मेरा घर part 4

होली ज्यादा दूर नहीं थी। जहाँ इतना वक़्त काट लिया था वहां पंद्रह बीस दिन कुछ मायने नहीं रखते थे। और फिर गुरु जी ने रक्षा के लिए जो जो करने को कहा था वो हमने घर जाकर कर दिया। बीज भी डाल दिए रात को और सुबह गंगाजल का छिडकाव भी कर दिया। थोड़ी बहुत बीमारियाँ जो रही सो रही मगर सपनो को हम बस भ्रम और दिमाग का फितुर समझ कर भूलते रहे और बेसब्री से होली का इंतज़ार करने लगे। 

मेरा घर part 4
Photo by Callum Blacoe on Unsplash




मेरा घर part 4



होली ज्यादा दूर नहीं थी। जहाँ इतना वक़्त काट लिया था वहां पंद्रह बीस दिन कुछ मायने नहीं रखते थे। और फिर गुरु जी ने रक्षा के लिए जो जो करने को कहा था वो हमने घर जाकर कर दिया। बीज भी डाल दिए रात को और सुबह गंगाजल का छिडकाव भी कर दिया। थोड़ी बहुत बीमारियाँ जो रही सो रही मगर सपनो को हम बस भ्रम और दिमाग का फितुर समझ कर भूलते रहे और बेसब्री से होली का इंतज़ार करने लगे। 

गुरु जी का दिया हुआ काम करने के बाद घर में सिर्फ एक अजीब घटना घटी थी। रात के वक़्त करीब वही साढ़े बारह से ढाई बजे के बीच इसी आवाज़ आ रही थी जैसे कोई सांप फुफकार रहा हो। लेकिन हमने न उस आवाज़ का स्त्रोत पता लगाया और न ही जानने की कोशिश की कि वो चीज़ क्या है? वो आवाज़ सबने सुनी मगर अनसुना कर वापस सो गए। किसी न किसी तरह वो दिन कट गए और होली आ गयी। होली वाले दिन ही हमने गुरु जी पूछा की वो कब आएंगे उन्होंने ३ दिन के बाद का वक़्त मुकरर कर दिया। हम सब अब चैन की सांस ले रहे थे। 


गुरु जी के आने की सुचना से हम इतने खुश थे की उस वक़्त चाहे दुनिया के सारे भूत हमारे सामने आ जाते हम फिर भी नहीं डरते। हमने गुरु जी के आने की तैयारी शुरू कर दी थी। तीन दिन बाद गुरु जी आ गए। उनकी रात की ट्रेन थी और वो सुबह करीब पौने छः बजे पहुँच गए थे। घर पहुँचते ही वो घर के अन्दर नहीं आये सबसे पहले उन्होंने घर को हर तरफ से देखा। दायें से फिर बाएं से सामने से और फिर उसके बाद घर के अन्दर आये। उनके साथ उनके बेटे भी आये थे जिन्हें हम भईया कहते थे। उनका सामान हमने एक कमरे में रखवा दिया और उनकी सेवा में लग गए। 


सारा खाने पीने का बंदोबस्त हमने वही किया था जो उन्हें पसंद था। दक्षिण भारत के व्यंजनों से लेकर उत्तर भारत के सारे वही व्यंजन बनाये गए जो उन्हें पसंद थे। उन्होंने सुबह के सारे कर्मो से मुक्त होकर आराम किया और सो गए। फिर उन्हें हमने दोपहर को जगाया खाने के लिए। उन्होंने खाना लेने से मना कर दिया और कहा की "खाना बाद में खायेंगे, पहले इसी वक़्त हमे पूरा घर दिखाओ।" उनके कहे अनुसार हमने उन्हें पूरा घर दिखाया। घर देखने के बाद उन्होंने कहा की "यहाँ कब्र तो है और ये बात सच है की उसका आकार ९ फुट लम्बा और ३ फुट चौड़ा है। 


