मेरा घर part no 2

उस रात इस बात की थोड़ी उम्मीद लगाकर की शायद खान साब हमारी परेशानी दूर कर देंगे हम सब सोने चले गए। रात के करीब डेढ़ बजे की बात है चाचा जी को रात में ये महसूस हुआ की किसी ने उनका पैर हिलाया। थोडा नींद से वो जागे फिर उसे वहम समझ कर फिर सो गए।
मेरा घर part no 2
Photo by Dan Meyers on Unsplash


                                मेरा घर part no 2


उस रात इस बात की थोड़ी उम्मीद लगाकर की शायद खान साब हमारी परेशानी दूर कर देंगे हम सब सोने चले गए। रात के करीब डेढ़ बजे की बात है चाचा जी को रात में ये महसूस हुआ की किसी ने उनका पैर हिलाया। थोडा नींद से वो जागे फिर उसे वहम समझ कर फिर सो गए। लेकिन दुबारा उनके साथ यही हुआ उन्हें लगा शायद पैर की कोई नस में हलचल है जिससे उन्हें एस महसूस हो रहा है। इस बार उन्हें नींद नहीं आई मगर वो आँखें बंद करके लेटे हुए थे। अचानक उन्हें फिर एस ही महसूस हुआ। उन्होंने तुरंत उठकर लाइट जला दी देखा तो चची जी भी सोयी हुयी थी और उनकी बेटी भी सोयी हुयी थी। 


अब उन्हें थोडा शक हुआ की ये उनके पैर में होने वाली कोई हलचल नहीं है जरुर कोई बात है। किसी चूहे जैसे जीव का भी ये का ये काम नहीं हो सकता। अब उनकी आँखों से नींद एकदम गायब हो गयी उन्होंने कमरे की एक छोटी लाइट जला जी और शांत लेटे रहे। लेकिन अब उनके साथ एस कुछ नहीं हुआ। थोड़ी देर लेटे रहने के बाद चाचा जी ने सोचा की वापस सोया जाए अगर कोई और बात भी है तो अभी किसी से कुछ कहना ठीक नहीं सुबह ही बताया जायेगा। उसके बाद चाचा जी उठे और बाथरूम की ओर चल दिए। बाथरूम के बाहर एक छोटा बल्ब जल रहा था। चाचा जी को बल्ब की नारंगी रौशनी में बाथरूम के पास एस लगा की कोई वहां खड़ा है। चाचा जी आगे बढ़ते बढ़ते रुक गए और ध्यान से देखने की कोशिश करने लगे। मगर वो आकृति उन्हें धुंधली सी दिखाई पड़ी। जैसी वो आकृति थी उस तरह का अपने घर में कोई भी व्यक्ति नहीं था। 


अचानक फिर वहां कोई नहीं दिखा वो आकृति जैसे ओझल हो चुकी थी। चाचा जी ने सोचा शायद मन में कोई डर या वहम बैठ गया है और फायदा अँधेरा उठा रहा है। दोस्तों, ऐसा अक्सर कहा जाता है और लोग समझते भी हैं की अगर मन में कोई डर बैठ जाये तो अँधेरा उसका फ़ायदा उठाता है। लेकिन ये बात सरासर गलत है, ये हमारे अंदर डर ही होता है जो अँधेरे को आकृति दे देता है और खुद को और प्रबल कर लेता है। उसके बाद चाचा जी बाथरूम में चले गए और जब बाहर आये और अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगे तो उन्होंने वही आकृति फिर से देखी। इस बार वो आकृति एक दम साफ़ नज़र आई। कोई थोडा वृद्ध से व्यक्ति पुराने से कपड़ो में थोड़ी दूर पर खड़ा चाचा जी को ही देख रहा था। उसके बाएं हाथ में एक छड़ी थी और बायीं टांग नहीं थी। चाचा जी ने एकदम गौर से देखा, वो वहीँ खड़ा रहा। 


