एक ढोंगी से धोखा और उसका खात्मा !

नमस्कार दोस्तों, ये घटना जो मैं आप लोगों को बताने जा रहा हूँ ये घटना 19 साल पहले की है। मेरे पिता जी का स्थानान्तरण    दिल्ली में हुआ था। यहाँ आने के बाद मेरे पिता जी ने पूर्वी दिल्ली के वेलकम    इलाके में एक मकान किराये पर ले लिया था। नयी जगह में जिंदगी सामान्य करने में थोडा वक़्त लगा मगर समय के साथ    सब सामान्य हो गया। उस समय वहां एक तांत्रिक बहुत जाना माना जाता था।जिसे लोग    माली जी कहा करते थे।
   

एक ढोंगी से धोखा और उसका खात्मा !
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एक ढोंगी से धोखा और उसका खात्मा !




 नमस्कार दोस्तों, ये घटना जो मैं आप लोगों को बताने जा रहा हूँ ये घटना 19 साल पहले की है। मेरे पिता जी का स्थानान्तरण    दिल्ली में हुआ था। यहाँ आने के बाद मेरे पिता जी ने पूर्वी दिल्ली के वेलकम    इलाके में एक मकान किराये पर ले लिया था। नयी जगह में जिंदगी सामान्य करने में थोडा वक़्त लगा मगर समय के साथ    सब सामान्य हो गया। उस समय वहां एक तांत्रिक बहुत जाना माना जाता था।जिसे लोग    माली जी कहा करते थे। मोहल्ला छोटा होने की वजह से उसने कम समय में काफी नाम    कमा लिया था। उस वक़्त लोगो में साक्षरता की  कमी के कारण लोग डॉक्टर से पहले उसके पास ही जाना पसंद करते थे। लोग उसके पास अपनी परेशानी लेकर जाते थे और ठीक भी हो जाते थे। 


उसका धंधा    काफी अच्छा चल रहा था। धीरे धीरे उसकी ख्याति पहुँचते हुए मेरी दादी की पास भी    पहुंची। उन्होंने ने भी उसके द्वारा किये गए काम को देखने की इच्छा जताई। उस मोहल्ले में एक दिन    पड़ोस में किसी औरत को किसी    उपरी हवा की आमद हुई। वो अपने आपे में नहीं आ रही थी, और उस    पर सवार जो भी साया था उसे शांत नहीं होने    दे रहा था। वो बस अपने बाल को खोल कर खेले जा रही  थी। पड़ोसियों का मेला लगा हुआ था घर पर सब बस    माली जी के आने का इंतज़ार कर रहे थे, फिर  उस औरत के घर का एक आदमी अपने साथ    माली जी लेके आ गया। माली    जी ने कुछदिएँ जलाये तंत्र मंत्र किया और वो ठीक हो गयी। उसके बदले में  माली जी ने उनसे कुछ रुपए और एक शराब  की बोतल ले ली।    खैर अपने घर के किसी सदस्य की    बिगड़ी हालत ठीक हो जाये तो कुछ पैसे और एक बोतल का क्या मोल?  मेरी दादी ने भी ये सब देखा उन्हें भी विश्वास हो गया के हाँ ये आदमी    उपरी हवा का इलाज कर सकता है।    


फिर एसा सिलसिला चला करता था अक्सर कभी    किसी के घर में कोई परेशानी    होती तो कभी किसी और के घर में। कोई डॉक्टर से ठीक होता तो कोई बिना    माली जी की कृपा से ठीक नहीं होता था। माली    जी की अच्छी कट    रही थी। एक दिन घूम घुमा कर परेशानी मेरे घर में भी  आ गयी। मैं बहुत छोटा था, मुझे अचानक से उल्टियाँ आने    लगी और मैंने दूध पीना भी छोड़ दिया। मेरे दादा जी और और मेरे पिता जी उस वक़्त दफ्तर में थे, मेरी दादी और    मेरी मम्मी काफी परेशान थीं। नये शहर में किसी डॉक्टर को वो    जानती नहीं थी, फिर एक    पडोसी औरत से दादी ने किसी डॉक्टर का पता पूछा तो उस औरत ने डॉक्टर से पहले    माली जी के पास चलने की    सलाह दी। 


