मेरा घर part 1

नमस्कार दोस्तों, कहते हैं अपने घर से ज्यादा सुरक्षित जगह दुनिया में कहीं नहीं होतीलेकिन जिस घटना का अब में उल्लेख करने जा रहा हूँ उससे ये बात मेरी जिंदगी में गलत साबित हुयी थी।

मेरा घर part 1
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मेरा घर part 1

नमस्कार दोस्तों, कहते हैं अपने घर से ज्यादा सुरक्षित जगह दुनिया में कहीं नहीं होती, लेकिन जिस घटना का अब में उल्लेख करने जा रहा हूँ उससे ये बात मेरी जिंदगी में गलत साबित हुयी थी। मगर शायद होनी को कोई बड़ा नुक्सान मंजूर नहीं था जिसके लिए में ईश्वर का सदैव शुक्रगुज़ार रहूँगा। जिस घर में मैं अभी रह रहा हूँ। कुछ साल पहले ही हम इस घर में आये थे। ये बना बनाया घर नहीं था इसे एक प्लाट लेकर हम लोगों ने खुद ही बनवाया था। इसलिए नीव की खुदाई से पहले पंडित से पूछ कर घर के ईशान कौण पर पूजा का कार्यक्रम रखा गया। पंडित जी ने विधिवत पूजा करवाइ। 


उस वक़्त कार्यक्रम में हमने रिश्तेदारों को भी बुलवाया था। जिसमे पिता जी के चाचा जी एक आम का छोटा सा पेड भी लेकर आये थे। जो की एक मामूली बात थी अक्सर घर बनवाने से पहले लोग पेड लगाया करते हैं। लेकिन हमारे घर का ईशान कौण हमारी घर के पीछे का भाग था। पूजा समाप्त होने के बाद पिता जी के चाचा जी ने वो पेड घर के आगे की तरफ लगाने की बजाये घर के पीछे की ही तरफ जहाँ से नीव की खुदाई की काम शुरू होना था वहां से करीब एक फुट की दूरी पर घर के अन्दर की तरफ लगा दिया। पिता जी ने उनसे ये कहा भी की जब काम शुरू होगा तो पेड तो टूट जायेगा इसे आगे की तरफ लगा दीजिये। लेकिन उन्होंने कहा की "घर की पहली बालाएं ये अपने सर ले लेगा टूट जाने देना इसे।" उनके कहे के मुताबिक पिता जी ने उस पेड को वहीँ रहने दिया और घर का काम शुरू करवा दिया। धीरे धीरे मजदूरो की मेहनत और एक बनते मकान के नीचे वो पेड दफ़न हो गया। और फिर करीब डेढ़ साल बाद हमारा ये घर तैयार हो गया। 


लेकिन बनने के बाद भी हम इसमें स्थानांतरित होने में करीब छः महीने लग गए। उसके बाद हम घर में रहने के लिए आ गए। मम्मी, पापा, भाई, बहन, चाचा, चाची, दादा जी। पहले साल तो सब कुछ सही था। लेकिन दुसरे साल से ही घर में जैसे बिमारियों का सिलसिला शुरू हो गया। पहले घर में सबको डरावने और मनहूस से सपने आना शुरू हुए। लेकिन जल्द ही सपनो के साथ मुसीबतें भी शुरू हो गयी। सबसे पहले मेरी मम्मी की तबियत ख़राब होना शुरू हुयी। मामूली बुखार और सर्दी से शुरू होते होते बीमारी ने पीलिया का रूप ले लिए जिसमे इलाज़ हो तो रहा था मगर दवाईयां बहुत कम फ़ायदा कर रही थी। सब कुछ बहुत मुश्किल हो रहा था। एक तरफ हॉस्पिटल का खर्च बढ़ता जा रहा था, और दूसरी तरफ मम्मी की सेहत में कोई सुधार नहीं हो रहा था। लेकिन डॉक्टरों की लगातार कोशिश और घर पर मान मिन्नतो की वजह से मम्मी की हालत में सुधार होना शुरू हुआ। और करीब ३ महीने बाद मम्मी की सेहत में थोडा सुधार हुआ और लेकिन उन्हें सामान्य होने में फिर भी ६ महीने लग गए थे। 


