अब शाह जी ने मेरा दिया हुआ वो घर का नक्शा निकल और फिर उसे एक बार देखा और फिर मुझे देते हुए बोले "बेटा, ये बात तो सच है की तुम्हारे घर में एक कब्र है। वो भी बहुत साल पुरानी।
Photo by Celina Albertz on Unsplash मेरा घर part no 3 |
अब शाह जी ने मेरा दिया हुआ वो
घर का नक्शा निकल और फिर उसे एक बार देखा और फिर मुझे देते हुए बोले
"बेटा, ये बात तो सच है की तुम्हारे घर में एक कब्र है। वो भी बहुत साल
पुरानी। और बेटा, कब्र किसी भी रूह की जड़ होती है, उसे वहां से हटाना आसान नहीं है। बहुत
पुरानी होने की वजह से वो बहुत ज्यादा ताकतवर भी है। लेकिन
तुम्हारी समस्या की जड़ वो नहीं है। हाँ थोड़ी बहुत जो डरावने सपने दिखने वाली
समस्या है वो उसी से है मगर जो अश्लील और अभद्र सपने दिखते हैं वो उससे नही है।
ठीक से साफ़ सफाई रख कर, उस कब्र के होते हुए भी तुम उस घर में रह सकते हो।"
अब मेरी बैचैनी
बढती जा रही थी। मैने शाह जी से पूछा "जब
कब्र के रहते हुए भी हम वहां रह सकते हैं तो शाह जी आप ही बताईये की परेशानी की असली वजह क्या है?" "बेटा, आपके घर में कुछ करके गाड़ा गया है। और जो वहां गाड़ा गया है वो भी अपने आप
में काफी ताकत और छलावा रखता है। तुम्हारे घर में पर काम करने वाले किसी मजदूर ने
शायद उसे गाड़ा है या फिर उसे पैसे देकर किसी ने गड़वाया है। उसी की वजह से
तुम्हारी घर में कई रूह का आना जाना है।"
उन्होंने ये जवाब दिया और थोडा चुप रहने के बाद फिर
से बोले "बेटा, सपनो का मतलब
जानते हो?" मैंने जवाब में कहा "थोडा बहुत जानता हूँ मगर जिस तरह
के सपने दिखते है उनका मतलब नहीं जनता।" उन्होंने हाँ में
सर हिलाया और फिर मुझे बताने लगे "बेटा, हर रूह सपने में अलग तरह दिखती है। जब भी हम सोते हैं
तो हमारा मन जो है वो शांत रहता है और रूह इस शांत मन में उथलपुथल मचाती हैं जो सपने के रूप में
हमे दिखता है। जेसे अगर कोई चुडैलें हमेशा सपने में एक नग्न औरत के रूप में दिखेंगी। भटकते हुए अच्छे लोग
हमेशा उसी रूप में दिखेंगे जेसे वो थे।
छलावा करने वाले ताकतवर प्रेत किसी मशहूर आदमी के रूप में
दिखेंगे जैसे कोई फ़िल्मी व्यक्ति या फिर नेता जिससे तुम असल जिंदगी में नहीं मिले हो। इस
तरह हर रूह हर बला अलग रूप में दिखती है।" अब मेरे दिमाग पे
हथोड़े पड़ने लगे समझ नहीं आ रहा था उनसे अब क्या कहूँ या क्या पूछूं? मैं एक दम मौन
था। फिर शाह जी खुद ही बोल पड़े "बेटा, देखो में तुम्हे अँधेरे में नहीं रखना चाहता। साफ़ बात ये है की जिसने
भी वहां तुम्हारे घर में एस नीच काम किया है वो तुम्हारी ख़ुशी और समृद्धि
नहीं देख सकता। और तुम्हारी पत्नी को सपने इसलिए सबसे ज्यादा दिखते है
और बीमार इसलिए ज्यादा होती है ताकि वो तुम्हे और तुम्हारा घर छोड़ दे। एक तरह से तुम्हारे
परिवार को बिखेरने और बर्बाद करने के लिए किया है।
और ये काम
तुम्हारे किसी जानकार ने किया है दुश्मन का काम ये नहीं है। क्योकि कोई भी दुश्मन
तुम्हारे घर के अन्दर पहुँच नहीं रख सकता।" मेरे चेहरे पर परेशानी और चिंता की लकीरों को वो
शायद एक दम साफ़ पढ़ रहे थे, इसलिए उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा और कहा "बेटा, तुम्हारी पत्नी को तो अब कोई परेशानी नहीं
होगी। लेकिन एक बात तुम ये भी जान लो, की तुम्हारे घर की बलाओं से निपटने के लिए मेरा इल्म कम है। इसका इलाज़ कोई