लोगो को अक्सर मोहल्ले में    परेशानी हो जाती थी हो सकता    है मैं भी किसी चपेट में आ गया हूँ,    ऐसी दलीलें सुन कर मेरी    दादी माली जी के पास चलने को    तैयार हो गयी|    माली अपने घर में बैठा कुछ पूजा पाठ कर रहा था। उसने    पहले मुझे देखा कुछ दियें जलाये लाल फूल मंगवा कर कुछ क्रिया    की और अपना मंत्र वगेरह पढ़े।    फिर दादी से पूछा "आप बच्चे को कहीं    बहार लेके बैठी थी कल शाम के वक़्त ?"    "हाँ " दादी ने जवाब दिया।    "जहाँ आप बैठी थी वहां से पूर्व दिशा    की और किसी ने क्रिया करके    अपनी चीज़ वापस करी    थी और ये बच्चा बीच में पड़ गया। 



इसलिए    इसे ये परेशानी हो रही है।"    माली ने अपना सामान वहां से हटाते हुए कहा।    "फिर ये कैसे ठीक होगा? कोई इलाज़ है क्या इसका ?"    दादी ने परेशान होकर माली से पूछा।    "ये चीज़ थोड़ी जिद्दी है ये बिना    भोग लिए नहीं जाएगी, आप एक काम करो    एक बोतल शराब और एक बकरे की कलेजी    का थान मंगवा लो। कल तक तुम्हारा बच्चा बिलकुल ठीक    हो जायेगा।" माली ने दादी को समाधान के तौर    पर ये बात बोली।    "ठीक है हम तो जानते नहीं हैं, मेरा छोटा    बेटा आपको ये चीज़ दे जायेगा।" दादी ने    माली से कहा और फिर वहां से वापस अपने घर आ    गयीं।    दादी ने घर आकर मेरे चाचा जी को कुछ पैसे    दिए और एक शराब की बोतल और एक बकरे    की कलेजी का थान माली के घर    पंहुचा दिया।    मेरी तबियत अभी भी    ठीक नहीं था। मम्मी ने जब इस    बारे में दादी से पूछा तो उन्होंने कहा के    "किसी तरह आज रात कट जाये सुबह तक    ठीक हो जायेगा एस बोल है माली    जी ने।" और मेरे पिता जी से इस बात को    करने को दादी ने मना कर दिया।    



उसकी वजह ये थी के पिता जी    इन सब बातो पर ज़रा भी विश्वास नहीं करते    थे दादा जी तो थोडा बहुत कर भी लेते थे।    इसलिए सभी को सख्त हिदायत दी    गयी के ये बात पिता जी के सामने न आये।    खैर, शाम हुयी और पिता जी घर आये    उन्होंने मुझे बीमार देख कर, मुझे उठाया और डॉक्टर के    पास ले गए। डॉक्टर ने कुछ दवाईयां दी और एक    इंजेक्शन लगा दिया, जिससे में सो गया और फिर सुबह तक सोता    ही रहा।    सुबह उठा तो मैं ठीक था। अब दादी इसे    माली का चमत्कार समझ रही थी    और पिता जी डॉक्टर की दवा का असर।    मोहल्ले के औरतो में अब मेरी दादी    भी उस समूह में शामिल हो गयी    थी जो माली पर विशवास करती    थीं। उस दिन के बाद से मेरे घर में अजीब    ही हो गया कभी मैं बीमार पड़    जाऊ तो कभी मेरा भाई। दादी दिन के हिसाब से    माली के घर भोग भिजवा देती और हम बिना    दवा के ही ठीक हो जाते। कुछ दिनों में    माली का व्यवहार मेरे दादा जी से    भी हो गया और माली का घर आना जाना    भी शुरू हो गया। मेरे पिता जी    अभी भी इस बात से अनजान थे।    माली जब भी आता दादा जी उसे    अपना मित्र बता कर पिता जी से भी अभिवादन    वगेरा करवा देते मगर बताया कभी नहीं के ये    आदमी क्या करता है।    एक दिन की बात है मेरी मम्मी    को थोडा चक्कर सा आ गया खाना बनाते वक़्त और वो वहीँ    बेहोश हो गयीं। जब मम्मी को होश आया तो    उन्होंने बताया के शायद गर्मी ज्यादा लग    रही थी इसलिए थोडा चक्कर आ गया।    