इस दौरान सारे काम काज पर भी असर पड़ना शुरू हो गया था। लेकिन अभी तक हम लोग इसे हालात को जिंदगी की कसौटी मान कर स्वीकार करते जा रहे थे। लेकिन घर में डरावने सपनो को सिलसिला चालू था। आधुनिक विचारधारा के चलते हम लोगो ने उन सपनो का मतलब निकलना उचित नहीं समझा और हर दिन सुबह उन सपनो को भुला देते थे। मम्मी की तबियत ठीक हो जाने के बाद मन्नतो के मुताबिक घर में पूजा रखी गयी। विधिवत पूजा हुयी। उसके बाद करीब १ महीने तक घर का वातावरण सामान्य हो गया। सारे डरावने सपने दिखने बंद हो गए थे। 

नवरात्रों में भी पूजा का विशेष पाठ रखा गया जिसकी वजह से घर का माहोल और ज्यादा उम्दा हो गया। लेकिन ये सब सिर्फ कुछ महीनो के लिए ही टिका। उसके बाद फिर से डरवाने सपनो का सिलसिला शुरू हुआ। इस बार हम सब अपने सपनो को आपस में बताने लगे जिससे पता चला की घर में हर किसी को कोई न कोई बुरा सपना आ रहा है। कुछ सपने तो इसे होते थे जिन्हें परिवार में बताया भी नहीं जा सकता था। 


इस बार बीमारी का प्रहार मुझ पर पड़ गया। मुझे पहले कुछ दिन तो पेट दर्द रहा, अल्ट्रासाउंड और बाकि जांच भी हुयी मगर कोई बीमारी या कोई परेशानी सामने नहीं आई सिर्फ दर्द रहता था। कुछ दिन बाद दर्द बढ़ता चला गया और उसने अल्सर का रूप ले लिया। जिसकी वजह से मुझे हॉस्पिटल में दो हफ्ते बिताने पड़े। वेसे तो अल्सर कम वक़्त में ही ठीक हो जाने वाली बीमारी है वक़्त लगने की वजह वही थी दवाईयों का धीरे या फिर बिलकुल ही न लगना। खैर में दो हफ्ते बाद घर पहुंचा। खाने पिने का सख्त परहेज था क्योकि बीमारी अभी पूरी तरह काबू में नहीं थी। एक दो दिन तो सब ठीक था। करीब चौथे या पांचवे दिन की बात है मेरी पत्नी ऋतू को कोई डरावना सपना आया जिससे वो अचानक नींद में ही रोते हुए उठ कर बैठ गयी। 


मैंने उससे बहुत पूछा मगर उस वक़्त उसने कुछ नहीं बताया बस रो रही थी। अगली सुबह उसने बताया की उसे बहुत ही अश्लील और डरावना सपना दिखा था जिससे वो बहुत ज्यादा डर गयी थी। उस बात को हमने यूँ ही सपना समझ कर भुला दिया। तकिये के नीचे कैची वगेरह रख कर सुरक्षित करना चाहा मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ और सपनो का सिलसिला जारी रहा। वो रोज़ रात को दर जाती थी तो कभी नींद में ही रोना शुरू कर देती बिना जागे। फिर मुझे उसको जगाना पड़ता था। धीरे धीरे घर में अक्सर सबको कुछ न कुछ डरावने सपने आना शुरू हो गए। 

मैं अब ठीक हो चला था लेकिन ऋतू की हालत धीरे धीरे ख़राब हो गयी वो सोने से डरने लगी। जितना हो सकता उतना जागती और जब बेहाल होकर सोती तो फिर डर जाती। उससे डिप्रेसन की शिकायत होने लगी थी। डॉक्टर के कहने पर उसका माहोल बदलने के लिए उसे में बाहर भी लेकर गया और कुछ दिनों के लिए उसके मायके भी छोड़ कर आया। जिससे वो ठीक तो हो गयी लेकिन घर में वापस आते ही फिर से उसे वही परेशानी शुरू हो गयी। घर में अब कोई न कोई बीमार पड़ता जा रहा था, पैसे ने जैसे पानी का रूप ले लिया था। कहीं भी नहीं टिक रहा था। एक दिन की बात है जब मैं अपने पारिवारिक डॉक्टर के पास अपने भतीजे को लेकर गया था तो वहां एक नर्स थी.