चाचा जी उसकी तरफ थोडा सा बढे ये सोच कर की कहीं ये कोई चोर तो नहीं। मगर वो थोडा सा पीछे हटा। चाचा जी समझ गए की ये कोई चोर नहीं हो सकता, क्योकि एक टांग वाले व्यक्ति का बीस फुट ऊँची दिवार फांद कर अन्दर आना असंभव था। चाचा जी ने उसे अछि तरह पहचानने के लिए बड़ी लाइट जलाई। लेकिन लाइट के जलते ही वहां उन्हें कोई नहीं दिखा। अब चाचा की मन में डर अपने घर को मजबूती देता जा रहा था। चाचा जी ने वहां से तुरंत लाइट को जलता हुआ ही छोड़ दिया और अपने कमरे में आकार लेट गए। और फिर उन्हें सारी रात नींद नहीं आई। सुबह उन्होंने ये सारा वाक्या हमे बताया। हम यही निष्कर्ष निकल पाए की शायद खान साब की अगरबत्ती के वजह से जो भी यहाँ है वो भड़क गया है इसलिए वो सीधा सीधा नज़र आया और चाचा को परेशान भी किया। अब इसका केवल एक ही उपाय उस वक़्त सूझ रहा था की अगर खान साब से ही इस समस्या का हल करवाया जाये। शायद जो भी हुआ उनकी उस अभिमंत्रित अगरबत्ती के कारण ही हुआ है। 


अगले दिन हम तुरंत उन्होंने घर लाने के लिए राज़ी हो गए। वो घर जाकर किसी का काम करने के तीन हज़ार रुपए लेते थे। हमारी हालत तो वेसे भी पैसो के मामले में कम हो चली थी मगर फिर इसी समस्या के लिए हमने पैसो का इन्तजाम भी कर लिया। क्योकि हमे डर था की जो भी को लंगड़ा दिखा था, कहीं वो किसी को नुकसान पहुँचाना न शुरू कर दे। खान साब से मिलकर हमने सारी बात बताई और उन्होंने हमे अपने काम लगने वाली एक सामग्री की पर्ची थमा दी। उसमे सब कुछ उर्दू में लिखा था हमे कुछ भी समझ आने का सवाल ही नहीं था, लेकिन जब हम वो सामान लेने के लिए बाजारों में गए जिसको जिसको उर्दू आती थी उन्होंने उस सामान के पास होने से मना कर दिया और जिन्हें उर्दू नहीं आती थी उनके पास जाने का कोई तुक नहीं था। उस पर्ची में लिखे सामानों में से हमे सिर्फ एक मीटर सूती कपडा ही मिला था। 


बाकि सामान के लिए हमने कई बजारें देख डाली मगर कोई सामान नहीं मिला। थक हार कर हम वापस खान साब के पास पहुंचे उन्हें सामान न मिलने की बात कही। उन्होंने हमसे कहा की "इस सारे सामान का बंदोबस्त हम कर लेंगे, बस आप इसकी कीमत दे दीजिये और फिर मेरे घर चलने का इंतजाम कर लीजिये। कल सुबह ग्यारह बजे हम घर चलेंगे।" जब हमने पूछा की इन सब सामानों का दाम कितना दें तो उन्होंने खर्च ढाई हज़ार का खर्चा बता दिया और कई दलीलें भी दी जैसे के सारा हमारे ही भले के लिए है और इसमें उनका कोई फ़ायदा नहीं है वगेरह वगेरह। अब मरता क्या न करता? सो हमने वही तीन हज़ार रुपये में से ढाई हज़ार सामान के लिए दे दिए। और वापस अगर बाकी पैसो का इन्तेजाम थोडा बहुत आस पास से कर लिया। अगले दिन गाडी के द्वारा हम उन्हें घर लेकर आये। वो सामान माँगा चुके थे। वो अपने साथ एक थैला लिए थे जिसमे सारा सामान रखा हुआ था। 


हम उन्हें घर लाये तो उन्होंने कहा की "कोई ऐसी जगह घर की हो की अगर कोई अचानक मेहमान वगेरह आये तो हमारी उन्हें खबर न लगे।" हमने उन्हें घर का एक ऐसा ही कमरा दे दिया। फिर उन्होंने थोडा चाय पानी किया और उसके बाद एक सफ़ेद सूती कपडे के कुछ टुकड़े बनाये। हर टुकड़े को सात बार इस तरह से फाड़ा की वो अलग न हो फिर कुछ पढ़ कर उसके ऊपर फूंका और उसके बाद हमे कहा की इन्हें घर के आगे और एक घर के पीछे ले जाकर जला दो। सो हमने कर दिया। उसके बाद कुछ सामग्री निकली पानी थैले से और उनसे कोई आकार सा बनाकर सजा दिया। 

