीछे बैठे थे और कहा की ' साहबजी कहा जा रहे हो कल सुबह 11 बजे तक कोई ट्रेन नहीं बनारस की ।'
तभी अजय जोर से चीख पड़ा । उठा तो खुद को गेस्ट हाउस में पाया । रात के 2 बज रहे थे ।
काका आये और कहा ' क्या हुआ साहबजी ?'
अजय:- कुछ नहीं काका जी बुरा सपना देखा ।
काका:- साहबजी भूके पेट नींद कहा आएगी । कहे तो मटन बना दू ।
अजय समझ चूका था कुछ तो गड़बड़ है और कहा "नहीं काका मै सो जाउगा आप जाइये आराम कीजिये।"
काका :- साहबजी आराम तो लंबे समय से कर ही रहे है ।
और काका चलते बने
अजय ने तुरंत अपनी बैग उठाई और भागने लगा । तभी खुला हुआ गेस्ट हाउस का दरवाजा अपने आप बंद हो गया । और पीछे से आवाज आई " साहबजी कहा न ट्रेन कल सुबह 11 बजे की है "
अजय ने देखा की काका का खून से लत पत चेहरा उसके सामने था जिसपे 60 का बल्ब प्रकाश दे रहा था.
अजय:- काका मुझे जाने दो ।
काका:- साहब जी ऐसे कैसे इतने देर यहाँ रुके हो खातिरदारी तो करेगे हम आपकी जिंदगी भर । कुछ तो देना पड़ेगा ।
अजय:- काका जो चाहे ले लो 1000 2000 पर मुझे यहाँ से जाने दो ।
काका:- भला हम पैसे का क्या करेगे साहबजी । जीतेजी तो ये पैसा मिला नहीं भूके ही मर डाला अब इसका क्या काम हमें ।
अजय को अचानक काका ने खीचते हुए उसके ही रूम में ले जाकर फेक दिया और दरवाजा बंद हो गया । अजय चीखता रहा मुझे जाने दो मुझे जाने दो और तभी लाइट भी बंद हो गई और मेंन दरवाजे पर मनो किसानी ताला लगा दिया हो ऐसे आवाज़ आई और अँधेरे में गेस्ट हाउस 10 20 लोगो के रोने के आवाज़ में गुजने लगा । सभी रोते हुए कहते मुझे जाने दो मुझे जाने दो । तभी एक औरत की आवाज़ आई आज एक इंसान यहाँ आया है । सभी कहने लगे मैंयह 4 साल से हु एक कहता मई 25 साल से हु एक कहता मई 8 साल से हु । अजय बेहोश हो गया ।
तभी मैन दरवाजा खुलने की आवाज आई । अजय होश में आया । अजय ने अपनी घडी देखि तो फिर रात के 1 बज रहे थे और घडी की तारीख 8 दिन बिट चुके होने का साबुत दे रही थी । अजय ने आजु बाजु नजर घुमाई तो उसका शरीर चारपाई पे पड़ा हुआ था । और उसके सामने मटन की एक प्लेट राखी थी । अजय उसपे टूट पड़ा तभी बगल के कमरे से एक आवाज आई ।
"आइये साहब ये रहा आपका कमरा । बहुत थक गए होंगे न आप भूक भी लगी होगी मटन बना दू ?"
Written by :-
जतिन दिवेचा
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