"सुसन" उन्होंने घर में एक के बाद एक व्यक्ति के बीमार होने का कारण पूछा। मैंने अनभिज्ञता जताई। उन्होंने सलाह दी की किसी उपरी चक्कर वाले को भी दिखा लो शायद कोई और वजह हो। मैंने उनकी बात तो सुनी मगर अनसुना ही कर दिया। कुछ दिन बाद मेरी चाची की तबियत ख़राब हुयी तो उन्हें डॉक्टर को कई बार दिखाया मगर कोई फायदा नहीं हुआ। उन्हें केवल सीने और पेट के बीच के भाग में दर्द होता था वो भी इतना भयानक की हमे आधी आधी रात को भागना पड़ता था। लेकिन डॉक्टर की दवाईयों से उन्हें एक फीसदी भी आराम नहीं हो रहा था। कई टेस्ट हुए कई डॉक्टरों की सलाह भी ली मगर कुछ फायदा नहीं हो रहा था। एक दिन हमारे डॉक्टर ने खुद हमे सलाह दी की कहीं झाड़ा वगेरह लगवा लो शायद ठीक हो जाये। घर आकार हम सब बहुत परेशान थे। मम्मी और पापा ने तो कहा की इस घर को बेच देते हैं जबसे इसमें आये हैं परेशानी ही परेशानी आती जा रही है। अगर ऐसा रहा तो सड़क पर आ जायेंगे। तब मैंने सबके सामने ये बात रखी के क्यों न पहले कुछ कोशिश कर ली जाये किसी तांत्रिक की मदद लेकर शायद ये ठीक हो जाएँ। 


और अगर वो भी कहता है की ये घर और जगह ख़राब है तो फिर कहीं और ठिकाना ढूंढेगे। सिर्फ बीमारी होती तो शायद हम कभी तांत्रिक के लिए आगे न आते। क्योकि एक अच्छा और सच्चा तांत्रिक ढूँढना उतना ही मुश्किल है जितना की एक कस्तूरी मृग को ढूँढना। डरावने सपने और आर्थिक तंगी भी हमे किसी की मदद लेने को मजबूर कर रही थी। अब हमारे सामने ये समस्या थी की किस तांत्रिक की मदद ली जाये? क्योकि हमारे गुरु जी तो मद्रास गए हुए थे, अपने घर। उनका आना भी निश्चित नहीं था। फिर मुझे याद आया सुसन सिस्टर का वाक्य, थोड़ी उम्मीद नज़र आई की शायद वो किसी को जानती हो। हम पैसे वगेरह भी देने को तैयार थे। बस ये मुसीबते ये सपने और लगातार किसी न किसी को होने वाली बीमारियाँ दूर हो जाये। अगले दिन में हॉस्पिटल फिर से गया खासतौर पर सुसन सिस्टर से ही मिलने। उनसे मिला और अपनी साडी समस्या बता कर उसने पूछा की वो किसी तांत्रिक को जानती हैं क्या? उन्होंने बताया की वो एक ऐसी स्त्री को जानती हैं जो शायद हमारी मदद कर सके। उनसे मिलने के लिए सुसन सिस्टर ने उनका पता मुझे दिया और मुझे वहां ५ बजे आने को कहा। 



मैं अपनी मम्मी को लेकर वहां ठीक वक़्त पर पहुँच गया। सिस्टर वहां पहले से ही मौजूद थीं। हम उनके घर में दाखिल हुए और सिस्टर ने हम लोगों का परिचय करवा दिया। देखने में वो महिला बिलकुल भी तांत्रिक या कोई तंत्र मंत्र की जानकर नहीं लग रही थीं। बिलकुल एक घरेलु महिला वाला सलवार सूट का पहनावा। बिलकुल किसी मध्यम वर्गीय व्यक्ति वाला घर।उनके दो बच्चे अलग बैठे अपना कुछ पढ़ रहे थे। पूजा के लिए बस एक बड़ी सी ईसा मसीह की शूल पर, वाली मूर्ति थी और मूर्ति के आगे ३ मोमबत्तियां जल रही थी। मैंने कई तांत्रिक देखे थे मगर ऐसा कोई नहीं देखा था। एक नज़र में मुझे उनसे कोई उम्मीद नहीं नज़र आई। फिर तांत्रिको की इतनी साधनाए होती है और वो जिनकी सिद्धि करते है उनकी वो तस्वीर या प्रतिमा भी रखते हैं मगर यहाँ पर ऐसा कुछ भी नहीं था। मुझे लगा की कहीं मैंने यहाँ आकार अपना वक़्त को बर्बाद नहीं कर लिया। फिर सोचा जहाँ इतने तजुर्बे लिए वहां एक ये भी सही। मगर एक धार्मिक पक्षपात की भावना सी जागने लगी। 