उन सामग्रियों में सारी चीजें तो मैं नहीं जनता मगर कोई हड्डी, सरसों के बीज और गुलाब के फूल कुछ ताजे और कुछ सूखे हुए पहचान में आ रहे थे। वो सबको इस तरह से इशारा करके बात कर रहे थे जेसे के वो देख रहे हो कौन कहाँ बैठा है? मुझे लगा शायद इन्हें इनकी किसी सिद्ध शक्ति से सब दिख रहा होगा। उसके बाद पता नहीं क्या क्या मंत्र से उन्होंने पढ़े। जिनमे शुरुआत के शब्द 'अला बांधू, बला बांधू....' समझ में आ रहा था और बाकि नहीं। कुछ देर इस तरह के कुछ और काम करने के बाद उन्होंने हमसे कहा "घर में बला तो है। और वो बहुत ताक़तवर भी है। 


एक काम करो मुझे बताओ आप लोगों को समस्या क्या क्या होती है? जिसको जो समस्या होती है हमे बताओ ताकि हम जान सकें की उसकी पहुँच(ताक़त) कितनी है?" उस वक़्त हम सबने समस्या बताई लेकिन उसकी रूचि ऋतू में ज्यादा दिख रही थी। जबकि वो अब ठीक थी फिर भी उसने कहा इस लड़की पर बला है। फिर उससे पूछा की "तुम्हे क्या परेशानी हो रही थी?" ऋतू ने बताया की "उलटे सीधे सपने आते हैं और फिर तबियत ख़राब हो जाती है।" उन्होंने पूछा "किस तरह के सपने आते हैं?" ऋतू अब मेरी तरफ देखने लगी। मैंने कहा "खान साब, काफी गंदे और अश्लील किस्म के सपने आते हैं।" उसके बात उन्होंने मुझे वहां से जाने के लिए कह दिया। 


मुझे कुछ संदेह तो हुआ मगर चिंता की कोई बात नहीं थी क्योकि मेरी मम्मी और चाची तो वहां बैठी ही थीं। बाद में ऋतू ने बताया की मेरे जाने के बाद उन्होंने ऋतू से पूछा था की "ज़रा सपना बताओ क्या क्या दीखता है।" जिसका जवाब उसने सिर्फ यही दिया था की "बहुत गंदे, इसे की मैं बता नहीं सकती।" लेकिन उन्होंने फिर भी ऋतू को सपना बताने को कहा। लेकिन ऋतू इस बात से आगे चुप्पी साध गयी और बार बार पूछने पर भी एक शब्द नहीं बोली। और न ही मम्मी और चाची ने कोई जोर दिया। उसके बाद मुझे अन्दर बुला लिया गया। उन्होंने कुछ और पता नहीं क्या क्या किया फिर कहा की "वो लंगड़ा कोई भटकता हुआ इसे ही हवा थी। अब वो आपको परेशां नहीं करेगा में उसे बाँध कर ले जा रहा हु। लेकिन आपकी इस बहु पर थोड़ी बला है उसे ये ताबीज़ पहना दीजिये और ये चार पर्ची। बोतल में डाल कर चार दिन तक पिए। 


हर दिन बोतल की पर्ची बदल बदल कर।" ऐसा कह कर उन्होंने यन्त्र बनी हुयी चार पर्ची मुझे दे दी और ताबीज भी पकड़ा दिया। उसके बाद थैले से अगरबत्ती के ३ पैकेट निकले और कहा की "दो दो अगरबत्ती रोज़ जला कर पुरे घर में धुआं दे देना।" उसके बाद कुछ जलाया और उसका धुआं पूरे घर में देने को कहा। फिर थोड़ी देर बैठ कर। उन्होंने अपना काम करने का मेहनताना ३ हज़ार रुपए के तौर पर लिया और चलने को कहा। मैं उन्हें घर छोड़ने के लिए जाने ही वाला था की ऋतू ने मुझसे कहा की "ये व्यक्ति मुझे ठीक नहीं लग रहा।" और उसने मेरे कमरे से बाहर जाने पर कमरे में क्या हुआ था बताया। 