बहुत ज्यादा पहुंचा हुआ इल्माती कारीगर ही कर सकता है। और वो तुम्हे मिलेगा भी।
तुम्हारा गुज़ारा इसी घर में होगा। इसलिए घबराओ मत और थोडा सब्र रखो।" उनकी बातों से
में थोडा घबराया तो था मगर उनकी सांत्वना भी मेरी परेशानी को दूर
कर रही थी। फिर मैंने उनसे पूछा "शाह जी, घर में किसी की जान को तो कोई
खतरा नहीं है न?" उन्होंने कहा "नहीं नहीं, ऐसा कोई भी खतरा नहीं है।
लेकिन अपनी पत्नी से ये बातें मत बताना वरना वो बहुत डर जाएगी।
तुम जिसकी भी पूजा करते हो करते रहो सच्चे मन से। सब उसी खुदा के हाथ
में है।" उनके इस अपनेपन और सांत्वना ने मुझे थोडा भावुक कर दिया।
मैंने भी उन्हें अपनी सहायता में आये ईश्वर का रूप मान कर
उनके पैर पर अपना सर रख उनका आशीर्वाद लिया और फिर अपनी ऋतू को बुला कर उनसे
विदा ले ली। अब कुछ महत्वपूर्ण बातें तो शीशे तरह साफ़ हो चुकी थी की घर
में एक कब्र है ९ फुट लम्बी। मगर असल परेशानी वो कब्र नहीं असल
परेशानी कुछ और है। और वो परेशानी अपने आप आने वाली या इत्तेफाक नहीं, उसे तो किसी ने
हमारे पीछे लगाया है। घर बेचने का अब कोई मतलब नहीं था|
जो भी में दूसरा
घर लेता तो उसमे भी यही परेशानी पीछे लग सकती थी या डालने वाला डाल सकता
था। अब मुझे इस बात की भी परेशानी थी की वो कौन हो सकता है जो एस काम करेगा या फिर किसी मजदूर से करवाएगा? रास्ते में ऋतू ने मुझसे पूछा की मेरे और शाह जी के बिच क्या
बात हुयी। लेकिन मैंने उसे सपने से सम्बंधित बोलकर बात को टाल दिया। घर जाकर मम्मी और
पापा को मैंने सारी बात बताई ऋतू से बस बातों को छुपाया क्योकि वो ही इन सबकी सबसे ज्यादा
शिकार हो रही थी अगर मैं उसे बताता तो सच में वो और भी ज्यादा डर जाती।
अब क्या था बस हम
भगवान् से प्रार्थना कर रहे थे की जो भी मसीहा भेजना है जल्दी से जल्दी
भेजें। हमारे गुरु जी की याद हमे बहुत आ रही थी। लेकिन
हमारे गुरु जी, उनसे किसी भी वक़्त मिलना संभव नहीं था। वो दक्षिण भारत से थे और ज्यादातर वही
रहते थे। कानपुर से भी उनका ट्रान्सफर हो चुका था। उनके पास मोबाइल भी नहीं था की उनसे
जल्द से जल्द संपर्क हो जाए। अब हम सिर्फ इंतज़ार कर सकते थे और कुछ नहीं। हम तो ये
भी ठीक से नहीं जानते थे की शाह जी ने जिसे बताया वो
कौन होगा? गुरु जी या और कोई? मुसीबत में पड़ा दिमाग कभी सीधी बात नहीं
सोच सकता जबतक उसे कहीं से कोई आशा की किरण न नज़र आ जाये। कुछ दिन बीत गए।
ऋतू की परेशानी दूर हो चुकी थी।
शाह जी की ताबीज
का काम अच्छा था। उसे सपने आना बंद हो चुके थे और अब बेवजह की बीमारी भी उसे नहीं हो रही थी।
बाकि मौसमी बीमारी को कौन रोक पाता है? अब कुछ वक़्त बाद कानपुर में ही मेरी दीदी जो की बड़े
मामा जी की बेटी हैं उनकी शादी थी। हम सभी लोग शादी में शामिल थे और कुछ चुनिन्दा लोग ही
घर में बचे थे। काफी वक़्त बाद पास रिश्तेदारी में कोई शादी पड़ी थी। जहाँ हम
सब पूरा परिवार मिलकर आनंद ले रहे थे। हम वहां पहुँच कर घर की परेशानी को
थोड़ा थोड़ा भूलकर सबके बीच खुश थे। घर पर चाचा जी, दादा जी और बड़े भईया ही थे। वहां पहुंचे हमे २ दिन ही हुआ
था की तीसरे दिन की सुबह चाचा जी का फ़ोन आया हमे। मेरी चाचा जी से
बात हुयी। उन्होंने कहा की "कल रात घर में सबसे अलग और अजीब घटना घटी
है।कुछ आवाजें गूंज रही थी पूरे घर में।"
मैंने पूछा
