कहानी एक गांव की है जिसका नाम है कोलागढ़ कोलागढ़ का जंगल बहुत भयानक है! उस जंगल मैं भूतों प्रेतों का का ज्यादा डर था! वहां के लोगो का मानना था कि आत्माए भूत- प्रेत होते हैं!उन्होंने भी इस बात पर तब यकीन किया जब उन्होंने यह सब अपनी आखों से देखा!
Photo by Gabriel on UnsplashPareshan Aatma - परेशान आत्मा |
कहानी एक गांव की है जिसका नाम है कोलागढ़
कोलागढ़ का जंगल बहुत भयानक है! उस जंगल मैं भूतों प्रेतों का
का ज्यादा डर था! वहां के लोगो का मानना था कि आत्माए भूत-
प्रेत होते हैं!उन्होंने भी इस बात पर तब यकीन किया जब उन्होंने यह सब अपनी आखों से
देखा!
उस गाँव मैं एक औरत थी उसका दिमाग कुछ ठीक नहीं था उसका पति
भी एक एक्सीडेंटमैं मर गया था तब से वह कुछ अजीब सी हो गयी थी कुछ लोग उसे
पागल कहते थे!एक बार की बात थी की सुबह- सुबह गांव का एक आदमी जिसका नाम भोला राम था! वह शहर की और कुछ
ज़रूरी काम से निकल पड़ा गांव के आने जाने का एक ही रास्ता था वह भी जंगल से
गुजरता था!
इसलिए लोग उसमें अँधेरे मैं डर के मारे नहीं जाते थे और शाम होते ही कोई जंगल की
तरफ नहीं जाता था!भोला राम जब उस जंगल से जा रहा था गांव से कुछ दूर
ही जंगल मैं उसे एक औरत की लाश पेड़ पर लटकती नज़र आई वह एक दम डर गया और
भागता हुआ गांव वापस आया! कुछ लोगो ने उसे इस तरह से भागते देख कहा क्या हुआ भोला राम तुम तो अभी शहर के लिए
निकले थे और तुम भागते हुए वापस क्योँ आ गए! तब भोला राम ने बताया कि मैंने अभी किसी की लाश को
पेड़ पर लटकते देखा वह लाश किसी औरत की है!
देखते- देखते सारा गांव
इकट्ठा हो गया कि क्या हो गया कहाँ है लाश चलो चलकर देखते हैं!
तब सारा गांव उसे देखने को चल दिया देखते क्या हैं कि एक औरत की
लाश पेड़ पर लटक रही है! देखते ही गांव वालों ने कहा कि यह तो पागल लग
रही है!कुछ लोगों ने कहा इसे नीचे उतारो और इसका दाह संस्कार कर दो कुछ लोगो ने कहा छोड़ो इसका
है ही कौन जो इसे आग देगा वेसे भी इससे सारा गांव परेशान हो गया था चलो इससे तो पीछा छूटा! कुछ
बूढ़े लोगों ने कहा कि ऐसा नहीं कहते शरीर का दाह संस्कार करना ज़रूरी होता हे
नहीं तो उसकी आत्मा भटकती रहती है!
तो कुछ लोगों ने
कहा कि तो जा कर उतार ले उसे और करदे दाह संस्कार बड़े आये सुझाव देने वाले वेसे भी इस जंगल
मैं आत्माओ की कमी नहीं है और एक और आत्मा
सही चलो धीरे धीरे सारे लोग चलते बने दोस्तों आठ दस दिन तक वह लाश ऐसे ही पेड़
पर लटकती रही किसी ने उसे उतारा तक नहीं !एक दिन
अचानक उस लाश की रस्सी टूटकर पेड़ों पर अटक गयी और पत्तो से छुप
गयी!