मुझे उसपर गुस्सा आने लगा। अब उसके इरादे मुझे समझ आने लगे थे। लेकिन गुस्से पर काबू करके मैंने उन्हें गाड़ी में आगे की सीट पर बैठाया। चाचा जी पीछे बैठे थे और मैं गाडी चलाने लगा। मेरा दिमाग इस भयानक कशमकश में उलझा हुआ था की ये ढोंगी सच में अँधा है ये नहीं। मैं सुगम और सरल रास्तो से गाडी ले जा रहा था। फिर मैंने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी, चाचा जी ने मुझे धीरे चलने को कहा लेकिन मेने एक न सुनी। एक जगह पर सामने एक ट्रक दूसरी तरफ क्रास कर रहा था। ये देख कर भी मैंने अपनी रफ़्तार धीमी नहीं की और अचानक ब्रेक लगा दिया। हम सब देख रहे थे इसलिए मैं और चाचा जी संभल गए थे। लेकिन खान साब तो अंधे थे वो कैसे संभल गए? उन्हें तो शीशा तोड़ कर बाहर गिरना था। 


सीट बेल्ट के बिना वो संभल गए। ये बात मेरे दिमाग में गूंज रही थी। और चाचा जी इस बात पर ध्यान दिए बिना मुझे ठीक से चलने की नसीहत देने लगे। मैं बाहर निकल कर खड़ा हो गया और फिर गाडी के पीछे की तरफ जाकर चाचा जी को बुलाया। वहां पर घडी का टायर दिखने के बहाने फिर मैंने चाचा जी को उसके अन्धें न होने की बात बताई और ये भी बताया की उसकी एक आँख तो काम नहीं करती लेकिन दूसरी करती है जिससे उसे दिखाई देता है। मैं अपना गुस्सा उसे पीट कर निकलना चहता था लेकिन चाचा जी ने समझाया की ये मामला सांप्रदायिक हिंसा के नाम से तूल पकड़ सकता है। ऐसा करने से अच्छा है की इसको इसके घर पर छोड़ कर दुबारा वो रास्ता न देखें। चाचा जी की बात मान कर अपनी किस्मत को कोसते हुए उसको उसके घर छोड़ दिया। और उसके बाद वापसी में मोना सिस्टर को सारी बात बता कर उन्हें भी सावधान कर दिया की न कभी खुद उसके चक्कर में पड़े और न ही किसी और को बताएं। 


वापस आकर हमने सोचा की घर पर सबको ये बात बता कर सावधान कर दिया जाए की उसकी दी हुयी किसी भी चीज़ का इस्तेमाल न करे और न ही कुछ उसका दिया हुआ खाएं। लेकिन जब हम घर पहुचे तो वहां पहले ही सब उसके ऊपर गुस्से का उबल लिए बैठे थे। मम्मी और चाची जी ने भी मुझे बहुत डांटा की किसको पकड़ लाया मैं घर में जो इस तरह से उलटी सीधी नज़र रखे घर के लोगों पर। उसकी दी हुयी ताबीज और पर्ची पहले ही मम्मी ने घर से बाहर फैंक दी थी और अगरबत्ती को मुझे देकर कहा की "इससे मैं इतनी दूर कूड़े में फैकू की जहाँ अगर कूड़े के साथ जलाई भी जाये तो इसका धुआं घर तक न पहुचे।" मैं सवाल नहीं कर सकता था। बस जैसा कहा गया मैंने वैसा ही किया। 


घर पर अब सब इसक बात के लिए अड़ चुके थे की तांत्रिक और ओझा के चक्कर में पड़ कर धोखा उठाने से अच्छा है घर बदल लिया जाये और गुरु जी जब आएंगे तब की तब देखि जाएगी। अब हम किसी भी तांत्रिक क्रिया द्वारा घर की परेशानी का समाधान करने की बजाये घर के साथ साथ परेशानी को भी हटाने का फैसला कर लिया। जब हम घर बेचने पर जोर शोर से अमादा हो गए तो जैसे घर की परेशानी भी गायब सी होने लगी। धीरे धीरे सपने कम होने लगे और बीमारियाँ भी जाने लगी। 