"कैसी आवाजें?" उन्होंने कहा
"आवाजें ऐसी थीं जैसे की कोई बैल या भैंसा गुर्रा रहा हो।" मैंने कहा
"चाचा जी, हो सकता है की वो आपका भ्रम हो या
फिर सपना देखा होगा।" "सपना हम तीनो एक
साथ देखेंगे क्या? हमने उठकर पूरा घर छान मारा, आवाज़ कहाँ से आ रही थी? कैसे आ रही थी? कुछ पता नहीं चला।" उन्होंने थोड़ा डांटते हुए और फिर उसके बाद परेशान
होकर कहा। मैंने पूछा "कितने बजे की बात है?" उन्होंने कहा की "करीब साढ़े बारह बजे से ढाई बजे के
बीच वो आवाज़ निरंतर आती रही। हम सब ढूँढ ढूँढ कर थक गए। एक जगह जाते तो लगता की
दुसरे कमरे से आवाज़ आ रही है।" "फिर अपने क्या
किया?" मैंने पूछा।
"कुछ नहीं फिर हम
सब एक ही कमरे में बैठ कर कुछ न कुछ मंत्र जाप करने लगे। कुछ वक़्त बाद वो आवाज़ शांत हो
गयी।" उनहोने कहा। अब मैं भी असमंजस में पड़ गया। मैंने फिर चाचा जी से पूछा
"क्या और कुछ हुआ? जेसे पहले वो लंगड़ा घर में दिख रहा था उस तरह कुछ दिखा या महसूस हुआ?" उन्होंने जवाब दिया "नहीं ऐसा तो कुछ नहीं हुआ बस
आवाजें ही आई। काफी मनहूसियत भरी।" मैंने कहा
"ठीक है। मैं मम्मी पापा को बता देता हूँ अगर और कोई परेशानी हो तो बताना।" उन्होंने ने हामी
भरी और फिर हालचाल पूछ कर फ़ोन काट दिया। कुछ देर तो मुझे खुद समझने में वक़्त
लग गया की ये क्या होने लगा? क्या घर में जितने कम लोग होंगे ये घर उतना
ही डरावना हो जायेगा? कहीं हम सब कुछ
दिन के लिए घर को बंद कर दें तो ये तो पूरा भूतीया घर हो जायेगा।
आखिर बात क्या है? कोई एक मुसीबत हमेशा हो तो उसकी जड़ ढूंढी जाये या
फिर कुछ निष्कर्ष निकाला जाये। यहाँ तो हमेशा कुछ नया ही होने लगता है। फिर मुझे शाह जी
की बात याद आने लगी उन्होंने बताया था की कुछ ऐसा किया गया है घर में की
कई आत्माओं का आना जाना लगा रहता है। शायद ये उसी के लक्षण हैं, हर प्रेत हर भूत, आत्मा अपना रंग
दिखाते हैं जिससे अलग अलग समस्याएं होती हैं। मैं मन ही मन सोच रहा था की जिसने
भी किया है बहुत मेहनत और दिमाग लगा कर किया है। काश एक बार सामने आ जाए या फिर कोई उसे
मेरे सामने ले आये। इन सब बातों को थोडा बहुत सोचने के बाद फिर मैंने मम्मी को अकेले
में बुला कर ये सारी बात बताई। वो भी काफी परेशान हुयी, मम्मी ने कहा की
मैं इन सब बातों का जिक्र एक बार बड़े मामा जी से कर लू। मामा जी को घर
में होने वाले हालातों की सारी खबर थी।
पिता जी ने उन्हें बताया था, उसके बाद अब जो
घटना हो रही थी उसके बारे में भी मैंने मामा जी को बताया। मामा जी भी इस
बात से अचंभित थे की ये क्या हो रहा है? मगर कर भी क्या सकते थे? उस वक़्त जानकारी में या फिर आस पास कोई ऐसा जानकार
व्यक्ति नहीं था जिसपर विश्वास करके घर की इसी समस्या का समाधान करवाया जाये। मैंने मामा जी से
गुरु जी के बारे में पूछा। उन्होंने बताया की "उनका ट्रान्सफर मुरादाबाद हो गया था। उसके बाद वो
शायद कहीं और। उनके घर मद्रास में शादी का निमंत्रण तो कोरिअर कर दिया था। अब पता नहीं वो पंहुचा
या नहीं और वो आयेंगे भी या नहीं।" अब चाचा जी को मैंने घर में लोहबान और गूगल वगेरह का धुआं देकर
रहने की सलाह दी। बाद में तो हम सब आने ही वाले थे। खैर इन सब बातों को दिमाग के अलग
कोने में जगह देकर हम शादी की तैय्यारी और कामकाज में व्यस्त हो गए।
सारे