मम्मी को ये बात सामान्य लगी क्योकि उन्होंने    सुबह से कुछ खाया भी नहीं था और काम    काज में लगी हुयी थी। मगर    दादी ने इसे कुछ उपरी बला समझा और    माली से इस बारे में बात करने की ठान    ली।    ये बात उन्होंने दादा जी को बताई, दादा जी ने    भी सोचा शायद कोई बात हो। क्योकि दोनों में से    किसी को नहीं पता था की    मम्मी ने सुबह से कुछ नहीं खाया था।    उन्हें लगा के अचानक इस तरह बेहोशी आना कोई    मामूली बात नहीं है। फिर दादा    दादी ने मिलकर ये बात माली से पूछने    की ठान ली और माली को बुलवा    लिया। माली भी झट चला आया आखिर एक    आवाज़ में उसे भोग जो भिजवा दिया जाता था।    खैर माली आया और दादी ने उसे बात बता    दी, माली ने कुछ देर सोचा और हाथ में कुछ    लांग लेकर कुछ करने लगा जैसे लांग को लोंग को लोंग से गिन रहा हो।    कुछ देर बाद उसने बताया की मम्मी के ऊपर    किसी देवी की छाया है, और वो    सवार होकर खेलना चाहती हैं।    दादी ने कहा के "वो तो अभी बहुत    छोटी है अभी से कैसे कोई देवी    उसपर आ सकती हैं ?"    



"माता जी ये तो देवी की महिमा    है न जाने कब किस पर दयाल हो जाएँ, अगर उन्हें रोका गया तो    शायद वो आपके परिवार को कष्ट देना शुरू कर दें। " माली    ने दादी की बात का उत्तर इस तर्क के साथ    डराते हुए दिया।    अब दादा दादी के पास कोई और चारा न बचा उन्होंने    माली के कहे अनुसार पूजा करवाने का मन बना लिया।    लेकिन अगले दिन रविवार था और पिता जी उपस्थिति में ये    मुश्किल ही था। इसलिए पूजा सोमवार को रखी    गयी। दादी को भी    यही लगा के शायद इसलिए बच्चे बार बार    बीमार हो जाते हैं क्योकि देवी आना    चाहती हैं। पूजा में इस्तेमाल होने वाले सामान का    बन्दोंबस्त दादा जी ने कर दिया।    माली जी का आगमन हुआ उन्होंने अपना    पूजा पाठ का सारा सामान सजा कर पूरा माहोल तैयार कर लिया था। फिर    दादी ने मम्मी को बुलाया। ना चाहते हुए    भी मम्मी को जाना पड़ा आखिर सास ससुर    की बात कोई बहु कैसे टाल सकती है! 