लेकिन उस कब्र के पैर का सिर्फ एड़ी और पंजे वाला हिस्सा तुम्हारे घर के आगे वाले कमरे में आता है। बाकि वो पूरी कब्र बगल के प्लाट में हैं। वहां जो भी घर बनेगा, उसमे कोई कभी चैन से नहीं रह पायेगा। बहुत अच्छा हुआ तुमने ये घर लिया वो वाला नहीं लिया।" ये सब सुन कर हम सब इश्वर का शुक्रिया अदा करने लगे की बड़ी मुसीबत इतने पास होकर भी हमसे दूर रही। मगर फिर भी जो मुसीबत हमारे साथ थी वो तो किसी की पीछे लगायी हुयी मुसीबत थी। लेकिन उस वक़्त गुरु जी से हमने कोई सवाल नहीं किया वो तो खुद ही सब बताये जा रहे थे। उन्होंने पूरा घर देखा और फिर आकर बैठ गए। हमने खाना लगा दिया वो खाना खाते जा रहे थे मगर उनका ध्यान कहीं और था जेसे मन ही मन किसी उधेड़बुन में लगे हों। उनकी उधेड़बुन का कारण पिता जी ने पूछा तो उन्होंने कहा की "खाना खाने के पश्चात इस बारे में बात करेंगे।" फिर उन्होंने अपना खाना ख़त्म किया। 


उसके बाद उन्होंने पिता जी दादा जी और घर के सभी मर्द को बुलाया। कहा की कुछ गंभीर बात करनी है। हम सब तैयार थे की गुरु जी हमारी समस्या का समाधान करने वाले हैं। उन्होंने कहा "पहली बात तो ये किसी भी तांत्रिक को दुबारा घर तभी लाना जब उस पर पूरा विश्वास हो। उस ढोंगी की तरह नहीं।" हमने उनकी बात पर सहमति जताई, और कभी ऐसा न करने का प्रण लिया। अब गुरु जी बोले "तुम्हारे घर में किसी ने किया हुआ है ये तो तुम सब जानते हो। मगर अब सुनो किस तरह से किया हुआ है।" "जी गुरु जी बताईये।" हमने कहा। उन्होंने अब हमे बताना शुरू किया "जिसने भी किया है बहुत दिमाग वाला कारीगर है। उसने एक प्रेत पकड़ा हुआ था पीपल का प्रेत। उसे काफी वक़्त से कैद किया हुआ था। 


फिर लालच में आकार उसने उस प्रेत को एक दुसरे पेड़ पर जगह दी। जिससे वो प्रेत खुद को आजाद समझने लगा था। लेकिन वो पेड अभी बहुत छोटा था। और स्थायी नहीं था। मतलब वो पेड अभी जमीं में नहीं लगा हुआ था। उस पेड को यहाँ तुम्हारे घर में में लगाया गया। और फिर जब तुम्हारा घर बनना शुरू हुआ तो वो पेड यहाँ दफ़न हो गया। और उस प्रेत को कोई और पेड़ नहीं मिला इसलिए वो यहाँ रहने वाले लोगों को हमेशा परेशान करता रहेगा।" फिर वो थोड़ी देर को शांत हो गए और हम उनके अगले शब्दों का इंतज़ार करने लगे। अब वो बोले "शाह जी ने गलत नहीं कहा था मगर उनकी विद्या इनती नहीं थी की वो जड़ तक जा सके। वरना वो आदमी बहुत अच्छा है। उन्होंने यही कहा था न की तुम्हारे यहाँ किसी मजदुर ने चीज़ गाड़ी है?" मैंने हाँ में उत्तर दिया। "मजदुर तो अपना काम कर रहा था। उसके रस्ते में जो भी पेड पौधा आयेगा वो तो उसे ही दफ़न कर देगा। बस यहीं तक शाह जी की विद्या काम कर गयी इससे आगे वो पता नहीं कर पाए।" गुरु जी ने आगे कहा। 