समय बीतता गया एक दिन गाँव का हरिया नाम का व्यक्ति उस राते से जा रहा था कि
उसे वही पागल सामने दिखाई दी वह एक दम डर गया उसका सारा
शरीर कांपने लगा और उसके पलक झपकते ही वह गायब हो गयी हरिये ने सोचा कि मैं
तो मन मैं ऐसे ही सोच रहा था! और वह आगे चल दिया तभी एक दम उसकी और एक सांड
दोड़ते हुए आया और उसे जोर से टक्कर मार के चला गया.
हरिया उल्टा गिरा उसके बहुत जोर से चोट आई
उसने जैसे ही पीछे मुड के देखा तो कोई नहीं उसने जैसे
ही फिर आगे को देखा तो उसके आगे एक औरत कड़ी हो गयी वह एक दम डर गया
और कांपने लगा उसकी शक्ल तो ऐसी थी कि तरफ गाल की हड्डियाँ और एक
तरफ जला हुआ सा चेहरा आंखें अन्दर धंसी हुई नाख़ून बड़े बड़े वह उसे देखकर ऐसा डरा कि वह बेहोश होके
गिर पड़ा उसकी आंखें खुली तो वह एक दम डर गया उसने अपने आप को घने जंगलों के
बीचो बीच पाया उसके पेट मैं तो पानी हो गया .
चरों तरफ से आवाजें आ रही थी कहीं
पत्तों मैं खर खर की आवाजें तो कहीं शेर के धहड़ने की आवाजें वह
इतना डर हुआ था कि उसे तो भागना ही नहीं आ रहा था वह वहां से धीरे धीरे डरता
हुआ जंगल मैं से भटकता हुआ बाहर आया उसे जंगल से निकलते-निकलते अँधेरा हो गया था वो अब और डर
रहा था कि पहले तो एक भूत था पर अब ना जाने कितनो से पला पड़ेगा पता नहीं आज मैं यहाँ से जिन्दा निकलूंगा
कि नहीं उसके मन मैं अजीब अजीब से ख्याल आ रहे थे वह भागता ही चला जा
रहा था भागते भागते वो जाने कैसे उस जंगल से बाहर निकल के आया उसे इस हालत मैं देख कुछ लोगो ने उससे
पुछा कि इतनी रात को कहाँ से आ रहे हो तुम्हें डर नही लगता क्या उसने कुछ भी जवाब नहीं
दिया उसे विश्वाश नहीं हो रहा था कि मैं गांव मैं जिन्दा आ गया हूँ उसकी हालत देखकर
कह रहे थे कि इस हरिया को क्या हो गया है!
वह घर पहुंचा और जाकर कि ओढ़ कर सो गया उसकी औरत ने उसे
खाना खाने के लिए कहा पर उसने कुछ जवाब नहीं दिया! उसने रत को एक सपना देखा और उस सपने मैं
उसी परेशान आत्मा को देखा वह उससे रो रो कर कह रही थी मुझे बचालो मुझे इस नरक से
बचा लो यह लोग मुझे मार डालेंगे ऐसा सपना देख कर वह उठ खड़ा
हुआ उसके पशीना निकल आया था और वह यह सोच रहा था कि यह सब मेरे साथ क्योँ हो रहा है!
सुबह हो
गयी लेकिन हरिया नहीं जगा तब उसकी पत्नी ने उसे जगाने के
हाथ लगाया तो उसे उसके चहरे मैं उसी का चहरा दिखा वह चिल्ला पड़ा तब उसकी ने कहा क्या
हुआ तुम शाम से कुछ अजीब से डरे हुए लग रहे हो न शाम को खाना खाया तुम्हें आखिर हुआ
क्या है! मुझे बताओ तब उसने सारी बात बतायी !