फिर    माली ने कुछ दिए जलाये और लाल फूल और कोयले    की आग में कुछ लोहबान और घी गुड़ डाल    कर कुछ मंत्र पढने शुरू किये और दादा दादी को    भी बोल के मन ही मन माता का आवाहन    करो सो दादा दादी करने लगे।    कुछ देर बाद मम्मी पर कोई सवारी आई और    जय जय गूंजने लगी। काफी प्रचंडता के साथ    मम्मी पर उस सवारी का असर था खेलते    खेलते हाथो की चूड़ियाँ टूट कर हाथो में कई जगह    लगी गयीं और खून निकलने लगा, दोनों हाथ    लहुलुहान हो गए। इसी प्रचंडता देख कर दादा    दादी पेट के बल लेट गए और श्रधा से प्रचंडता    की जगह सोम्य रूप की प्रार्थना करने लगे।    फिर माली ने कुछ मंत्र बुदबुदाते हुए लोटे में रखे    पानी को हाथ में लिए और मम्मी के ऊपर    फेक दिया। इससे खेलना रुक गया और मम्मी एक दम से    पीछे गिर गयीं। कुछ देर बाद    मम्मी को होश आया तो दादी ने    मम्मी को उठाया और अन्दर ले गयीं और    हाथ में दवा वगेरह लगा दी फिर सारी बात    बता दी के क्या क्या हुआ था क्योकि मम्मी    को तो तब होश ही नहीं था।    इधर माली ने दादा जी से कहा के "अब तो    आपको घबराने की कोई बात नहीं हैं। अब    तो देवी स्वयं आ गयी हैं आप लोगो    की रक्षा के लिए।"    



दादा जी ने अनमने मिजाज से इस बात को    स्वीकार किया और माली को विदा कर दिया। दादा    दादी इस बात को लेकर परेशान थे की अगर    इसी तरह हर बार सवारी आई तो बहु को    बहुत कष्ट होगा, हमारे परिवार में तो कोई कुल देवी    भी नहीं तो फिर ये सवारी कैसे    आ गयी? शाम को जब पिता जी घर आये तो    उन्होंने मम्मी के हाथो में चोट के निशान देखे और फिर    दादी ने सारी बात पिता जी को बता    दी। पिता जी काफी नाराज़ हुए    की ये कौन सी मुसीबत हाथ लग    गयी, माली के विषय में तो ये कहा    की "वो अगर दुबारा घर में आया तो उसकी टाँगे    हाथ में दे दूंगा।"    



उस दिन के बाद से घर में अलग ही माहोल हो गया।    सोमवार को मम्मी पर सवारी आने    लगी और शांत करने के लिय माली को बुलाया    जाता और माली की अच्छी    खासी दावत का इंतज़ाम हो जाता, मम्मी को जो    चोट लगे वो अलग। मम्मी इन सब बातो से बहुत ज्यादा    उब गयी थी, जिसे कहा जा सकता है के    पीड़ित हो गयीं थी।    काफी परेशान हो जाने पर एक दिन मम्मी ने    सारी बात मेरे सबसे बड़े मामा जी को    चिट्ठी में लिख कर बता दी। क्योकि उस ज़माने    में फ़ोन बहुत कम हुआ करते थे। जवाब में मामा जी ने    आने का दिन निश्चय करके आने की सूचना    दी।    



एक हफ्ते बाद मामा जी दिल्ली आये उनके    साथ में एक व्यक्ति और थे साधारण सा दिखने वाले अपने साथ हाथ में    एक छोटा सा थैला लेके वो मामा जी से साथ हमारे घर आये।    स्वागत पानी होने के बाद अपनी    सारी बात और सारी विडंबना दादी    ने मामा जी को बता दी। और मामा    जी भी ये जताए बिना के उन्हें ये सब बात    पता है चुप चाप सुनते रहे। फिर उन्होंने अपने साथ आये उस    व्यक्ति से दादी का परिचय करवाया।    "ये हमारे एक दूर के चाचा जी हैं मन्नी    लाल, यहाँ अपने रिश्तेदारों से मिलने आये हैं। ये भी कुछ    जानकारी रखते हैं अगर आप आज्ञा दें तो ये शायद कुछ    बता सकते हैं के ये सब कैसे हुआ।" मामा जी ने    दादी से कहा।    दादी ने दादा जी पूछ कर इस बात    की स्वीकृति दे दी। फिर    थोड़ी देर कुछ विचारने के बाद मन्नी लाल चाचा    ने कहा के "माता जी, माली जी    को बुला लीजिये, तो फिर सारी बात आराम से    की जाए।"    