लेकिन पैसो का पानी की तरह बहना जारी रहा। ख़ुशी ख़ुशी हमने दिवाली और बाकि साथ के त्यौहार मनाये। कुछ दिन बाद सब कुछ ठीक देखते हुए हम सबने एक दिन ये सोचा की अब ग्राहक की खोज ख़त्म करते हैं। अब सब कुछ ठीक ठाक है तो फिर ये घर बेचने का क्या फ़ायदा। घर बेचने की बात अब हम सबने अपने ज़हन से निकल दी। अब सिर्फ अपने काम काज पर ध्यान देने लगे। कुछ दिन में जैसे वो सारी बीती हुयी कहानी वापस आने लगी। पहले तो ऋतू को सपने आने लगे, और उसके बाद फिर चाची जी की तबियत अचानक बिगड़ गयी। 


उसके बाद फिर से घर में सबको सपने से आने लगे। और कोई न कोई बीमार पड़ जाया करता था। अपने पंडित जी को घर दिखाकर वास्तु उपाय करवाए गृह शांति पूजा करवाई। कुछ दिन सबकुछ सही रहता फिर उसके बाद वही कहानी शुरू हो जाती। अब हमारा घर ही हमे बाहर निकालने पर अमादा हो गया था। जब भी हम घर बेचने की बात करते घर में सब कुछ सही हो जाता था। और जब भी हम सोचते की अब सब कुछ सही है घर बेचने की जरुरत नहीं वेसे ही दुबारा परेशानियाँ शुरू हो जाती। समझ ही नहीं आ रहा था क्या करें क्या न करें


हमारी खुशियाँ जेसे घर को मंजूर ही नहीं हो रही थी, या फिर शायद जो वहां था उसे। हम जो भी उपाय करते उससे परेशानी ख़त्म तो होती थी मगर सिर्फ कुछ दिन के लिए, उसके बाद वापस अपना काम वेसे ही करती थी। मेरा एक दोस्त जिसका नाम ब्रिजेश जैन था वो मेरी सारी परेशानियों से वाकिफ था। वो मेरे सरे पिछले तजुर्बों से भी लेकिन मेरा बहुत अच्छा दोस्त होने के बाद भी मेरी परेशानियों की गहन जानकारी नहीं थी। उसे बस यही पता था, घर में परेशानियाँ केसी हैं और किस किस को दिखा चुका हूँ। एक दिन उसने मुझे एक शख्स से मिलने को कहा, उसने बताया की वो एक अच्छे जानकर के साथ साथ एक अच्छे इन्सान भी हैं। 

पहले तो मैंने साफ़ मना किया लेकिन उसने अपने खुद के व्यक्तिगत तजुर्बे बताये जिससे मुझे लगा की शायद मुझे मिलना चाहिए। मैंने उससे जब उनका नाम और पता माँगा तो उसने बताया की उनका नाम शाह जी है वो जामामस्जिद के पास रहते हैं। उनका नाम सुनकर मुझे पहले तो खान साब नाम के उस ढोंगी के ढोंग की याद आ गयी। और मैंने ब्रिजेश को धर्म पक्षता में जाने क्या क्या कह दिया। और उसे खुद भी विश्वास न करने की सलाह दे डाली। लेकिन उसने मुझे फिर से काफी समझाया और बताया की "एक अच्छे इंसान का धर्म उसकी अच्छाई होती है, जिसके आगे वो किसी धर्म को नहीं मानता। 



शाह जी भी ऐसे धार्मिक व्यक्ति हैं।" और उसने ये भी कहा की बिना किसी को अजमाए किसी पर भी ऊँगली उठाना सबसे बड़ी गलती है। उसकी बातों और अपनी परेशानी को ध्यान में रख कर मैंने उनसे मिलने का मन बनाया। लेकिन मैंने ब्रिजेश से कहा की वो भी मेरे साथ चले। वो राज़ी हो गया और उसने कहा की "परेशानी घर से से सम्बंधित है इसलिए घर का एक नक्शा मैं एक कागज़ पर बना कर ले चलूँ।" मैं उसकी बात को मानता गया, समाधान की कोई आशा नहीं की वरना समाधान न होने पर निराशा ज्यादा होती है। मैं बस दोस्त की बात मानकर घरवालों को बिना बताये उसके साथ जाने को राज़ी हो गया था। अपने अनुभव में एक और पृष्ठ को जोड़ने के लिए। 