अब मैंने सवाल किया "गुरु जी, उस तांत्रिक ने पौधा यहाँ जानबूझ कर लगाया था या अनजाने में?" "तांत्रिक ने तो सिर्फ प्रेत का वास करवा कर पौधा दे दिया था। यहाँ जिसने लगाया उसने जानबुझ कर लगाया था।" गुरु जी ने जवाब दिया। अब मेरे पिता जी ने पूछा "किसने लगाया था गुरु जी?" "तुम्हे तो पता है। जब ईशान कौण की पूजा थी और वहां किसी ने आम का पेड लगाया था?" गुरु जी प्रश्न से ही पिता जी प्रश्न का उत्तर दिया। ये सुनते ही पिता जी और दादा जी को जेसे सांप सूंघ गया हो। दादा जी की आँखों में तो आंसू आ गए, उन्होंने कहा "मुझे नहीं पता था की मेरा भाई ही मेरे बच्चो का दुश्मन बन जायेगा। लेकिन वो तो सबसे बहुत प्यार करता था अब इतना बदल कैसे गया?" गुरु जी ने कहा "उसे बदला गया है। उसकी पत्नी, जो बहुत ही ज्यादा जलकुकड़ी है उसे तुम्हारी समृद्धि बरदाश्त नहीं है। उसने उसी तांत्रिक की मदद से तुम्हारे भाई को अपने वश में कर रखा है।" पिता जी ने अब बात सुनकर कहा "गुरु जी, अब उनसे हम सावधान ही रहेंगे बस इस समस्या का हल कीजिये।" गुरु जी ने कहा की "बस आज रात का समय दो, उसके बाद वो तांत्रिक और ये प्रेत तुम्हारा कभी कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे। 


लेकिन उस औरत से सावधान रहना, वो तुम्हारा बुरा करने के लिए पैसे उड़ाने से भी नहीं हिचकिचाएगी। जहाँ तक हो सके उससे दूर रहना।" हमने हाँ में हाँ मिलायी। और फिर उसके बाद मैंने पूछा "गुरु जी उस कब्र वाले का क्या?" उन्होंने कहा "वो तुम्हारा कुछ बुरा नहीं कर सकता, बस उस जगह जो सोयेगा उसे सपने दिखेंगे डरावने बस। बाकि कुछ नहीं कर पायेगा अब वो।" हमने गुरु जी का बहुत बहुत धन्यवाद करा। उसके बाद रात में काम आने वाली एक दो सामग्री मंगवाई जिसमे कुश की झाड, कमल और चन्दन था। बाकि सामग्री शायद उनके पास थी। उन्होंने रात के लिए एक अलग कमरा माँगा। जिसका बंदोबस्त हमने कर दिया। उन्होंने रात के २ से ४ का समय निर्धारित किया की कोई भी उस वक़्त चाहे कुछ भी हो जाये अपने कमरे से बाहर नहीं निकलना चाहिए। हो सकता है गेट पर दस्तक हो या फिर कोई आवाज़ दे। 


चाहे मेरी आवाज़ ही क्यों न आये कोई भी बाहर मत निकलना। हमने उनकी बात मान ली। और रात को उस वक़्त हम जाग रहे थे मगर एकदम सावधान थे की कोई भी कमरे से बाहर न हो। गुरु जी ने जैसा कहा था वैसा ही हुआ, पहले हमे लगा कमरे के बाहर से चाचा जी आवाज़ दे रहे हैं। दरवाज़े पर दस्तक भी महसूस हुयी। लेकिन हम पुतलों की तरह अपने बिस्तर से सटे रहे। और किसी तरह जागते जागते पूरी रात काट दी। सुबह उठ कर गुरु जी कुशल मंगल पूछा। उन्होंने बताया की अब सब ठीक है बस मंदिर में पूजा करनी है और एक दो काम और है। गुरु जी ने उसके बाद मंदिर में पूजा करी और हमे विधान बता दिया की कैसे कैसे पूजा करनी है रोज़। 


उसके बाद गुरु जी जब तक रहे हमे हर रोज़ शांति का मार्ग दिखाते रहे जो हर गुरु का धर्म होता है। उसके बाद उन्होंने विदा ले ली। उस दिन के बाद से गुरु जी की कृपा से अब तक घर की वेसी दुर्दशा नहीं हुयी। दुखों का तूफ़ान तो चला गया। अब तो बस जीवन के सुख दुःख की धूप छाँव लगी रहती है जो की मानव जीवन का अंग है। शाह जी की बात सही थी गुरु जी ही हमारे मसीहा बन कर आये और हमारा गुज़ारा उसी घर में हो रहा है। आज भी घर के आगे वाले कमरे में एक जगह पर सोने पर डरवाने सपने दीखते हैं मगर हम उसे सिर्फ सपना समझ कर भूल जाते हैं। और गुरु जी द्वारा दिखाए सात्विक मार्ग पर हम अब भी अग्रसर हैं। गुरु जी ने और भी कई बातें बताई थी जो मेरे बहुत काम आयीं। उसका जिक्र भी मैं बाद में करूँगा। धन्यवाद्।  

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