दादी ने मेरे चाचा को भेज कर माली को बुलवा    लिया। सर्दी का वक़्त था घर के बहार चारपाई पर बैठ कर    मामा जी और मन्नी चाचा बैठ कर चाय    पी रहे थे और धूप आनंद ले रहे थे के    माली का आगमन हुआ। दादी ने मामा    जी लोग का परिचय करवाया। थोड़ी हाल    खैरियत की बात के बाद मामा जी ने    माली से पूछा "अपने ही पूजा करके    मेरी बहन पर देवी की    सवारी करवाई है न?"    "हाँ पूजा तो मैंने ही की थी    मगर देवी खुद आना चाहती    थीं।" माली से जवाब दिया।    "कौन सी देवी हैं वो ?" मन्नी    लाल चाचा ने सवाल किया।    "ये तो आप खुद ही पूछ लीजिये कोई आपके    परिवार की होंगी।" माली ने दादा    जी तरफ देख कर कहा।    दादा जी ने जवाब दिया "हमारे परिवार में तो कोई कुल    देवी नहीं हैं।"  "तो फिर कोई और होंगी बचपन में जिनका दर्शन हुआ    होगा।" माली ने कहा। 



यहाँ उसका तात्पर्य चेचक से था    उसे भी देवी का दर्शन कहा जाता है और ये    भी कहा जाता है के जिस देवी का दर्शन    विकट रूप से होता है उनकी कृपा भी    उसी तरह होती हैं। और    कभी कभी उस देवी    की सवारी भी आने    लगती है। यही बात माली    भी समझाने की कोशिश कर रहा था।    "इसे तो बचपन में भी कभी कोई दर्शन    नहीं हुआ।" मेरे मामा जी ने जवाब दिया।    "तो फिर देवी से ही पूछ लेते हैं न, मैं    मनाऊंगा तो वो अभी खेलने लगेंगी। "    माली ने खुद को फंसता देख इस तरह डराने    की कोशिश की।    "ठीक है चलिए, ऐसा ही किया जाए। आखिर    वो देवी हैं कौन सी जो ऐसे परेशान कर    रहीं हैं।" मन्नी चाचा ने माली    से कहा।    "ठीक है आईये, लेकीन डरना मत"    माली ने होशियार किया।    मन्नी चाचा ने हस्ते हुए कहा "अगर डर    भी गए तो आप हैं ना।"    इतना कह कर माली उठ गया और अन्दर जाते जाते बोल    "तो फिर आईये न!"    



मन्नी चाचा ने कहा के "आप चलिए जब    सवारी आ जाये तो हम भी अन्दर आ    जायेंगे।"    माली फिर अन्दर गया लाल फूल मंगवाए दीये    मंगवाए और तैयार हो कर बैठ गया। दादी के कहने पर    मम्मी भी आ कर बैठ गयी और    मामा जी भी मगर मन्नी चाचा    बाहर ही बैठे रहे। माली ने मंत्र पढने शुरू    किये और दीया जलाने लगा, मगर दिए की    बाती ने लो नहीं पकड़ी। एक    बाद बाद माचिस की तिल्लियां जला जला कर    माली ने तीन माचिसे खाली कर    दी मगर दीया नहीं जला। अब    माली के पसीने छूटने लगे सर्दी    में भी उसकी ये हालत हो रही    थी मगर उसका कोई मंत्र कोई जोर नहीं चल    रहा था माली की समझ से बाहर था    की ये क्या हो रहा है। माली सब कुछ रख    कर बैठ कर कुछ मंत्र जाप कर रहा था के मन्नी चाचा    अन्दर आये।    "क्या हुआ देवी नहीं आयीं?"    मन्नी चाचा ने पूछा।    "पता नहीं क्या हुआ, शायद नाराज़ हो गयी    हैं।" माली ने कहा।    "अब तुम्हारे बुलाने से देवी तो क्या एक आत्मा    भी नहीं आ सकती बच्चे।"    मन्नी चाचा ने कहा।    "क क्या मतलब ?" 