रविवार के दिन के मैं और ब्रिजेश शाह जी से मिलने के लिए निकल पड़े। जमामस्जिद के पीछे की कई तंग गलियों को पार कर एक मकान के आगे रुके। वही शाह जी का घर था। हम अन्दर गए वहां पर पहले से ही कई लोग बैठे थे। शाह जी नौकरी पेशे वाले व्यक्ति थे। घर के अन्दर की साज़ सज्जा उन्होंने बहुत ही खुबसूरत कर रखी थी। घर के आंगन अच्छीखासी बागवानी के साथ साथ कुछ पक्षी भी पाले हुए थे जिनमे कबूतर, तोते, और कुछ तोते जेसे दिखने वाले पक्षी भी थे जिन्हें मैं असल नाम से नहीं जानता। 


इस सब नजारों तरफ से नज़र हटाकर हमने शाह जी की तरफ ध्यान लगाया उन्होंने हमारी तरफ देखा और हमने बिना आवाज़ में उन्हें नमस्ते किया और उन्होंने हाँ में सर हिला कर हमारा स्वागत किया और बैठने को कहा। वो कोई पेंतीस वर्षीय व्यक्ति थे। सोम्य व्यवहार के साथ बहुत ही धीमी आवाज़ में बात कर रहे थे। इतनी धीमी आवाज़ में की हमे बस हलकी बोलने की आवाज़ आ रही थी। मगर हम नहीं जान सकते थे की वो क्या बात कर रहे थे। और ये अच्छी बात थी की कोई और किसी की परेशानी न जान सके। कुछ देर में एक एक कर सब चले गए बचे केवल मैं और ब्रिजेश। 


हम शाह जी के पास पहुंचे और ब्रिजेश के साथ साथ मैंने भी उनसे दुआ सलाम किया। ब्रिजेश ने मेरा परिचय करवाया उसके बाद अपनी परेशानी बताने को कहा। मैंने सारी बड़ी परेशानियाँ सामने रख दी। उन्होंने पूछा की "ये सब कब से हो रहा है?" मैंने बताया की घर में आने के करीब छः महीने के बाद से। उन्होंने पूछा की "घर में किस किस को परेशानी हो रही है।" मैंने बता दिया किसको क्या क्या परेशानी हुयी है। उसके बाद उन्होंने पूछा की "किसे परेशानी तब से अब तक है, जो ठीक हो गए उनके सिवा।" मैंने ऋतू का नाम बताया। उसके बाद उन्होंने कहा की "शायद बला कुछ आपके घर में हो सकती है। 



आप मुझे अपने घर का एक कागज़ पर नक्शा बना कर दे दीजिये।" ब्रिजेश ने कहा "शाह जी, हम पहले से बना लायें हैं। ताकि आपका समय बर्बाद न हो।" उन्होंने शुक्रिया अदा कर कृतज्ञता ज़ाहिर की। उसके बाद घर के नक़्शे पर उर्दू में कुछ लिखा कई जगह। उसके बाद कुछ गुणा भाग सा किया। देखने में तो ऐसा ही लग रहा था बाकि अगर उर्दू पढनी आती तो शायद समझ में आ जाता। काफी देर उन्होंने इसे ही न जाने क्या क्या किया। घर के नक्शे में पूछा की कौन सा कमरा किसका है? मैंने सब ठीक ठीक बता दिया। उसके कुछ देर बाद उन्होंने कहा "घर तो ठीक नहीं है, उसमे कुछ बला जरुर है और कुछ कुछ एस लग रहा है जैसे की वहां किसी कब्र की मौजूदगी है।" 

अब मुझे कैसी अनुभूति हुयी ये मैं बयां नहीं कर सकता। पता नहीं वो ख़ुशी थी या फिर उम्मीद या फिर गम। मुझे याद आया की उस ईसाई महिला ने भी यही बताया था। लेकिन खान साब जैसे ढोंगी को ये बात पता तक नहीं चली। अब मुझे यकीन हो गया था की घर में एक कब्र है। क्योकि जब दो तांत्रिक, जो आपस में कभी न मिलें हो और एक ही बात कहें तो वो बात यक़ीनन सच होती है। अब मैं उनके अगले वाक्य का इंतज़ार करने लगा, जिसमे मैंने सोचा था की वो यही कहेंगे की ये कब्र बहुत सालों पुरानी है। 


