क्योंकि ... हर कोई ढोंगी नहीं होता |

 आज तो बहोत ज्यादा पी ली मैंने ठीक से चल भी नहीं पा रहा हु .... ह्म्म्म ,,, अब भाई गाडी कहा पर है मेरी ? .. 

Photo by Patrick Hendry on Unsplash


दोस्तों इंसान कभी कभी कुछ चीजे इतनी अनदेखी करदेता है की, वो, उसके जीवन की एक रेखा होती है तब भी इंसान उसे अनदेखा कर अपने मृत्यु को अपने उपर खीच लेता है .. आज की कहानी ऐसी ही एक नौजवान विजय की है, रात के 1 बज गये थे और विजय पार्टीसे वापस लौट रहा था.. "यार ,... 


आज तो बहोत ज्यादा पी ली मैंने ठीक से चल भी नहीं पा रहा हु .... ह्म्म्म ,,, अब भाई गाडी कहा पर है मेरी ? .. 

आह मिली " वहा पार्किंग की जगह में अपनी गाडी को ढूंडते उसे देर नहीं लगी .. 

जब वो अपनी गाडी के पास पहुंचा तभी पिछेसे एक हाथ उसके कंधे पे पड़ा .. 

उससे विजय डर गया "हां ऐ कौन है हां 

" उसने पीछे मुडके देखा तो वहा पर एक फकीर खडा था| आखोंमे सुरमा भरा हुआ मुह पे सफ़ेद दाढ़ी ..

सर पे हरा कपड़ा बंधा हुआ दोन्हो हाथ खाली थे... और उन्ही हाथो को फेलाए वो विजय से कहने लगा 

" भूख लगी है कुछ खाने को दो ...



" उसकी आवाज खुर्द थी खरोचने जैसी और वो जोर से विजय से कह रहा था " भूख लगी है.. कुछ खाने को दो " विजय ने उसे अपने से दूर ढकेला "चल जा बे .. कुछ नही है मेरे पास..जा" और वोह फकीर भी चला जा रहा था फिर विजय ने कुछ कहा " ढोंगी... साला " तभी वह फ़कीर झटसे रुक गया और पीछे मुडकर उसने विजय से कहा "याद रख .. तूने मुझे रोटी नहीं दी ..कोई बात नहीं .. पर हर कोई ढोंगी नहीं होता " विजय लडखडाते हुए उसके पास जाने लगा एक बार वह गिरा और फिर उठ खड़ा हुआ | और सामने देखा तो वहा कोई नहीं था .. 



विजय बडबडाते हुए कार में बैठा और कार चालु करके जाने लगा .... कार अब हायवे पे थी | विजय चला जा रहा था रात का 2:30 बजे हुऐ थे | की अचानक , विजय के गाडी के सामने एक ... आदमी आया और पिया हुआ विजय गाडी को संभाल न सका और उसने उसी गाडीसे सामने आये हुए उस आदमी को गाडी से उड़ा दिया .. और वह आदमी उसी जगह पर मौत के हवाले हो गया ... अब .. अब पूरा हायवे सुनसान था ..न आगे कोई न पीछे .. 



उस हादसे से विजय होश में आगया था अब क्या करे ...फिर वहा कोइ नहीं ये देख उसने उस लाश को उठाया और वही ब्रिजसे निचे फैंक दिया... और डरता हुआ कार में आ बैठा और फिर चलने लगा .. घना कोहरा और अंधेरा छाया था उस रस्ते पे के तभी बंद खिड़की के शीशे पे ओस की कुछ बूंदे पड़ने लगी पूरी खिड़की का शीशा ओस के बूंदों से भर गया.... और उसपे ... कुछ अक्षर दिखाई देने लगे .. उन्ह ओस के बूंदों के बिच लिखा हुआ था ............. 



"तेरी मौत " और तभी .. विजयको पीछे की सिट पर कुछ दिखा ... उसने अपनी तिरछी नजर डालनी चाही और तभी देखा ..एक खून से लतपत इन्सान का सर.. वहा पड़ा था और वह सर था विजय का , विजय चिल्ला उठा .... "आआह्ह्ह्..... " और उसने अपनी आखे बंद कर ली और जब खोली तो पीछे के सिट पे कुछ भी नहीं था कुछ भी नहीं.. अब डरा सहमा विजय घर आगया उसने गाडी गराज में लगाई उस वक्त हाथ से गलती से उसका फोन निचे गिर गया .. 


वह निचे झुका और फोन लेके फिर से उठा और तब गाडी के रौशनी में उसने देखा आगे एक खून से लतपत आदमी .. हाथ में हथोड़ा लिए खड़ा था और वह हस रहा था उसने कूद कर विजय के गाडी का कांच फोड़ दिया तभी विजय गाड़ी से उतरा और घर के भीतर घुस गया .. और उसने अपना दरवाजा बंद कर लिया...अंदर आते ही विजयने दरवाजा बंद कर लिया ..और जब वो पीछे मुडा, तब उसकी माँ उसके पीछे खड़ी थी... 