खिलखिलाते चेहरों और लोगो को देख कर मैं यही महसूस कर रहा था की इन सबके जैसी साधारण
जिंदगी में क्यों नहीं जी सकता? आखिर हर मुसीबत हमारा पता ही क्यों ढूँढ लेती है? मन में परेशानी और ऊपर हंसी के मुखोटे पहन कर मैं शादी
में बिलकुल सामान्य होकर कामकाज कर रहा था। शादी वाले दिन हम सब मजे से शादी और मेहमानों
में व्यस्त थे। बारात आई स्वागत वगेरह किया और फिर उसके बाद मेहमान खाने में लग गए और खास लोग दूल्हा
दुल्हन के साथ फोटो खिचवाने में। मैं फोटो खिचवाने के बाद अपने भईया
से बात ही कर रहा था की मैंने देखा की हमारे गुरु जी ने वहां अपना
पदार्पण किया। एक मिनट के लिए मैं सब कुछ भूल गया की मैं कहाँ
हूँ? क्या कर रहा हूँ? बस मेरे मन में ख़ुशी के
भावना ऐसी जगी मानो मुझे भगवान् मिल गए। वेसे भी शास्त्रों में गुरु को भगवान् से ऊँचा
दर्जा दिया जाता है।
लेकिन कलयुग में ऐसा दर्जा पाने वाले गुरु अत्यंत
दुर्लभ हैं। और फिर ऐसे ही आते मैं उन्हें परेशानी तो बताने वाला नहीं था। उनका स्वागत
सत्कार किया और उन्हें एक कमरे में बैठा कर खाने का बंदोबस्त कर दिया
और बाकी हमारा पूरा परिवार और मेरा ननिहाल सब उनके सत्कार में लगे थे। मैं अपनी सारी परेशानी भूल
कर अब बहुत ज्यादा ख़ुशी से शादी के रंगारंग कार्यक्रम का मजा लेने लगा। अब
मुझे कोई चिंता नहीं थी। अब मुझे किसी भी ढोंगी की चोखट नहीं
देखनी थी और न ही कहीं से निराश लौटना था। अब
मेरी परेशानी के विषय मैं वो जो कहते वही होता। शादी का कार्यक्रम समाप्त होने के पश्चात वो एक दिन हमारे घर आये।
वहीँ मामा जी के यहाँ। हम उस वक़्त वही थे और वापसी की तैय्यारी कर
रहे थे। उस दिन हमने उन्हें सब कुछ बताया की परेशानी कैसे हमारे पीछे पड़ी
है। और क्या क्या परेशानी हम झेल चुके और क्या क्या अभी भी झेल रहे हैं।
कौन से तांत्रिक ने क्या बताया से भी सब कुछ हमने उन्हें बताया। मेरे गुरु जी एक खासियत थी
जो आजतक मैंने किसी तांत्रिक या किसी भी शख्स में नहीं
देखी। वो ये थी की जब भी उसने कोई बात हम बताते तो वो हमारी बात सुनते
सुनते ही आगे की बताने लगते और सारी शत प्रतिशत सच। न वो आंखें
बंद करते थे और न ही कोई मंत्र पढ़ते प्रतीत होते थे, अगर मन मैं पढ़ते होंगे तो वो मैं नहीं कह सकता।
प्रबल सात्विक साधना की वेसी जागती मूर्ति मैंने कभी नहीं देखी थी और शायद न कभी
जिंदगी मैं देख पाउँगा। घर में कब्र होने की पुष्टि तो उन्होने उसी वक़्त कर दी थी और
बाकी सवालो के जवाब देने से उन्होंने मना कर दिया। उन्होंने कहा की होली के बाद
वो हमारे घर आएंगे, उसी वक़्त सारी परेशानी
और सवालो के जवाब देंगे।
और ये भी कहा की होली तक का वक़्त
थोडा ख़राब है। तब तक उस घर में जो भी हो होने देना, न उसकी छानबीन करना और न कोई दखल देना। और ये भी कहा की डरने
की बात बिलकुल भी नहीं है। किसी को कोई नुक्सान
नहीं होगा बस वो डरवाने की कोशिश करता रहेगा मगर डरना मत। हम सब उनकी बात को मान
गए। फिर उन्होंने एक मुट्ठी सरसों के बीज मंगवाए और फिर उन्हें
अभिमंत्रित करके हमे सौंप दिए और कहा की रात को पूरे घर में दाल कर सुबह झाड़ू के साथ इसे भी झाड कर फेंक देना
और फिर गंगाजल पूरे घर में छिड़क देना। किसी को कोई नुकसान नहीं होगा, सपनो पर ध्यान मत देना
वो सिर्फ सपने होंगे और उनसे किसी भी शुभ अशुभ का संकेत नहीं मिलेगा। वो सिर्फ भ्रम होगा। क्रमशः
0 Comments