तब वह जा कर समझी कि आप तभी
परेशान हो! धीरे-धीरे यह बात सारी गांव मैं फेल गयी कि
वह पागल औरत भूत बन गयी है! तभी कुछ लोगों ने बताया कि रात को यही आवाज कुछ
लोगो ने सुनी जो जंगल से आ रही थी कि मुझे बचाओ मुझे इस नरक से निकालो
अब तो सारे लोग परेशान थे कि शहर का जाने का रास्ता भी बंद हो गया अब हम लोग क्या करैं !तब कुछ लोगों ने कहा
कि हम लोगों को किसी महान आदमी की सलाह लेनी होगी कि यह सब मांजरा क्या है! तब किसी एक आदमी
ने कहा कि पास के गांव मैं नत्थीलाल भगत जी रहते हैं! वह आत्माओं के
बारे मैं बहुत कुछ जानते हैं!
जब सुखिया के लड़के को एक आत्मा ने पकड़ लिया था तब उन्ही ने उस आत्मा से उसे
छुड़ाया था!तब कुछ लोगों ने कहा यही ठीक रहेगा! सब लोगों ने उस भगत जी को गांव मैं
बुलाया और उन्हें साड़ी घटना बता दी भगत जी ने कहा कि तुमने उसके शरीर को न
जला कर बहुत बड़ी गलती कर दी चाहे वो कैसी भी थी इतना बड़ा
जंगल हो के भी तुम लोगों से चार लकड़ियों का बंदोबस्त नहीं हो पाया था!
इन्शान कैसा भी हो जब वह मर जाता है तो उसका दुश्मन भी उसकी अर्थी को
कन्धा देने को आ ही जाता है!
पर तुमने तो सारी सीमायें तोड़ दी
चलो अब जो भी हो गया है उससे निपटने के लिए अब तैयारी करो! तब
भगत जी ने हवन किया और अपना ध्यान लगा के देखा तो उसे वह आत्मा बंधी हुई नज़र आई
तब पंडित जी ने उसे पुछा कि तुम्हें यहाँ किसने बांध रखा है तब उसने कहा कि मुझे एक दरिन्दे
ने बाँध रखा है पहले उसने मुझे मार के पेड़ पर लटका दिया था!फिर
गांव वालों ने मेरे शरीर का अंतिम संस्कार भी नहीं किया! मेरे शरीर को उसने
कहीं छुपा के रख दिया है इसने मेरी आत्मा को कैद कर लिया है!
जब तक मुझे मुक्ति नहीं
मिलेगी इससे जब तक मेरे शरीर का अंतिम संस्कार नहीं हो जाता मैंने हरिया को
भी यह बात बतानी चाही जब तक मैं उसे कुछ बताती पर उससे पहले उस
वहसी दरिन्दे ने उसे चोट पहुंचा कर बेहोश कर दिया था तब मैंने उसे उससे बचा लिया था!तब
पंडित जी सब समझ गए और कहा कि तुम चिंता मत करो मैं तुम्हें अवश्य
मुक्ति दिलाऊँगा! तब भगत जी ने आखें खोली तब उन्होंने कहा चलो मुझे उस पेड़ के पास ले चलो जहाँ वह मरी
थी! पंडित जी ने कहा की जिस तरीके से अंतिम संस्कार
करते है वह सारा सामान ले चलो तब गांव वाले सारा सामान लेकर चल दिए पंडित जी आगे आगे और गांव वाले
पीछे-पीछे उन्होंने देखा की वह पेड़ तो बहुत बड़ा हो गया है वह बहुत घना हो गया है और
लाश का कुछ भी अता पता नहीं है!
न हीं उसकी हड्डियों का तब पंडित जी ने कहा की सारे लोग ऊपर चढ़
के ढूँढो हमें यह काम शाम होने से पहले करना है! तब सारे लोग उस पेड़ पर चढ़ कर उस लाश को
ढूँढने लगे बहुत देर तक वह लाश नहीं मिली सारे लोग सोचने
लगे लाश गयी तो गयी कहाँ न हड्डियों क पता कहा गयी एक भी हड्डी नहीं मिली तब पंडित जी
ने नीबू दे दिया सबको और कहा जहाँ यह नीबू लाल हो जाये समझना वहीँ
पर लाश है!दो तीन मिनट बाद एक आदमी ने कहा यह रही लाश यह तो
हड्डियों का ढांचा है!