शायद जानकारी की कमी की वजह से। उन्होंने हमे बैठाया और आदर के साथ पानी वगेरह भी दिया। उसके बाद मेरी मम्मी से सारी परेशानी पूछी। मम्मी उन्हें एक एक कर क्रमानुसार बताने लगीं। वो मम्मी को ध्यान से देख रही थीं। मुझे एक पल को लगा की जाने ये बात सुन भी रही हैं या अपनी किसी सोच में गुम हैं। लेकिन उन्होंने पूरी बात सुनी और बात ख़त्म होने पर उन्होंने कहा की "घर में कुछ तो है।" फिर एक एक करके उन्होंने हमारे घर के हर कमरे और हर बनावट को बताना शुरू किया। उनके बताने का अंदाज़ ऐसा था की जेसे जो वहीँ रहती हो। अगर किसी के सामने घर का नक्शा भी रखा जाये तो वो एस बखान नहीं कर सकता। उनकी इस सिद्ध क्षमता को देख कर मैंने ये बात मान ली की धर्मानुसार किसी की सिद्धि पर प्रश्न नहीं उठाना चाहिए। उन्होंने बताया की "तुम्हारे घर के बहुत नीचे एक कई शताब्दी पुरानी कब्र है। आकार में वो ९ फुट लम्बी और करीब साढ़े तीन फुट चौड़ी है। थोड़े बहुत डरावने सपने तो उसकी वजह से हैं।" ये सुनकर हमारे रोंगटे खड़े हो गए। मुझे इतनी मेहनत से बनवाया हुआ वो घर हाथ से जाता नज़र आने लगा। लेकिन सोचा सब ठीक रहेंगे तो घर तो और भी मिल जायेंगे। लेकिन उन्होंने अपनी बात को आगे बढाया " लेकिन तुम्हारे घर में जो अभद्र सपने और बीमारियाँ हैं वो उसकी वजह से नहीं है। 



तुम्हारे घर में इतनी साफ़ सफाई रहती है की वहां रहने वाला कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा। बस उस जगह को हमेशा साफ रखना। उन्होंने घर में उस कब्र की जगह भी बताई।" लेकिन अब हमारा दिमाग और ख़राब हो गया की अभद्र सपने और बिमारियों की क्या वजह है? ये बात हमने उनसे भी पूछी। उन्होंने कहा की "तुम्हारे घर में तुम्हारी अवनति के लिए कुछ करके गाड़ा गया है। लेकिन वो जगह साफ नहीं हो रही है की में तुम्हे बता पाऊं। और न ही वो चीज़ दिखाई दे रही है जो की गाडी गयी है।" अब हमारे पैरो के नीचे से जमीं सरक गयी। न जाने अब क्या होगा। जो चीज़ दिख ही नहीं रही उसका सामना कितना मुश्किल होता है इतना तो हमे पता ही था। उन्होंने फिर आगे अपनी बात कही "जो भी चीज़ गाडी गयी है वो किसी उस्ताद से बनवा कर गाडी गयी है। मतलब कोई तुम्हारा दुश्मन है जिसने भी ये काम किया है।" मम्मी ने पूछा "लेकिन अब इसका समाधान कैसे होगा? कहीं किसी की जान को तो कोई खतरा नहीं है न?" उन्होंने कहा "जान तो किसी नहीं ले सकती वो चीज़ मगर हाँ उसे वहां इस तरह रखा गया है की तुम्हारे घर में बिलकुल भी बरक्कत न रह जाये। तुम चिंता मत करो मैं यीशु से प्रार्थना करती हूँ।" फिर उन्होंने जाने कौन से अल्फाजो में एक प्रार्थना सी पढ़ी इतना तो में जनता हु की वो इंग्लिश, उर्दू, हिंदी या संस्कृत नहीं थी। वो जोर जोर से उसे पढ़ रही थी और सुसन सिस्टर भी उस वक्त आखें बन करके बैठी थी। 