लेकिन उन्होंने एस कुछ नहीं कहा। वो बोले की "अभी कुछ बंदिशें से आ रही हैं, अगर आप थोडा परेशानी उठा कर मुझे आज रात का समय दें तो शायद आपका ये मसला हल हो जाये।" हम राज़ी हो गए और उम्मीद की किरण सी जब नज़र जाये तो छोटी मोती परेशानी की चिंता कौन करता है। हमने उन्हें अगले दिन आकार मिलने को कहा। उन्होंने कहा की "आप ये नक्शा यहीं छोड़ जाईये और अगर हो सके तो, जिसको घर में सबसे ज्यादा परेशानी हुयी है और अभी भी है उसे कल साथ ले आईये। फिर आगे खुदा जो चाहेंगे वही होगा।" मैंने उनकी बात मान ली और घर के लिए निकल पड़ा। बस घरवालों को किसी तरह मानना था। मुझे मालूम था उन्हें मानाने के लिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी। 

आखिरकार घर का सवाल जो था। घर थोडा डरते हुए मैंने पूरी बात मम्मी को बता दी। उन्हें पहले ये जान कर गुस्सा आया की मैं किसी तांत्रिक के पास क्यों गया, लेकिन पूरी बात सुनने के बाद उन्होंने मुझे कुछ नहीं कहा। उन्होंने कहा की "देख लो एक बार फिर जाकर शायद सब ठीक हो जाये, घर में अगर कोई बला है और वो निकल सकते हैं तो ठीक है वरना वहां के चक्कर मत काटना।" फिर मैंने मम्मी से पूछा की "जबसे परेशानी हुयी है, सबसे ज्यादा ऋतू को ही सपने और डिप्रेसन हुआ है और अभी भी सपने आ रहे हैं, एक बार इसे भी उन्हें दिखा लू? क्योकि आदमी वो सही लग रहे थे और फिर मैं साथ ही रहूँगा।" मम्मी ने इज़ाज़त दे दी। लेकिन उस वक़्त बीमार चल रही चाची जी को में ले जाना चाहता था मगर मुश्किल था। 


एक तो वो मोटरसाइकिल पर बैठ नहीं पाती और वहां पर कार ले जाने की जगह ही नहीं थी। इसलिए मैं सिर्फ ऋतू को साथ ले जाने वाला था। पहले तो ऋतू ने बहुत न नुकुर करी लेकिन उसके बाद बिना मन के चलने के लिए राज़ी हो गयी। अगले दिन करीब दोपहर को ३ बजे हम वहां पहुंचे। आज ब्रिजेश नहीं आ सका था इसलिए केवल में और ऋतू ही वहां पहुंचे थे। हम शाह जी के घर में गए तो उनकी पत्नी ने हमे बैठाया और शाह जी उस बाहर थे |इसलिए अपने बेटे को उन्हें बुलाने के लिए भेज दिया। थोड़ी देर में शाह जी वहां आये। दुआ सलाम हुआ हमारे बीच और फिर शाह जी ने हमारी खरियत पूछी। उसके बाद मेने अपनी पत्नी का परिचय करवाया। और ये भी बता दिया की हमारे घर में सबसे ज्यादा परेशानी इसी को होती है और ये तब से है जब से परेशानियों की शुरुआत हुयी है। शाह जी ऋतू से पूछा "बेटी, तुम्हारा नाम क्या है?" ऋतू ने जवाब दिया "जी ऋतू।" "कितने साल हुए हैं आपकी शादी को?" शाह जी ने पूछा। 