उसका इतना कहते ही सारे लोग चीखने लगे भूत भूत उनके
सामने एक भयानक आदमी खड़ा है उसके यह बड़े-बड़े दांत आंखें लाल-लाल मुंह भेडिये जैसा
ये बड़े नाखून लोग डर के मारे ऊपर से कूद गए एक को तो उस
भेडिये ने ऐसा पकड़ के फेंका की वह सीधा नीचे आ के गिरा
हा हा हा हा चिल्लाने लगा कोई नहीं ले जाएगा इसे यह मेरी है इसे मैंने वर्षों से सजा के
रखा है उसने गुस्से मैं सारा पैड झकझोर दिया ऐसा होते देख पंडित
जी ने मंत्र पढना शुरू किया पंडित जी को मंत्र पढ़ते देख उसने उन पर हमला बोल दिया पंडित जी को उठा
कर फेंक दिया पर पंडित जी के मंत्र बंद नहीं हुए उन्होंने जो मंत्र पढ़ पढ़ के
उसके ऊपर मिटटी फेंकी उसके शरीर पर जहाँ जहाँ मिटटी पड़ी उसका शरीर
वहीँ से गलता जा रहा था उसका एक हाथ टूट कर गिरा वह पंडित जी के ऊपर ऐसा
झपटा पंडित जी उस जगह से हट गए और वह नीचे जा गिरा पंडित जी ने फिर मंत्र
पढ़ के उसके शरीर पर मारा वह वहीँ ढेर हो गया!
उसकी आत्मा निकल के एक
गांव वाले के अन्दर घुश गयी उसने गांव वालों को ही मारना शुरू कर दिया उसने तो एक का शिर फाड़ दिया
और एक का हाथ चबा गया इतना खतरनाक होता जा रहा था उधर शाम होती जा रही थी तब पंडित जी
ने उसकी और रस्सी फेंकीऔर दूसरी और एक आदमी ने
पकड़ के उसे एक पेड़ से बांध दिया और उसको दो चार मंत्र पढ़ के मारे और लोगों से कहा शाम होने वाली है
इससे पहले यहाँ और आत्माएं आये पहले उस शव को नीचे उतारो और उसका अंतिम संस्कार कर दो तब
कुछ लोगों ने उसे उसे उठाकर लकड़ियों पर लिटा करा आग लगा दी वह
पेड़ से बंधा हुआ चिल्लाए जा रहा था
मत जलाओ उसे मत जलाओ उसे देखते देखते वह हड्डियाँ राख मैं
परवर्तित हो गयी उसमें से एक ज्वाला उठती उई बाहर आई और पंडित जी को नमस्कार
किया और कहा कि अगर इसको मारना हे तो उसके पहले वाले शरीर को जला दो तब वह खुद उसके शरीर से
निकल जाएगा ऐसा कहते हुए वह आग का गोला बनकर आकश कि ओर चली गयी तब पंडित जी
ने देर न करते हुए उसके शरीर को भी जला दिया तब वह फिर चिल्लाया
मुझे मत जलाओ मुझे मत जलाओ तब तक आग उसके शरीर को जला चुकी थी!
ओर उसकी आत्मा उस
गांव वाले के शरीर से निकल कर आकाश मैं चली गयी तब उस आदमी को रस्सी
से छोड़ दिया! तब उसका शरीर होश मैं आया! तब सब लोग उसे लेकर गांव आये तब सबने
भगत जी को राम-राम कहा ओर भगत जी अपने गांव चले गए तब से उस गांव शांति आ गयी! तो दोस्तों
यह थी एक बेबश परेशान आत्मा की कहानी!
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