थोड़ी देर उन्होंने पढने के बाद कहा "तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा और न ही तुम्हारे परिवार का। मैंने देखा यीशु ने आकर तुम्हे और तुम्हारे बेटे को छुआ है। ईश्वर की नज़र तुम पर है यीशु की नज़र तुम पर है।" अब मैंने उनसे पूछा "लेकिन हमारे घर की समस्या का क्या होगा?" उन्होंने कहा “हर महीने एक प्रार्थना सभा अपने घर में करवाओ। कोई भी चीज़ तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगड़ सकेगी।“ इस प्रार्थना सभा के विषय में मैं थोडा संशय में था। क्योकि में जनता था की ये प्रार्थना सभाएं कैसे होती हैं। फिर उन्होंने थोडा बहुत बातें की और सुसन सिस्टर के साथ साथ हमने उनके घर से रुखसती की। सुसन सिस्टर तो अपने घर चली गयीं। मेरी मम्मी ने मुझसे पूछा की "ये प्रार्थना सभा कैसे होती है इनकी ये तो हमे पता ही नहीं है?" मैंने मम्मी को बताया की "गिरिजाघर के कुछ पुजारी और वहां के महंत घाट आते हैं और एक कीर्तन की तरह ये प्रार्थना सभा होती है। लेकिन अगर ये हम अपने घर में करवाएंगे तो पूरा मोहल्ला जान जायेगा की हमारे घर में जो भी हो रहा है वो कोई हमारी पूजा नहीं है बल्कि कुछ और है। और शायद ये अफवाह भी फ़ैल जाये की हम अपना धर्म परिवर्तन कर रहे हैं।" 



ये बात सोचने वाली थी इस बात ने हमे उलझन में डाल दिया था। ये बात हमने घर में सबसे बताई बड़ो में इस बात के लिए कोई राज़ी नहीं हुआ। दादा जी ने कहा "ऐसी सभा का घर में होना मतलब पचास तरह की बात हमारे बारे में फैलना होगा। और अगर हमारे रिश्तेदारों में किसी को पता चला तो सब बिरादरी का ताना देकर बदनाम कर देंगे। इसलिए बेहतर होगा की हम कोई और रास्ता निकालें। हाँ वो सक्षम हैं लेकिन मेरा ये मानना है की अगर उनकी पूजा से फ़ायदा होगा तो हमारी भी पूजा से फ़ायदा होना चाहिए। जोकि अभी तक कहीं से नहीं हुआ है। अगर उनकी पूजा से भी फायदा न हुआ तो हम और भी बड़ी मुसीबत में फंस सकते हैं।" दादा जी के तर्क और संभावनाएं विजयी थे। और फिर उनकी बात को टालना भी नामुमकिन ही था इसलिए हमने उनसे हट कर कोई समाधान निकलना था। मैं अपनी सारी व्यथा और बड़ो की सारी मर्जी सुसन सिस्टर को बताने अगले दिन हॉस्पिटल पहुंचा। सुसन सिस्टर ने मेरी बातों में सहमति जताई और मुझे कोई भी कदम उठाने और वापस वहां जाने के लिए मजबूर नहीं किया। हम ये बाते चोरी छुपे नहीं कर रहे थे इसलिए वहां मौजूद एक और सिस्टर 'मोना' जो की हमारी पहचान की थी। उनकी उम्र काफी है मगर नर्स होने कि वजह से हम उन्हें सिस्टर ही कहते हैं। उन्होंने ने भी हमारी ये बातें सुनी। वो भी जानती थी की मुझे किसी की तलाश है। 


इसलिए वो थोड़ी हिचकिचाते हुए मुझसे बोली की वो भी किसी इसे व्यक्ति को जानती हैं। लेकिन वो व्यक्ति देख नहीं सकता अँधा है। लेकिन इसे मामलों में वो उनके मोहल्ले में मशहूर है। उनकी बात तो मैंने सुनी मगर मुझे उम्मीद की रौशनी नज़र नहीं आई बस यही सोचा की शायद इस आदमी के बस में कुछ हो। और मज़बूरी की आगे दिल और मन की बातें कहाँ मायने रखती हैं। इसलिए मैंने अगले दिन शाम को उस व्यक्ति के पास जाने का मन बनाया मोना सिस्टर से मैंने उसका पता ले लिया और फिर अगले दिन पहुँचने की बात कही तो मोना सिस्टर ने भी वहां खुद की मौजूदगी का आश्वासन दिया। ये बात मैंने घर में बताई और अगले दिन वहां के लिए निकल पड़ा। वहां पहले मैं मोना सिस्टर के घर गया उन्होंने स्वागत किया और अपने पति से भी मेरा परिचय करवाया। मैंने अपनी सारी व्यथा उन्हें भी बताई और ये तो वो जानते ही थे की मैं वहां किसलिए आया हूँ। इस बात पर उन्होंने मुझे इस बात से अवगत करना जरुरी समझा की मैं जिस व्यक्ति के पास जाने वाला हूँ उन्होंने सिर्फ उसके कारनामे और नाम सुना है। लेकिन उनका उस व्यक्ति से कोई व्यक्तिगत तजुर्बा नहीं है। इसलिए मैं उम्मीद उतनी ही रखु की टूटने पर दुःख न हो। मुझे उनकी ये बात पसंद आई और मैं तो खुद ही इस बात के लिए तैयार था की देखते हैं की आजकल के लोगो में सिद्धि का कितना दम है जो मेरी समस्या का समाधान कर सकें। खैर हम उनके यहाँ पहुंचे उनका नाम तो मैं नहीं जनता मगर लोग उन्हें खान साब कहते थे। जब हम वहां पहुचे तो खान सब के घर में उनकी पत्नी जो की बहार बैठी थी और उनके बच्चे अन्दर थे। उनकी पत्नी हमे अन्दर खान साब के पास ले गयी और उन्हें बताया की कोई उनसे मिलने आया है। 