माली ने लडखडाती जुबान    से पूछा।    "एक फूल और कपूर पर चलने वाली देवी को    सिद्ध क्या कर लिया, तुम ओझा बनकर घुमने लगे। वो सब तो फिर    भी ठीक था मगर तुम जो यहाँ करने आये थे    वो तो बहुत नीच कर्म है।" मन्नी चाचा ने    जवाब दिया।    माली हक्का बक्का होकर केवल मन्नी चाचा    की बात सुन रहा था। तभी मामा    जी ने मन्नी चाचा से पूछा "कैसा    नीच कर्म चाचा?"    "इस  की औलाद ने तुम्हारी बहन    पर अपनी देवी का वास करवाया, क्योकि ये इस    घर की सबसे बड़ी बहु हैं जब ये    अपनी सास के बाद अपने कुल देवता की पूजा    करती तो ये सारी पूजा इसकी    देवी लेतीं। और इस देवी को नया    कुल मिलता तो इसके ऊपर ज्यादा मेहरबान हो जाती और    ये नीच इस कुल के गुरु के रूप में पूजा जाता। और अगर    इस बात से इस कुल के देवता नाराज़ हो जाते तो ये कुल    यहीं रुक जाता। ये कमीना एक गुरु बन्ने के    चक्कर में इस परिवार की पीढ़ी    की जिंदगी बर्बाद कर देता। अब तू जहाँ से    आया है वहीँ चला जा तेरा ये सारा नाटक आज के बाद    नहीं चलेगा, अपनी देवी    भी भूल जा।" 



मन्नी चाचा ने गुस्से में    माली की तरफ ऊँगली करके ये    सारी बात बताई। ये सारी बात सुन कर    दादी को बहुत दुःख हुआ और उनके आंसू निकल आये।    "माफ़ करदो बाबा माफ़ करदो में दुबारा ऐसा कुछ नहीं करूँगा    मगर मेरी देवी सिद्धि मत छीनो।"    माली रोनी सूरत बनाकर मन्नी    चाचा के पैर पकड़ते हुए बोला।    "तेरी देवी ने तभी तेरा साथ छोड़    दिया था जब तू बहार हमसे बात कर रहा था, अगर तुझमे जरा    सी भी कोई चीज़    बाकी होती तो ये दीये जल गए    होते। अब उठ और निकल जा यहाँ से।" मन्नी चाचा ने    गरजते हुए कहा।    माली रोता आंसू पोछता हुआ वहां से चला गया। मामा    जी और मन्नी चाचा जो काम करने आये थे वो    हो गया था फिर वो वहां दो दिन रुके और चले गए।    



इन दो दिनों में माली के साथ क्या क्या हुआ था ये    सारी बात आग की तरह पुरे मोहल्ले में    फ़ैल गयी। और उस ढोंगी माली    का सारा धंधा चोपट हो गया। कुछ दिन बाद वो वहां से    कहीं और रहने चला गया।    दोस्तों, मन्नी लाल चाचा एक अघोरी थे, उन    दिनों वो कानपुर के मेडिकल कॉलेज में मुर्दा घर के चोकीदार    की पोस्ट पर रात की शिफ्ट में काम किया    करते थे। एक बार एक दोस्त के घायल होने पर मामा जी    हेलेट हॉस्पिटल गए वहीँ मामा जी    की मुलाकात मन्नी चाचा से हुयी    थी। फिर वो अच्छे दोस्त बन गए थे जब मामा    जी ने मम्मी की    चिट्ठी के बारे में मन्नी चाचा को बताया तो वो    तुरंत आने को तैयार हो गए थे। वो बहुत ज्यादा ऊंचे    अघोरी नहीं थे मगर माली का    काम करने के लिए काफी थे। कुछ साल पहले मैं    भी उनसे मिला था, उसके बाद सन २००९ में उनका देहांत    हो गया। मगर उनके काफी एहसान आज भी    हमारे ऊपर हैं।        

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