अक्सर तांत्रिक लोग इसे सवाल पूछते हैं जिनका जवाब वो पहले से जानते हैं। वो एस इसलीये करते हैं ताकि वो जान सके की वो उसी व्यक्ति से बात कर रहें है या उसके अन्दर छुपे किसी और से। ऋतू ने जवाब दिया "करीब सवा साल हो रहा है।" उसके बाद शाह जी ने अगला सवाल किया "बेटी, तुम्हे क्या परेशानी होती है? या फिर अभी क्या परेशानी है? ज़रा बताओ।" "जी, मुझे अक्सर बिना बात के घबराहट होने लगती है। उसके बाद तबियत बिगड़ जाती है। मुझे इनपर गुस्सा आने लगता है चाहे ये मुझसे बात कर रहे हो या न कर रहे हो। और ज्यादातर बहुत गंदे और मनहूस से सपने आते हैं, जिससे मुझे बहुत परेशानी होती है।" ऋतू ने सर झुकाए हुए ही सारी बात कह डाली। "गंदे ख़राब सपने, अच्छा! इनके जैसे दिखते होंगे?" शाह जी ने पूछा। ऋतू उनके इस सवाल को समझ नहीं पायी और सवाल भरी निगाह से मेरी तरफ देखने लगी। 


जेसे उम्मीद कर रही हो की मैं उसे समझाऊ। लेकिन उनका ये सवाल मेरी भी समझ से बाहर था। शाह जी इस बात को भांप गए। अब उन्होंने स्पष्ट शब्दों में पूछा "बेटी, आपको इनकी जगह कोई और दिखता होगा न?" अब ये प्रश्न मेरी और ऋतू की समझ में आ गया और ऋतू ने हामी भर दी। उसके बाद शाह जी शांत होकर कुछ लिखने में लग गए। उसके बाद उन्होंने सपनो के बारे एक भी बात नहीं की। उनकी इस नजाकत और शराफत का मैं कायल हो गया। कितना फर्क था एक ढोंगी खान साब और एक संत शाह जी में। मेरे अन्दर जो भी धर्म पक्षता की भावना थी ख़त्म हो गई। मैं ब्रिजेश की उस बात को अच्छी तरह समझ गया था की अच्छे इंसान का कोई मजहब नहीं होता। उसका सबसे बड़ा मजहब उसकी अच्छाई ही होती है। मैंने मन ही मन उन्हें दिल से नमन किया। शाह जी ने कुछ देर बाद अपनी वो गणित पूरी कर ली। फिर भी कुछ देर बैठ कर उसे निहारते रहे। उसके बाद उन्होंने कहा "इनकी परेशानी तो खुद की रहमत से काबू हो जाएगी। 


एक ताबीज़ इन्हें पहना देना मैं बना देता हूँ। लेकिन इस ताबीज़ को पहन कर न तो कभी मैय्यत में जाना और न कभी शराब को छूना, अगर ऐसा कुछ अचानक हो जाये तो इस ताबीज को उतार देना।" मैंने उनकी बात पर हामी भर दी। उसके बाद उन्होंने एक छोटे से कागज़ पर कुछ लिखा और फिर उसपर मंत्र पढ़ कर फूँक दिया। उसके बाद एक छोटी सी पोलिथिन में उसे अच्छे से तय करके थोडा जला कर अच्छे से एक आयत की तरह बना दिया और कहा की "किसी काले कपडे में इसे सिलकर उसके बाद अगरबत्ती का धुआं देकर पहन दीजियेगा, सपनो और बाकि बलाओं से से भी हिफाज़त रहेगी।" फिर उन्होंने मुझे वो ताबीज दे दी। उसके बाद मैं उनके लिए कुछ फल वगेरह ले गया था उन्हें भेंट किये। वो लेने को राज़ी नहीं थे मगर जब मैंने कहा की "ये मैं उनके बच्चो के लिए लाया हूँ। उनके लिए नहीं।" तो वो हंस पड़े और पत्नी को बुला कर उनसे रखवा दिया। 



उसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी को दुबारा बुलवाया और कहा की "बेटी को यानि ऋतू को अपने घर के पंछी दिखा लाओ।" ऋतू ने मेरी तरफ देखा, वो जाना नहीं चाहती थी लेकिन में समझ गया की शाह जी को शायद कोई बात करनी है जो वो ऋतू के सामने नहीं करना चाहते। और फिर मैंने ऋतू को जाने का इशारा कर दिया। वो आराम से उठ कर उनके साथ चली गयी। मैंने तैयार था कुछ ऐसा सुनने को जिससे मेरे होश तो शायद न उड़ें मगर कुछ नया जरुर पता चलेगा। यही सोचकर मैं शाहजी के कहने का इन्तजार करने लगा ।  क्रमस  

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