खान सब यही कोई पचास की उम्र के आस पास थे। उन्होंने चश्मा नही लगाया हुआ था जेसा की अक्सर बेनज़र लोग लगाया करते हैं। मैंने उनकी आँखों को कुछ देर गौर से देखा पता नहीं क्यों मेरा मन जेसे उस वक़्त इस बात को जानना चाहता था की वो सच में नहीं देख सकते। उनकी आँखों पर सफ़ेद रंग के मांस की परत सी चढ़ी हुयी थी। जिनसे उनकी एक आंख की पुतली करीब एक तिहाई नज़र आ रही थी और दूसरी आंख पूरी ढकी हुयी थी। उन्होंने अपना चश्मा उठाया और उसे पहन लिया। उसके बाद वहां आने का कारण पूछा। मैंने उन्हें समस्या के तौर पर सिर्फ घर में अचानक आने वाली बीमारी और पैसो का पानी की तरह बह जाना ही बताया। मोना सिस्टर उम्र में बहुत बड़ी थी मुझे उनके सामने उन गंदे सपनो को बताने में संकोच हो रहा था। इसलिए मैंने सपनो की बात को दूर ही रखा। 


खान साब ने पूछा की "कभी किसी और को दिखाया है क्या?" मैंने उन्हें अपना पिछला तजुर्बा बता दिया लेकिन ये नहीं बताया की उस महिला ने मेरे घर में क्या परेशानी बताई थी ये बात मोना सिस्टर भी नहीं जानती थीं। इस बात को मैं अच्छी तरह जानता था की किसी भी तांत्रिक या ओझा को अपनी सारी परेशानी खुद नहीं बतानी चाहिए, वरना उसकी पहुँच सिद्धि में कितनी है ये आपको खुद कभी पता नहीं चलेगा और आप कभी नहीं जान पाएंगे की वो सच्चा या झूठा। परेशानी हमेशा थोड़ी बताओ बाकि अगर वो खुद बताये तो समझो की बन्दे में दम है कुछ करने का। लेकिन कभी भी किसी भी ओझा को ये नहीं बताना चाहिए की पिछली बार जिससे मिले थे उसने क्या बताया था जबतक आपकी परेशानी का समाधान न हो जाये। समाधान अगर हो जाये तो बताने में कोई हर्ज़ नहीं है। मेरी बात सुनने के बाद वो थोड़ी देर को मौन रहे और कुछ शायद मंत्र वगेरा पढ़ा। कुछ देर जब तक वो शांत थे तब तक हमने उनकी पत्नी द्वारा दिया हुआ पानी पिया और उनके शब्दों का इंतज़ार करने लगे। 


उन्होंने फिर मेरे घर का पता पूछा, मैंने बता दिया। फिर थोड़ी देर मौन रहे और फिर बोले "घर में बला तो है, जो की घर की बर्रकत खा रही है। लेकिन उसका इंतज़ाम हम यहाँ से नहीं कर सकते। इसका इन्तेजाम तो तुम्हारे घर पहुच कर ही किया जा सकता है।" मैंने उनकी बात को घर में पूछ कर बताने की बात कही। उसके बाद उन्होंने एक पैकेट अगरबत्ती मंगवाई और कुछ मंत्र वगेरा पढ़ कर उसपर फूंक डाल दी। उसके बाद उन्होंने अगरबत्ती देकर उसे रात को और फिर अगले दिन जलाकर पुरे घर में दिखाने की बात कही। मैंने घर आकार सारी बात घर में बताई और फिर मम्मी को वो अगरबत्ती का पैकेट दे दिया उन्होंने जलाकर पूरे घर में अगरबत्ती का धुआं दे दिया। लेकिन उस रात अजीब सी घटना घटी जिससे हमने खान साब को जल्द से जल्द घर लाने के इन्तेजाम में लग गए। क्रमशः  

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