विजय इतना डरा सहमा था की माँ को देखकर भी वह डर गया था| उसने माँ को देख अब राहत की सांस ली ... तभी माँ ने विजय से पूछा "बेटा इतनी रात गये कहा थे तुम कितनी देर हो गयी मै कबसे तुम्हारा इंतेजार कर रही थी " तभी विजयने माँ से कुछ नहीं कहा और सीधा अपने कमरे के और भागता चला गया | विजय अंदर आया उसने अपने कपड़े उतारे और पसीनेसे लतपत वोह सीधा बाथरूम के अंदर चला गया| उसने शावर ऑन किया .. और गर्म पानी से नहाने लगा .. जो हुआ वो उसे भूल नहीं पा रहा था .. नहाने के बाद उसने अपना शावर बंद कर दिया.. औ



र तोलिये से अपना मुह पोछने लगा उसने अपने मुह से टॉवल वापस हटाया .. और आगे देखा तोह बाथरूम के सामने वाली सफ़ेद दीवार पे कुछ लिखा था उसे देख विजय और भी डर गया वहा पर अब खून से लिखा हुआ था .... "तेरी मौत ..." तभी विजय को हसने की आवाजे आने लगी.. "हहहाहाहा...ह्हह्ह ह " ऐसा लग रहा था कोई अँधेरे में छुपा हो और विजय की उस हालत पे हस रहा हो.. तभी विजय इधर इधर पागलो की तरह देखने लगा उसे कुछ समझ नहीं आरहा था तभी उसे निचेसे माँ के बुलाने की आवाज आयी विजय भागता हुआ बाहर आया और निचे देखा तो माँ निचे खड़ी थी हाथ में किचन नाइफ लिए.. विजय को देख वोह बोली .. "विजय बेटा मा के पास आव " ऐसे बोलते बोलते विजय की माँ ने .. 



चाक़ू अपने गले पे रख .. जोर से .. उसने अपना गला काट दिया .... विजय की माँ उसके सामने कटे गले के साथ जमीं पर तडपती पड़ी थी ,, उसके कटे हुए गले से खून बह रहा था.. विजय दूर से चिल्लाता हुआ अपने माँ के पास दौड़ आया... और जबतक वो पहुचता माँ ने अपनी जान गवा दी थी| विजय अब पागल होने वाला था .. वः इधर उधर भागने लगा.. पुरे घर में ... अजीब अजीब आवाजे आने लगी थी.. क्या हो रहा था यह .. उसे कुछ पता नहीं चल रहा था.. विजय दौड़ा दौड़ा टेरिस पे भागा. जब वो वहा पहुंचा तब वहा एक अजीबोगरीब नजारा था.. पुरे छत पर सडन सी बद्बुए आने लगी थी .. हरतरफ जैसे चिताए जलने लगी हो..



उसी जगह अचानक उन चिताओं से हसने की आवाजे आ रही थी तभी उन चिताओं के बिच से एक परछाई निकली .. और उससे एक आवाज आयी .... " याद रखना हर कोई ढोंगी नहीं होता " यह बात सुनतेही वह विजय सब समझ गया की यह किया कराया सब उसी फकीर का था तभी अगले ही पल में विजय का सर उसके धड से अलग हो गया...और वह जमीं पे गिर गया .. और अचानक .. सुबह होगयी विजय की आखे खुली वह अपने बेड पे था.. वः उठा और भागता हुआ निचे आया तब माँ टेबल पर नाश्ता लगा रही थी .. 


माँ को ठीक देख उसकी जान में जान आ गयी उसे अपनी गलती भी समझ आगयी और भागता हुआ उसी जगह गया जहा पर वह फकीर था ,,,... विजय चिल्ला चिल्ला क्र उस फकीर को आवाजे देने लगा पर कोई नहीं था .. अचानकसे पिछेसे एक अँधेरीसी गली से एक काली कटोरी लुडकटी हुई विजय के पेरो के पास आयी और उसी गली से एक आवाज आया ... इसमें एक रुपया डाल ... और विजय ने उसमे एक रुपया रख दिया और तभी वहासे उस गली से फकीर की आवाज आई ... 


"मुझे मालुम था | तू जरूर आएगा याद रखना हर कोई ढोंगी नहीं होता " ऐसे कहकर वो फकीर वहासे चला गया ... और विजय भी अपने रस्ते चला गया ........................................................ 


दोस्तों कभी ऐसी चीजे अनदेखा मत कीजियेगा ....... 

हर कोई ढोंगी नहीं होता |

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